Tuesday, April 23, 2013

इस लट्ठम-लट्ठा के मायने



उमेश चतुर्वेदी
सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा..कहावत बड़ी पुरानी है..आमतौर पर इसका प्रयोग व्यंग्य में ही किया जाता है। इसके बावजूद अगर प्रधानमंत्री पद पर मोदी की भावी ताजपोशी को लेकर भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यू के बीच अगर खींचतान इस कदर बढ़ गई है कि दोनों का 17 साला पुराना गठबंधन टूट के कगार पर आ चुका है तो इसके दो मतलब हैं-एक या तो भारतीय जनता पार्टी को पूरा यकीन है कि अगली बार अगर नरेंद्र मोदी की अगुआई में उसने चुनावी खेती की तो इतनी कपास जरूर पैदा हो जाएगी कि दस साल से जारी उसकी सत्ता रूपी सूत की कमी दूर हो जाएगी। इसके ठीक विपरीत जनता दल यू को लगता है कि मोदी की अगुआई में एनडीए ने चुनावी खेती की कोशिश की, तो शायद ही इतनी कपास हो कि सत्ता साधने भर के लिए सूत तैयार किया जा सके। लेकिन सवाल यह है कि क्या मौजूदा लट्ठम-लट्ठा की सिर्फ और सिर्फ इतनी ही वजह है। सवाल यह भी है कि क्या सचमुच मोदी की अगुआई में नीतीश कुमार की अगुआई वाला जनता दल यू अपनी अलग राजनीतिक राह चुनने के लिए मजबूर हो जाएगा।

Wednesday, April 10, 2013

अपने-अपने प्रधानमंत्री


उमेश चतुर्वेदी
भोजपुरी इलाकों में एक कहावत कही जाती है...पेड़ पर कटहल और होठ पर तेल..यानी अभी कटहल पास आया नहीं...कि होठों पर तेल लगाकर उसका स्वाद उठाने और उसके समस्यामूलक गोंद से बचने की तैयारी कर ली। प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों को लेकर भारतीय जनता पार्टी में जारी कुछ ज्यादा और कांग्रेस की कमतर चर्चाओं को देखकर यह मुहावरा बार-बार याद आता है। बेशक इन चर्चाओं को विमर्श का जरिया बनाया जा रहा है। लेकिन हकीकत यह है कि ये चर्चाएं अभी तक गंभीर विमर्श की बजाय प्रहसनकारी चर्चाओं के तौर पर ही आगे बढ़ती नजर आ रही हैं। निश्चित तौर पर ऐसी चर्चाएं उस ब्रिटेन में भी चलती हैं, जहां को संसदीय लोकतंत्र और कार्यपालिका की वेस्ट मिंस्टर पद्धति हमने भी उधार लेकर उसे अपना बनाने की कोशिश की है। लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि वहां विपक्षी दलों का बाकायदा छाया मंत्रिमंडल काम करता रहता है।

सुबह सवेरे में