Saturday, May 28, 2011

पानी बिच सड़क है कि सड़क बिच पानी


उमेश चतुर्वेदी
बरसों पहले बचपन में एक कविता पढ़ी थी-
सारी बिच नारी है कि नारी बिच सारी।
नारी ही की सारी है कि सारी की नारी।
हाल के दिनों में अपने गांव की यात्रा के बाद एक बार फिर यही कविता याद आ गई, लेकिन थोड़े से संशोधन के साथ। नजारा ही कुछ ऐसा था कि कविता का यह बीज फूटे बिना नहीं रह पाया। नजारे की चर्चा बाद में, पहले कविता-
पानी की सड़क है कि सड़क का ही पानी।
पानी बिच सड़क है कि सड़क बिच पानी।
बलिया में डीएम और एसपी के दफ्तर और बंगले से महज डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर बलिया-गोरखपुर हाईवे पर ऐसा ही हाल है। इस बार मई में ही बादलों की कृपा हो गई है, गरमी के बीच बरसात का पानी कायदे से सूख जाना चाहिए, लेकिन हालत यह है कि पूरी सड़क पानी में तब्दील है। नरक के बीच से रोजाना हजारों लोगों को गुजरना है। लेकिन न तो डीएम साहब को इसकी फिक्र है और एसपी साहब का तो खैर इलाका ही नहीं रहा। यही हालत बलिया में तिखमपुर के पास बलिया-बांसडीह-सहतवार सड़क का भी है। गंदगी से पार पाकर आना-जाना लोगों की मजबूरी है। दिलचस्प बात यह है कि इसी सड़क पर किनारे बलिया सदर की विधानसभा सदस्य मंजू सिंह का आलीशान मकान है। उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार है। लेकिन बलिया को नरक गाथा से मुक्ति नहीं मिल रही। बलिया नगरपालिका पर भी बसपा का कब्जा है। लेकिन पूरा शहर खुदा पड़ा है। बरसात का मौसम आने वाला है, लेकिन शहर की सड़कें अब तक साफ नहीं हो पाई हैं। मौसम विभाग का कहना है कि इस बार मानसून अच्छा रहने वाला है। भगवान करे कि ऐसा ही हो, ऐसे में अंदाज लगाना आसान है कि इस बार बलिया वालों की बरसात कैसे बीतेगी। जिस बलिया का प्रतिनिधित्व चंद्रशेखर जैसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति के नेता ने किया हो, वहां का यही हाल है। वैसे हमारे बलिया में एक मित्र हैं, पेशे से वकील इस मित्र का कहना है कि बलिया वाले इसी के काबिल हैं। जब विरोध का जज्बा ही उनमें नहीं रहा तो नरक में रहें या स्वर्ग में, सरकार और प्रशासन की सेहत पर क्या फर्क पड़ता है।

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