Monday, October 8, 2012

क्या किसान समर्थक होंगे भूमि सुधार



उमेश चतुर्वेदी
भारत में इन दिनों भूमि अधिग्रहणों के खिलाफ कम से कम 1700 आंदोलन हो रहे हैं। निश्चित तौर पर इनमें से सभी आंदोलनों के साध्य और साधन सही नहीं है। यह मानने में गुरेज नहीं होना चाहिए कि इन आंदोलनों में सबके लक्ष्य भी सही नहीं होंगे। इसके बावजूद अगर पूरे देश में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ इतने आंदोलन चल रहे हैं तो यह मानने में गुरेज नहीं होना चाहिए कि उदारीकरण के दौर में लगातार आगे बढ़ रही नव आर्थिकी के लिए हो रहे भूमि अधिग्रहण में कहीं न कहीं कोई खोट अवश्य है। इस खोट की तरफ ध्यान दिलाने के लिए गांधी शांति प्रतिष्ठान से जुड़े रहे गांधीवादी कार्यकर्ता और भारतीय एकता परिषद के अध्यक्ष पी वी राजगोपाल पिछले एक साल से लगातार देशव्यापी यात्रा पर हैं। दो अक्टूबर 2011 को शुरू हुई उनकी यात्रा का समापन दिल्ली में इस साल दो अक्टूबर को होना था। इस यात्रा में एक लाख लोगों को दिल्ली पहुंचना था। यात्रा के आखिरी दौर में ग्वालियर से एक लाख लोगों की यात्रा का दिल्ली आना कम बड़ी बात नहीं है। वहां से दिल्ली के लिए कूच भी कर चुके हैं। देशभर के भूमिहीन और मेहनतकश आदिवासी और दूसरे तबके के लोगों की एक लाख की संख्या जुट जाना भी कम बड़ी बात नहीं है। पीवी राजगोपाल अपनी इन्हीं मांगों को लेकर 2007 में 25 हजार लोगों को दिल्ली लाकर उदारीकरण के दौर के भूमि सुधारों पर रोष जता चुके हैं।

तेलंगाना की आग के पीछे का अंधेरा



उमेश चतुर्वेदी
आंध्र में सत्ता के बदलाव को लेकर ना तो बहुत ज्यादा शोरगुल है और ना ही आपाधापी..लेकिन कांग्रेस के अंदरूनी गलियारों में मुख्यमंत्री एन किरण रेड्डी को हटाने की चर्चाएं जारी हैं। इन चर्चाओं के बीच आंध्र प्रदेश की गद्दी पर समाजवाद के पुराने अलंबरदार रहे पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी की ताजपोशी की खुसर-पुसर भी जारी है। कांग्रेस की राजनीति पर पैनी निगाह रखने वालों को पता है कि इसका मतलब मुख्यमंत्री एन किरण रेड्डी की दिल्ली दरबार में हैसियत और प्रभाव कम हो रहा है। इस बीच अगर तेलंगाना को लेकर हिंसक आंदोलन बेशक प्रशासनिक तौर पर किरण रेड्डी के लिए परेशानी का सबब बनकर आया हो, लेकिन यह सच है कि इस बहाने उनकी गद्दी फिलहाल बचती नजर आ रही है। ऐसे हालात में कांग्रेस आलाकमान शायद ही राज्य नेतृत्व को बदलने की गलती कर सकता है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर तेलंगाना की आग को भड़काने के लिए गांधी जयंती के आसपास का ही वक्त क्यों चुना गया।

सुबह सवेरे में