उमेश चतुर्वेदी
मनोहर पर्रिकर की रक्षा मंत्री पद नियुक्ति ने एक बार इतिहास को दोहराया है. लोकतांत्रिक भारतीय इतिहास में ये दूसरा मौका जब किसी मुख्यमंत्री को इस्तीफा दिलाकर केंद्र में रक्षा मंत्री बनाया गया है. तकनीकी रूप से मनोहर पर्रिकर भले ही मराठी व्यक्ति ना हो, लेकिन मूलतः वे भी मराठी ही हैं. यानी पहली बार किसी मराठी व्यक्ति को ही अपने राज्य से इस्तीफा दिलाकर केंद्र में लाया गया था, दूसरी बार भी मराठी अस्मिता को ही नायक पर देश की रक्षा जिम्मेदारी सौंपी गई है. 1962 में चीनी हमले से पस्त भारतीय मानस को संभालने और उत्साहित करने की जिम्मेदारी महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री यशवंत राव चव्हाण को दी गई. वीके कृष्णमेनन के रक्षा मंत्री पद से इस्तीफे के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को यशवंत राव चव्हाण पर ही भरोसा जमा. इस बार बेशक वैसे हालात नहीं हैं. सीमा पर आक्रमण को अगर छिटपुट घटनाओं को छोड़ दे तो भारतीय जनमानस अब 1962 जैसी हालत में हताश नहीं है. लेकिन यह संयोग जरुर है कि भारत को रक्षा क्षेत्रा में आज भी चीन से ही कड़ी और मुश्किल चुनौती ना सिर्फ मिल रही है बल्कि भारतीय राजनय इससे जूझ रहा है. 52 साल पहले यशवंत राव चव्हाण की मुश्किलें जरुर बड़ी थीं. लेकिन गोवा जैसे अपेक्षाकृत शांत राज्य के मुख्यमंत्री रहे और अब दिल्ली लाए गए मनोहर पर्रिकर की चुनौतियां
भी कम नहीं हैं.