मोहन धारिया की याद
(वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय के संपादन में निकल रही पत्रिका यथावत के 1-15 नवंबर 2013 के अंक में इस लेख का संपादित अंश प्रकाशित हो चुका है..)
उमेश चतुर्वेदी
अप्रैल
2008 का आखिरी हफ्ता..दिल्ली की दोपहरियां कड़क धूप से परेशान करने लगी
थीं..एक मराठी समाचार पत्र के उन्हीं दिनों शुरू हुए एक टीवी चैनल में
दिल्ली कार्यालय की अहम जिम्मेदारी निभा रहा था..इन्हीं दिनों एक प्रेस
बुलावा आया...कन्फेडरेशन ऑफ एनजीओ ऑफ रूरल इंडिया का..दिल्ली के अशोक होटल
में 25 से 27 अप्रैल तक इसका कार्यक्रम होना था.जिसका उद्घाटन तब के
ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह को करना था। बुलावा मोहन धारिया
के नाम था..धारिया ही इस कन्फेडरेशन यानी संघ के प्रमुख कर्ता-धर्ता थे।
धारिया की छवि अखिल भारतीय रही है..लेकिन मराठी समाज में उनका सम्मान कुछ
ज्यादा ही ऊंचा था। लिहाजा मराठी मीडिया की हमारी टीम को इसे कवर करना ही
था। दफ्तर की टीम रिपोर्टिंग करने चली भी गई। लेकिन एक दौर के युवा तुर्क
मोहन धारिया की शख्सीयत को देखने और उनसे मिलने की ललक पर काबू पाना
मुश्किल था..लिहाजा मैं भी वहां पहुंच गया..तब मोहन धारिया की उम्र 84 साल
की थी। उद्धाटन कार्यक्रम में मौजूदगी के चलते थक गए थे..लिहाजा उनसे खास
मुलाकात अशोक होटल के ही उस कमरे में हुई, जहां वे ठहरे हुए थे।