Monday, August 20, 2012


मोदी का गुणगान ना होने के मायने
उमेश चतुर्वेदी
यह अकारण नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में इस बार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को वैसी तरजीह नहीं मिली, जैसी मिलती रही है। अपनी नाराजगी से पहले तक ऐसे सम्मेलनों में मोदी से सीख लेने की सलाह लालकृष्ण आडवाणी देते रहते थे। बाद के दौर में पार्टी आलाकमान गुजरात के शासन मॉडल को अपनाने की सलाह अपने दूसरे मुख्यमंत्रियों को देता रहा। इससे रमण सिंह और शिवराज सिंह चौहान जैसे मुख्यमंत्रियों की निराशा की खबरें सामने आती रही थीं। पार्टी में भावी अगुआई को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की हरी झंडी के बावजूद नरेंद्र मोदी को अब तक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन स्वीकार करता नजर आ रहा है। बीजेपी में भी उनकी अगुआई को लेकर अंदरूनी गुटबाजी बढ़ी ही है।
मोदी की कार्यशैली से नाराज गुजरात बीजेपी के ताकतवर नेता केशुभाई पटेल पार्टी को अलविदा तक कह चुके हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहयोग से दोबारा अध्यक्ष पद हासिल करने की तैयारियों में जुटे नितिन गडकरी को पता है कि अगर मोदी को लेकर गहरी पक्षधरता ना सिर्फ उनकी दोबारा ताजपोशी की राह में बाधा बन सकती है, पार्टी के अंदरूनी विवाद को हवा भी दे सकती है। हालांकि खुद मोदी भी उनकी सत्ता की अवहेलना करते रहे हैं। लेकिन मोदी के राष्ट्रीय कद के चलते गडकरी चाह करके भी कुछ कर पाने से खुद को लाचार पाते रहे हैं। लेकिन मोदी को लेकर उठते सवालों ने उन्हें मौका दे दिया। जिसकी वजह से इस बार बीजेपी शासित राज्यों को मोदी मॉडल का सुशासन स्थापित करने की सलाह ना उन्होंने दी और ना ही किसी दूसरे नेता ने ऐसा कहने की जरूरत समझी। दरअसल बीजेपी आलाकमान के सामने दोहरी चुनौती है। उसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की योजना के मुताबिक मोदी की स्वीकार्यता पार्टी और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में बढ़ाना है। ऐसे में आलाकमान फिलहाल ऐसे मुद्दों को उछालने से बचने की कोशिश कर रहा है, जिससे अंदरूनी विवादों और खींचतान को हवा मिले। फिर कुछ ही महीने बाद गुजरात में विधानसभा चुनाव भी होने हैं। बीजेपी की बड़ी चुनौती केशुभाई पटेल, सुरेश मेहता और काशीराम राणा जैसे नेताओं के बाहर जाने के बावजूद यहां लगातार तीसरी बार अपनी सरकार बनाना भी है। जाहिर है कि ऐसे हालात में कोई भी विवाद पार्टी की उम्मीदों को पूरा करने की राह में बाधा बन सकते हैं। गुजरात में वापसी 2014 की लड़ाई के मनोबल को भी तय करेगी। लेकिन यह लक्ष्य बिना अंदरूनी एकता के हासिल नहीं किया जा सकता। इन दिनों पार्टी का अंदरूनी माहौल जैसा है, उसमें कम से कम एकता का दिखावा भी गैरविवादित मुद्दों के जरिए ही किया जा सकता है। मोदी का गुणगान ना होना एक हद तक इस दिखावे के लिए भी जरूरी है।

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