Friday, November 11, 2011

कब लगेगी ऐसे हादसों पर रोक

उमेश चतुर्वेदी
उलटबांसियों में जीने की आदत जितनी भारतीय समाज को है...उतनी दुनिया के शायद ही किसी समाज में होगी..यूरोप और अमेरिका में भयानक मंदी के दौर में भी भारतीय अर्थव्यस्था ना सिर्फ बची हुई है...बल्कि आगे बढ़ रही है। दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बनने की राह पर चल रहे भारत में आज भी एक वर्ग ऐसा है, जिसे अंधविश्वास के हद तक धार्मिक कर्मकांड आकर्षित करते हैं। इसके लिए उन्हें जान भी चुकानी पड़े तो वह कीमत छोटी होती है। उदारीकरण के दौर में आज की शिक्षा और मौजूदा अर्थव्यवस्था आधुनिकता का नया पैमाना माने जा रहे हैं। लेकिन इसी दौर में ऐसे भी लोग रहते हैं, जिन्हें अपनी जान कौड़ियों के मोल किसी धार्मिक कर्मकांड में गंवानी पड़ती है। हरिद्वार के गायत्री परिवार का दावा नए युग निर्माण और नई समाज व्यवस्था बनाने का है।
लेकिन शांति और सौहार्द्र के जरिए बनने वाली इस समाज व्यवस्था के एक धार्मिक कर्मकांड में अगर 22 लोगों को जान गंवानी पड़ती है, पचास से ज्यादा लोगों को घायल होना पड़ता है तो इस व्यवस्था और इसके आयोजकों पर सवाल उठेंगे ही। हालांकि अभी तक तस्वीर साफ नहीं हो पाई है कि किस वजह से भगदड़ मची। युग निर्माण योजना के प्रवक्ता का दावा है कि भगदड़ की वजह कुछ बुजुर्ग लोगों का गिर जाना रही। आयोजकों के इस प्रचार से आगे बढ़कर हां में हां मिलाने का काम हरिद्वार प्रशासन करता रहा। उसके एक उप जिलाधिकारी हरवीर सिंह भगदड़ के लिए भीड़ की वजह से कुछ लोगों के दम घुटने को बताते रहे। एक पल के लिए मान लिया जाए कि हरवीर सिंह की बात सही तो सवाल यह है कि इतनी भारी भीड़ को संभालने के लिए उन्होंने या जिस प्रशासन के वे अंग हैं, उन्होंने एहतियाती कदम क्यों नहीं उठाए। हो सकता है कि हरिद्वार प्रशासन का जवाब हो कि उसने एहतियाती कदम उठाए थे। लेकिन हद से ज्यादा हो गई। अगर वे ऐसा जवाब देते भी हैं तो निश्चित तौर पर यह हरिद्वार प्रशासन की कमी ही मानी जाएगी। क्योंकि अगर वह भीड़ का अंदाजा नहीं लगा पाना भी उसकी ही गलती है। ऐसा भी नहीं कि हरिद्वार में पहली बार ऐसी कोई भगदड़ मची है। अभी एक साल पहले ही इसी हरिद्वार में 14 अप्रैल 2010 को कुंभ मेले के दौरान भी तब भगदड़ मची थी, जब शाही स्नान के लिए साधुओं का जुलूस निकल रहा था। उस भगदड़ में प्रशासन के मुताबिक सात लोगों की मौत हुई थी। जबकि 15 लोग घायल हुए थे। तब भी प्रशासन ने सफाई में यही कहा था कि लोगों की मौत की वजह ज्यादा भीड़ थी। जिसे संभाल पाना आसान नहीं था। वैसे यह सच है कि श्रीराम शर्मा के शुरू किए युग निर्माण योजना पर अभी तक कोई कालिख नहीं लगी है...उसके राजनीतिक मकसद भी जाहिर नहीं हुए हैं। लिहाजा उसके मकसदों पर सवाल नहीं उठ सकते। लेकिन इसका यह भी मतलब नहीं है कि युग निर्माण योजना और गायत्री परिवार अपनी जिम्मेदारी से बच जाएगा। क्योंकि जब भीड़ जुट रही है तो उसे काबू करने और उसे संभालने के इंतजाम की जिम्मेदारी आयोजक होने के नाते युग निर्माण योजना की भी बनती है। पिछले ही साल चार मार्च 2010 को जब इलाहाबाद के नजदीक कृपालु जी महाराज के आश्रम में भी भगदड़ मची थी तो उन पर भी बदइंतजामी के आरोप लगे थे। तब उन्होंने अपनी पत्नी की मौत की बरसी पर लोगों के लिए बड़े भंडारे और खाना खाने आने वाले लोगों को साड़ी और बर्तन देने का ऐलान किया था। फकत एक थाली-गिलास पाने के चक्कर में 63 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इस घटना का दुखद पहलू यह है कि मरने वालों में ज्यादातर महिलाएं और बच्चे थे। साफ है कि तब मरने वाले ज्यादातर लोग गरीब थे। कुंभ के दौरान मरने वाले लोगों की आर्थिक स्थिति पर रोना रोया जा सकता है। लेकिन हरिद्वार की युग निर्माण योजना के जुलूस में मरे लोगों के बारे में नहीं कहा जा सकता कि सभी लोग गरीब ही होंगे। क्योंकि श्रीराम शर्मा की युग निर्माण योजना में अच्छे-भले खाते-पीते परिवारों के लोग भी शामिल हैं। ऐसे में यह भी नहीं कहा जा सकता है कि हरिद्वार में मरने वाले गरीब थे। अपने देश में जब भी ऐसे हादसे होते हैं, वहां जान गंवाते हैं तो उनके गंवारपन और गरीबी को इसकी वजह बताकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश की जाती है। क्योंकि गरीब पर सवाल उठाना और उसे जिम्मेदार ठहराना आसान होता है। सबसे बड़ी बात यह है कि भीड़ बढ़ाना अपने देश में ताकत और सम्मान हासिल करने का सबसे बड़ा जरिया तो है, लेकिन भीड़ को भेड़ से ज्यादा की अहमियत नहीं दी जाती। जब भी कोई वीआईपी भीड़ वाले कार्यक्रमों में ही शामिल होता है तो भीड़ की अहमियत सामान से ज्याद नहीं रह पाती। भीड़ को धकियाने में ही भीड़ के बीच के किसी परिवार से निकले पुलिस के सिपाही और दरोगा को अपनी अहमियत नजर आने लगती है। कई बार भगदड़ की वजह यह मानसिकता भी बनती है। इस लिहाज से भी हरिद्वार की भगदड़ की जांच होनी चाहिए। अगर भगदड़ की वजह किसी वीआईपी का आवागमन है तो उस वीआईपी को भी नैतिक रूप से जिम्मेदार ठहराया जाना होगा। प्रशासन और आयोजकों को तो जिम्मेदार ठहराया ही जाना चाहिए। जिम्मेदार लोगों को दंडित भी किया जाना चाहिए। लेकिन सबसे बड़ी बात यह कि लोगों को इंसान की तरह मानना होगा। तभी जाकर ऐसे हादसों पर रोक लग सकेगी।

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