बिरहा गायक बालेसर का एक गीत है नीक लागे टिकुलिया गोरखपुर के...लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि बलिया का मनियर कस्बा भी टिकुली यानी बिंदी उद्योग में जाना-माना नाम था। लेकिन यूपी सरकार की उपेक्षा और आधुनिकता के दबाव में यह उद्योग अपनी चमक खो रहा है। इस पर अमर उजाला ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसी रिपोर्ट का संपादित अंश यहां पेश किया जा रहा है।
सुहागिनों के माथे की बिंदी कभी देश के विभिन्न महानगरों में अपनी चमक से बलिया जिले का नाम रोशन करती थी लेकिन अब यह चमक धुंधली पड़ती जा रही है। मनियर नगर पंचायत में तैयार की गई बिंदी-टिकुली यूपी, बिहार ही नहीं विभिन्न प्रांतों के साथ महानगरों तक भेजी जाती थी। लेकिन यह कारोबार इन दिनों अपनी पहचान खोता जा रहा है। अब इस के अस्तित्व को बचाने के लिए किसी रहनुमा की दरकार है।
महंगाई, पूंजीवाद और सरकार की उपेक्षा के चलते उपेक्षित इस व्यवसाय के भविष्य को लेकर इससे रोजी-रोटी कमा रहे लोग बेहद चिंतित हैं। जिले के जनप्रतिनिधियों और अफसरों ने भी इस पुश्तैनी धंधे के प्रति संवेदना नहीं दिखाई। मनियर कस्बा सहित आसपास के तमाम गांवों में पिछले कई दशक से महिलाओं के शृंगार में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाली बिंदी देश के विभिन्न हिस्सों तक निर्यात होती थी। यहां की बिंदी को लोग मनिहारी बिंदी के नाम से जानते थे। बिंदियों की पहचान आकर्षक कलाकारी एवं रैपर पर ट्रेडमार्क से हुआ करता थी। कारीगर अपनी सोच एवं शिल्पकारी का कौशल बिंदिया में डालने का प्रयास करते थे। इसके निर्माण में जहां अब धन आड़े आने लगा है, वहीं आधुनिक पैठ ने पारंपरिक व्यवसायियों के धंधा पर डाका डालने का काम किया है। उपेक्षा के कारण यह कारोबार अब हाशिए पर पहुंच गया है। इसके अलावा बिजली की कमी और सुविधाओं के अभाव ने भी इस पर असर डाला है। आधुनिकता की होड़ में चौपट हो रहे इस पारंपरिक व्यवसाय को लेकर जहां बिंदी व्यवसायियों में मलाल है, वहीं क्षेत्रवासी भी कम मर्माहत नहीं। कुछ वर्ष पहले विधायक मारकंडेय सिंह के अथक प्रयास से तत्कालीन कमिश्नर ने यहां पहुंचकर कारोबारियों और कारीगरों को टैक्स छूट दिलाया था। लेकिन उसके बाद आज तक न तो प्रशासन के रहनुमा धंधे की सुध लेने आए और न ही किसी जनप्रतिनिधि ने इसके प्रति दिलचस्पी दिखाई।
चांदूपाकड़ निवासी बिंदी व्यवसायी रामाशंकर गुप्त का कहना है कि पूंजी व आधुनिकता के चलते दिन प्रतिदिन व्यवसाय खत्म होता जा रहा है। बड़े शहरों के व्यवसायी खुद ही कारोबार शुरू कर दिए हैं। मनियर के हाजी गुल मोहम्मद ने बताया कि बिंदी बनाने वाला कच्चा माल चीन से सस्ती कीमत पर आ रहा है। सरकार द्वारा मैटेरियल्स पर सेल्स टैक्स, इनकम टैक्स आदि लगा दिया गया है। लेकिन देहात में बिजली रहती नहीं.., , , लिहाजा वहां काम करना मुश्किल है। ऐसे में यह धंधा दिनों-दिन चौपट होता जा रहा है। कस्बे के बिंदी व्यवसायी शम्सुल होदा का कहना है कि यहां की बिंदी का मुकाबला दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि महानगरों में बनने वाली बिंदियों से नहीं हो सकता। बड़े-बड़े पूंजीपति वहां अपनी कंप्यूटराइज्ड फर्में लगा ली है, एवं माल सस्ते दामों पर उपलब्ध करा रहे हैं। व्यवसायी इरफान का कहना है कि सरकार द्वारा कोई भी सुविधा नहीं दी गई। बैंक व्यवसायियों को ऋण देने में कतराते हैं।
महंगाई, पूंजीवाद और सरकार की उपेक्षा के चलते उपेक्षित इस व्यवसाय के भविष्य को लेकर इससे रोजी-रोटी कमा रहे लोग बेहद चिंतित हैं। जिले के जनप्रतिनिधियों और अफसरों ने भी इस पुश्तैनी धंधे के प्रति संवेदना नहीं दिखाई। मनियर कस्बा सहित आसपास के तमाम गांवों में पिछले कई दशक से महिलाओं के शृंगार में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाली बिंदी देश के विभिन्न हिस्सों तक निर्यात होती थी। यहां की बिंदी को लोग मनिहारी बिंदी के नाम से जानते थे। बिंदियों की पहचान आकर्षक कलाकारी एवं रैपर पर ट्रेडमार्क से हुआ करता थी। कारीगर अपनी सोच एवं शिल्पकारी का कौशल बिंदिया में डालने का प्रयास करते थे। इसके निर्माण में जहां अब धन आड़े आने लगा है, वहीं आधुनिक पैठ ने पारंपरिक व्यवसायियों के धंधा पर डाका डालने का काम किया है। उपेक्षा के कारण यह कारोबार अब हाशिए पर पहुंच गया है। इसके अलावा बिजली की कमी और सुविधाओं के अभाव ने भी इस पर असर डाला है। आधुनिकता की होड़ में चौपट हो रहे इस पारंपरिक व्यवसाय को लेकर जहां बिंदी व्यवसायियों में मलाल है, वहीं क्षेत्रवासी भी कम मर्माहत नहीं। कुछ वर्ष पहले विधायक मारकंडेय सिंह के अथक प्रयास से तत्कालीन कमिश्नर ने यहां पहुंचकर कारोबारियों और कारीगरों को टैक्स छूट दिलाया था। लेकिन उसके बाद आज तक न तो प्रशासन के रहनुमा धंधे की सुध लेने आए और न ही किसी जनप्रतिनिधि ने इसके प्रति दिलचस्पी दिखाई।
चांदूपाकड़ निवासी बिंदी व्यवसायी रामाशंकर गुप्त का कहना है कि पूंजी व आधुनिकता के चलते दिन प्रतिदिन व्यवसाय खत्म होता जा रहा है। बड़े शहरों के व्यवसायी खुद ही कारोबार शुरू कर दिए हैं। मनियर के हाजी गुल मोहम्मद ने बताया कि बिंदी बनाने वाला कच्चा माल चीन से सस्ती कीमत पर आ रहा है। सरकार द्वारा मैटेरियल्स पर सेल्स टैक्स, इनकम टैक्स आदि लगा दिया गया है। लेकिन देहात में बिजली रहती नहीं.., , , लिहाजा वहां काम करना मुश्किल है। ऐसे में यह धंधा दिनों-दिन चौपट होता जा रहा है। कस्बे के बिंदी व्यवसायी शम्सुल होदा का कहना है कि यहां की बिंदी का मुकाबला दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि महानगरों में बनने वाली बिंदियों से नहीं हो सकता। बड़े-बड़े पूंजीपति वहां अपनी कंप्यूटराइज्ड फर्में लगा ली है, एवं माल सस्ते दामों पर उपलब्ध करा रहे हैं। व्यवसायी इरफान का कहना है कि सरकार द्वारा कोई भी सुविधा नहीं दी गई। बैंक व्यवसायियों को ऋण देने में कतराते हैं।
लघु कुटीर उद्योगों की कौन पूछता है अब -इसलिए ही तो कारपोरेट घरानों को लेकर पूरी दुनिया में गुस्सा भड़क रहा है
ReplyDeleteबढि़या जानकारी, हम मनियर को मनियार/मणिहारी, आभूषणों का व्यापार से जोड़ते थे.
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