Friday, July 27, 2012

एक टिप्पणी लिखी थी कहीं के लिए ...प्रकाशित नहीं हो पाई... आपकी सेवामें हाजिर है
किसकी नाकामी है बोडोलैंड में हिंसा

असम के बोडो इलाके के तीन जिले इन दिनों जल रहे हैं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इस हिंसा में पैंतीस लोगों की मौत हो चुकी है। केंद्रीय गृहमंत्रालय की चेतावनी और असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई के दावों के बावजूद हिंसा पर अब तक काबू नहीं पाया जा सका है। ऐसे मसलों में अब तक जैसा होता रहा है, वैसा इस बार भी हो रहा है। हिंसा पर काबू रख पाने में नाकाम साबित हुए तरूण गोगोई इस हिंसा के पीछे राजनीतिक साजिश की आशंका जता रहे हैं। ऐसा करके दरअसल वे हिंसा की असल वजह और अपनी अक्षमता को ही झुठलाने की कोशिश कर रहे हैं। इस हिंसा की आशंका तभी से थी, जब से स्वायत्त बोडो क्षेत्रीय परिषद यानी बीटीसी बनी है। अलग बोडोलैंड राज्य की मांग को लेकर आंदोलन चला रहे नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड और इसके विरोधी दोनों संगठनों गैर बोडो सुरक्षा मंच और अखिल बोडोलैंड मुस्लिम छात्रसंघ के बीच खींचतान काफी पुरानी है। बोडोलैंड विरोधी खेमों के दोनों संगठनों के ज्यादातर कार्यकर्ता मुस्लिम हैं और वे खुलकर इसका विरोध कर रहे हैं। बोडोलैंड समर्थक लोग मानते हैं कि दोनों संगठनों के पीछे कांग्रेस का ही अघोषित और परोक्ष हाथ रहा है। बोडोलैंड समर्थक और विरोधियों के बीच खींचतान इन दिनों ज्यादा बढ़ गयी है। अगर राज्य सरकार यह कहती है कि उसे इस खींचतान और इससे उपजे तनाव की जानकारी नहीं थी तो वह गलत बोल रही है। दरअसल इन दिनों बोडोलैंड समर्थक और विरोधियों ने अपनी-अपनी मांगों को लेकर धरना-प्रदर्शन तेज कर दिया था। जाहिर है कि इन प्रदर्शनों और उससे उपजे तनाव को खत्म कराने की जिम्मेदारी बोडो समुदाय की ही थी। लेकिन सरकार ऐसा करने में नाकाम रही। इस तनाव को और बढ़ावा मिला बोडोलैंड विरोधियों की तरफ से उठी उस मांग के बाद, जिसमें उन गांवों को बोडो इलाकों से अलग रखने की मांग की गई, जहां की आधी से ज्यादा आबादी गैर बोडो समुदाय की है। इस मांग के पीछ सबसे बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि बोडो क्षेत्रीय परिषद यानी बीटीसी बनने के बाद बोडो इलाके में कानून-व्यवस्था की हालत खराब हो चुकी है। बहरहाल इस मांग ने दोनों तरह के संगठनों के बीच तनाव को इस कदर बढ़ा दिया कि दोनों तरह के संगठनों के कार्यकर्ता एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए। इसे मौका मिला 16 जुलाई को कोकराझार में हुई अखिल बोडोलैंड मुस्लिम छात्रसंघ के दो कार्यकर्ताओं की हत्या से। इस हत्या के बाद भी सरकार चेत गई होगी तो बोडो इलाके में हो रही हत्याओं को रोका जा सकता था और लाखों लोगों को शरणार्थी की तरह रहने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि राज्य सरकार बोडो और गैर बोडो लोगों के बीच भरोसा बहाली की कोशिशों के साथ ही हिंसाचारियों के खिलाफ कठोर कदम उठाए। अन्यथा दोनों समुदायों के बीच जारी यह विवाद नासूर बन सकता है।

Tuesday, July 24, 2012


मरांडी का महाधरना : छात्रों के जरिए झारखंड में विस्तार की कोशिश
उमेश चतुर्वेदी
(यह रिपोर्ट प्रथम प्रवक्ता में प्रकाशित हो चुकी है)
झारखंड की राजनीति में अहम भूमिका निभाने की तैयारियों में झारखंड विकास मोर्चा के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी कूद पड़े हैं। बेशक अभी राज्य विधानसभा के चुनावों में दो साल की देर है। राज्य में स्पष्ट बहुमत नहीं होने के चलते जिस तरह राज्य सरकार चल रही है, उसका खामियाजा ना सिर्फ यहां साफ-सुथरी राजनीति के हिमायतियों को भुगतना पड़ रहा है, बल्कि राज्य का विकास का ढांचा भी चरमरा गया है। इतना ही नहीं, झारखंड की पहचान अब देश में एक ऐसे राज्य के तौर पर पुख्ता होती जा रही है, जहां के विधायकों को आसानी से खरीदा जा सकता है और पैसे के दम पर यहां से संसद के उपरी सदन में दाखिला हासिल किया जा सकता है। कभी झारखंड के लिए कुर्बानी देने वाले शिबू सोरेन हों, या फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और वनवासी कल्याण आश्रमों के जरिए यहां की राजनीति में दखल देने वाली भारतीय जनता पार्टी रही हो, दोनों उन आदिवासियों का विकास करने में कामयाब नहीं रहे, जिनकी भलाई के नाम पर 2000 में यह राज्य बना। 

Monday, July 16, 2012


नीतीश बनाम बीजेपी और भावी राजनीति का खेल
उमेश चतुर्वेदी
राजनीति में एक मान्यता रही है..यहां कोई भी सत्य आखिरी नहीं होता...कुछ इसी अंदाज में राजनीति में दुश्मनी स्थायी नहीं होती...इन मान्यताओं का एक मतलब यह भी है कि बहता पानी निर्मला की तरह बदलाव राजनीति के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। कुछ इसी तर्ज पर यह भी कह सकते हैं कि राजनीति में दोस्तियां भी स्थायी नहीं होतीं। बिहार की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी के विधान परिषद सदस्य रहे संजय झा की कोई खास वकत नहीं रही है।

Thursday, July 5, 2012

मोदी विरोध के सच और निहितार्थ
उमेश चतुर्वेदी
(यह लेख प्रथम प्रवक्ता में प्रकाशित हो चुका है)
लगता है नरेंद्र मोदी का भूत नीतीश कुमार का पीछा छोड़ता नजर नहीं आ रहा है। यही वजह है कि चाहे राष्ट्रीय परिदृश्य हो या बिहार से जुड़े मसले, जैसे ही नरेंद्र मोदी का जिक्र आता है, वे भड़क जाते हैं। फिर उनकी पार्टी जनता दल यू के प्रवक्ता ठीक उसी अंदाज में उनके मनमुताबिक नरेंद्र मोदी पर हमले शुरू कर देते हैं, जैसे कभी लालू की एकाधिकारवादी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता बीजेपी नेताओं पर लालू के अंदाज में ही हमले शुरू कर देते थे। बहरहाल जब भी नीतीश कुमार की तरफ से नरेंद्र मोदी का का ऐसा विरोध होने लगता है तो सामान्य धारणा यही बनती है कि गोधरा कांड के बाद हुए दंगों में मोदी की भूमिका और उससे नाराज मुसलमान वोटरों को लेकर नीतीश कुमार के मन में संशय रहता है।

Wednesday, July 4, 2012


भारत की कूटनीतिक कामयाबी या विफलता !
उमेश चतुर्वेदी
(यह लेख दैनिक ट्रिब्यून में छप चुका है)
पाकिस्तान की कोटलखपत जेल की काली कोठरी में तीस साल काटने के बाद रिहा होने के बाद सुरजीत ने जो बयान दिया है, उसने भारत को रक्षात्मक रूख अख्तियार करने के लिए मजबूर कर सकता है। सुरजीत को लेकर अब तक यही कहा जाता रहा है कि 1982 में उन्होंने गलती से सीमा पार कर ली और भारत-पाकिस्तान के बीच जारी कूटनीतिक और सैनिक विश्वासहीनता और खींचतान के शिकार बन गए। भारत की तरफ से सुरजीत को लेकर किए गए इन दावों में उनके निर्दोष होने की ही दुहाई दी जाती रही है। लेकिन बाघा सीमा को पार करते ही उन्होंने जो बयान दिया है, उससे भारतीय कूटनीति पर सवाल उठने लगे हैं। सुरजीत के बयान ने भारत के सारे दावों पर पानी फेर दिया है। सुरजीत ने कहा है कि वे भारतीय खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी रॉ के लिए जासूसी कर रहे थे और जब पकड़ लिए गए तो उन्हें सबने छोड़ दिया।

Thursday, June 28, 2012


मोदी को मात देने की कोशिश में कांग्रेस
उमेश चतुर्वेदी
संजय जोशी को भारतीय जनता पार्टी से बाहर कराकर भले ही नरेंद्र मोदी खुद को विजयी समझ रहे हों, लेकिन इसी साल के आखिर में विधानसभा के मैदान पर कांग्रेस इसी विवाद के बीच उन्हें शिकस्त देने की रणनीति बना रही है। इसमें सहयोगी बनती नजर आ रही है संजय जोशी के बीजेपी से बाहर होने के बाद गुजरात और गुजरात के बाहर हो रही नरेंद्र मोदी की लानत-मलामत। कांग्रेस की उम्मीदों को परवान चढ़ाने में मदद दे रही मोदी के खिलाफ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जनता दल यू के बिहार इकाई का हल्लाबोल। बीजेपी में नंबर वन नेता बनने की होड़ में नरेंद्र मोदी के आगे बढ़ने की कोशिशों के बीच नरेंद्र मोदी के खिलाफ भी पार्टी के अंदरूनी हलकों से हमले बढ़ते गए। बीजेपी से मोदी ने जैसे ही तकरीबन यह मंजूर करा लिया कि वे ही पार्टी के नंबर वन नेता हैं, गुजरात में फतह की आस लगाए पंद्रह साल से इंतजार कर रही कांग्रेस की चुनौती और बढ़ गई। गौर करने की बात ये है कि गुजरात कांग्रेस के पास नरेंद्र मोदी जैसी हैसियत वाले नेता नहीं हैं। ऐसे में मोदी का नंबर वन बन जाना निश्चित तौर पर कांग्रेस के लिए कठिन चुनौती बन गया था। लेकिन संजय जोशी प्रकरण को लेकर उनके खिलाफ बीजेपी और एनडीए में बढ़ रहे विरोध से कांग्रेस की मुश्किलें थोड़ी कम होती नजर आ रही हैं।

Saturday, June 16, 2012



अल्पसंख्यक आरक्षण के किंतु-परंतु
उमेश चतुर्वेदी 
( यह लेख दैनिक भास्कर में प्रकाशित हो चुका है।)
राजनीति में जरूरी नहीं कि जो कुछ सामने दिख रहा हो, हकीकत ही हो। कामयाब राजनीति वही होती है, जिसमें संकेतों के जरिए सबकुछ साधने की कोशिश की जाती है। लेकिन ये संकेत भी इतने सहज और प्रभावी होते हैं कि उनकी मकसद लक्ष्य समूह तक आसानी से पहुंच जाता है। 22 दिसंबर 2011 को जब केंद्र सरकार ने कोटा में कोटा की व्यवस्था बनाते हुए ओबीसी आरक्षण में अल्पसंख्यकों के लिए साढ़े चार फीसदी आरक्षण तय किया था तो उसका मकसद साफ था। दिलचस्प यह भी है कि इस मकसद को उसी वक्त राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी तरह से लपक लिया। भारतीय जनता पार्टी को अपने वोट बैंक के खिसकने का खतरा था तो उसने इस पर सवाल उठाने में देर नहीं लगाई।

सुबह सवेरे में