उमेश चतुर्वेदी
“ मेरी समझ में वे लोग बेवकूफ हैं जो अंग्रेजी के चलते हुये समाजवाद कायम करना चाहते हैं| वे भी बेवकूफ हैं जो समझते हैं कि अंग्रेजी के रहते हुये जनतंत्र भी आ सकता है| हम तो समझते हैं कि अंग्रेजी के होते यहाँ ईमानदारी आना भी असंभव है| थोड़े से लोग इस अंग्रेजी के जादू द्वारा करोड़ों को धोखा देते रहेंगे|”
- डॉ॰ राममनोहर लोहिया
- डॉ॰ राममनोहर लोहिया
अगर डॉक्टर लोहिया अंग्रेजी और जर्मन के प्रखर जानकार नहीं होते तो भाषायी स्वाभिमान के मोर्चे पर जैसा भाव देश में दिख रहा है, उनके इस कथन पर उपेक्षात्मक सवाल उठते। भारतीय वैचारिक जगत पर औपनिवेशिक प्रभाव और वैचारिक जड़ता पर लोहिया ने जितने प्रहार किए हैं, उतने शायद ही किसी और नेता और विचारक ने किए हों। लेकिन दुर्भाग्यवश यह जड़ता बढ़ती ही गई। यही वजह है कि आईआईटी दिल्ली से बी टेक और एम टेक श्यामरुद्र पाठक देश के सबसे मजबूत सत्ता केंद्र सोनिया गांधी की रिहायश दस जनपथ के बाहर 225 दिनों तक संविधान के अनुच्छेद 348 ख में बदलाव की शांत मांग को लेकर बैठे रहे। लेकिन देश का भाषायी स्वाभिमान जाग नहीं पाया। 16 जुलाई 2013 को जब तुगलक रोड पुलिस ने गिरफ्तार किया तो उन्होंने पुलिस का खाना खाने से ही मना कर दिया। इससे परेशान पुलिस अफसरों ने उनके परिचितों को फोन करके बुलाना शुरू कर दिया।