Sunday, June 10, 2018

आलोचना से पहले विचार करें


भारतीय व्यवस्था में नवाचार का हमेशा विरोध होता है..यह अंग्रेजी राज में विकसित मानसिकता की देन है..सरकार ने संयुक्त सचिव स्तर पर सीधे भर्तियां करने की जो शुरूआत की है, उसका विरोध भी नवाचार का विरोध है... अतीत ही क्यों, आपके आसपास कई ऐसे लोग मिल जाएंगे, जिनका शैक्षिक स्तर कमजोर है, लेकिन व्यवहारिकता या तकनीक की दुनिया के बादशाह हैं... पश्चिम को ही लीजिए, थॉमस अल्वा एडिशन कितने पास थे, जेम्स वाट ने कितनी पढ़ाई की थी, रिचर्ड ट्रैविथिक ने कितनी पढ़ाई की थी, अब्राहम लिंकन का शैक्षिक स्तर भी जांचिए, लेकिन उन्होंने दुनिया को बदल दिया... शिक्षा का अपना महत्व है..लेकिन उसकी भी अपनी जड़ता है। संघ लोकसेवा आयोग द्वारा देश की बेहतरीन प्रतिभाएं चुनी जाती हैं, लेकिन ये प्रतिभाएं नैतिकता और व्यवहारिकता के धरातल पर कितनी खरी हैं, आए दिन सामने आने वाली भ्रष्टाचार कथाएं इसी सोच को आइना दिखाती हैं। राजनीति के बारे में कहा जाता है कि एक बार चुनाव जीत गए तो समृद्धि की राह खुल जाती है, संघ लोकसेवा आयोग के जरिए चुनी गई प्रतिभाओं के लिए भी यही कहा जाता है। आखिर क्या वजह है कि एक-डेढ़ लाख तनख्वाह पाने वाली इन प्रतिभाओं के राज्यों की राजधानियों में आलीशान मकान जल्द ही बन जाते हैं, उनके बच्चे विदेशों में पढ़ने लगते हैं और उनके घर में शानो-शौकत की सारी सुविधाएं जल्द ही आ जाती हैं। गांवों में स्थित उनके घर भी चमक जाते हैं। क्या यह सब नैतिकताओं के चलते होता है। मैक्सवेबर ने नौकरशाही के लिए स्टील फ्रेमवर्क की जो अवधारणा दी है, उसकी एक कमी यह भी है। अव्वल तो देश में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि जो जिस काम के लिए काबिल हो, चाहे उसकी उम्र जितनी भी हो, चाहे उसका उच्च शैक्षिक स्तर वैसा ना भी हो, तो उसे वह काम करने देना चाहिए। अमेरिका में यह सोच विकसित हो गई है। इसलिए वहां उम्र के पांचवें दशक में भी लोग जिंदगी के नए अध्याय शुरू करने में नहीं हिचकते..जबकि अपने यहां लोग उस वक्त दुनिया से गुजरने की तैयारी करने लगते हैं.. संयुक्त सचिव स्तर पर सीधे भर्तियों की योजना की चीरफाड़ करते वक्त इन तर्कों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

हरिभूमि अखबार में


सुबह सवेरे में