Sunday, May 23, 2010
पोर्न रहा मंदी के लिए जिम्मेदार
उमेश चतुर्वेदी .
थाईलैंड और फिलीपींस को छोड़ दें तो सेक्स को लेकर एशियाई समाज आज भी पूरी तरह से पारंपरिक बना हुआ है। भारत जैसे देशों में महानगरीय खुलापन को छोड़ दें तो अब भी सार्वजनिक तौर पर सेक्स को वैसी खुली छूट नहीं मिली हुई है, जैसी अमेरिका और यूरोप के देशों में है। इस्लामिक देशों के साथ ही अपने देश के शुद्धतावादी अब भी सेक्स को बेहद गोपनीय और नितांत निजी मानते रहे हैं। सेक्स को लेकर अमेरिकी खुलेपन और एशिया की निजीपन की अवधारणा के अपने फायदे भी हैं तो नुकसान भी कम नहीं है। भारत और इस्लामिक देश खुलेपन की इस अवधारणा के चलते नितांत निजी इस प्रक्रिया को नैतिक तौर पर गलत मानते रहे हैं, जाहिर है इस आधार पर वे इसे सामाजिक तौर पर नुकसानदेह भी मानते हैं। लेकिन अब अमेरिका में भी खुलेपन वाली सेक्स संस्कृति को भी नुकसानदेह माना जाने लगा है। लेकिन फर्क इतना है कि वहां इस नुकसान का आकलन आर्थिक तौर पर माना जा रहा है।
एशियाई समाज के लिए टैबू रहे सेक्स को लेकर खुलेपन वाली संस्कृति के देश में इसे आर्थिक तौर पर हानिकारक माना जाने लगे तो हैरत होगी ही। सितंबर 2008 में लेहमैन ब्रदर्स के दिवालिया घोषित होने के बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था में आई भयानक मंदी और उससे परेशान दुनिया ने मंदी के कारणों की तलाश शुरू की। इसी तलाश में जुटे अमेरिका के प्रमुख आर्थिक जांच आयोग सिक्यूरिटी एंड एक्सचेंज कमीशन अपनी जांच नतीजे में पाया है कि देश की तमाम एजेंसियों के अधिकारी और कर्मचारी अपना ज्यादातर वक्त पोर्न वेबसाइटें देखने में बिताते हैं। सबसे बड़ी बात ये कि अमेरिका की आर्थिक गतिविधियों की निगरानी करने वाले खुद सिक्युरिटी और एक्सचेंज कमीशन के बड़े अधिकारी तक भी अपने दफ्तर का ज्यादातर वक्त पोर्न साइटें देखने में गुजारते हैं। कमीशन का कहना है कि इस वजह से ज्यादातर अधिकारियों की आर्थिक गतिविधियों पर निगाह नहीं रही और गैरकानूनी ढंग से काम होते रहे और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को ढहते देर नहीं लगी। जिसका खामियाजा पूरी दुनिया को अब तक भुगतना पड़ रहा है।
अपने देश से अक्सर खबरें आती हैं कि किसी दफ्तर विशेष में कोई खास वेबसाइट या ब्लॉग को ब्लॉक कर दिया गया। हाल के दिनों में मीडिया से जुड़ी कई ब्लॉग और वेबसाइटों पर कई मीडिया हाउसों ने पाबंदी लगा दी। अर्थव्यवस्था के उफान के दिनों मे अपने देश की तमाम बड़ी कंपनियों ने नौकरी देने-दिलाने वाली वेबसाइटें पर भी पाबंदी लगा दी थीं। ताकि इनका इस्तेमाल करते हुए लोग किसी दूसरी कंपनी में न चलें जायं। चूंकि भारत में अब भी सेक्स एक टैबू है, इसलिए आज भी तकरीबन सभी दफ्तरों में पोर्न साइटें पूरी तरह प्रतिबंधित हैं। फिर सामाजिक तौर पर भी इसे स्वीकृति नहीं मिली है। लिहाजा अगर कहीं खुदा न खास्ता कोई पोर्न वेब साइट खुलती भी है तो लोग खुलेतौर पर अपने दफ्तरों में खोलने से भी हिचकते हैं। लेकिन खुलेपन की सांस्कृतिक आंधी का उदाहरण रहा अमेरिका अब खुद इस खुलेपन के जरिए आए नुकसान को पहली पर मानने और उससे निबटने के लिए तैयार हुआ है। यही वजह है कि ओबामा प्रशासन जल्द ही पूरे अमेरिका के दफ्तरों में हर तरह की पोर्न साइटों पर प्रतिबंधित लगाने का आदेश सुनाने जा रहा है।
दुनिया के दूसरे इलाकों में सेक्स और पोर्न का व्यवसाय भले ही दबे-ढंके चल रहा हो, लेकिन यूरोपीय और अमेरिकी देशों में पोर्न बड़ा व्यवसाय बन गया है। इसे समझने के लिए कंप्यूटर उद्योग के ग्राहकों की लिस्ट ही देखनी समीचीन होगी। कम्प्यूटर तकनीक खरीदने वाले पांच खरीददारों में एक खरीदार सेक्स उद्योग भी है। सेक्स उद्योग ने व्यापार में पहले खर्चीली ‘टी 3 ‘ फोन लाइन खरीदी, ताकि हाई रिजोल्युशन वाली इमेजों के प्रसारण में कोई रुकावट नहीं आए। अमेरिका में सेक्स उद्योग कितना फैला हुआ है, इसे जानने के लिए वहां के सेक्स और पोर्न उद्योग के सालाना टर्न ओवर पर निगाह डालनी होगी। खुद अमेरिकी सरकार, मशहूर पोर्न मैगजीन हसलर के मालिक लैरी फ्लिंट और टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर पोर्न कार्यक्रम गर्ल्स गॉन वाइल्ड के प्रोड्यूसर जो फ्रांसिस के मुताबिक अमेरिका में पोर्न उद्योग का सालाना कारोबार 13 अरब डॉलर का है। जबकि बिजनेस और आर्थिक मामलों की दुनियाभर में मशहूर पत्रिका फॉर्च्युन के मुताबिक अकेले अमेरिका में ही पोर्न का कारोबार 14 अरब डॉलर का है। इसमें इंटरनेट का योगदान कितना है, इसे समझने के लिए 1998 के एक आंकड़ें पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। इसके मुताबिक 1998 में अमेरिका में सिर्फ ऑनलाइन एक बिलियन डॉलर की पोर्न सामग्री की खरीद-बिक्री हुई। उस साल के मुताबिक इंटरनेट के जरिए होने वाली कुल बिक्री का यह 69 फीसदी हिस्सा था। इन बारह सालों में इंटरनेट ने तकनीकी तौर पर काफी प्रगति कर ली है। समाज में खुलापन भी बढ़ा है। जाहिर है, पोर्न सामग्री की बिक्री के आंकड़े और बढ़ ही गए होंगे। इतना ही नहीं, अमेरिकी समाज के जरिए मोटे मुनाफा कमाने वाले इस धंधे में छोटे-मोटे खिलाड़ी नहीं हैं, बल्कि पोर्न का यह धंधा बाकायदा कारपोरेट अंदाज में चलाया जा रहा है। जिसमें सबसे ज्यादा हिस्सेदारी बड़े कारपोरेट घरानों की है। जेनेट एम लारोइ ने अपने लेख ”दि पोर्न रिंग एराउण्ड दि कारपोरेट ह्नाइट कॉलर्स: गेटिंग फिल्थी रिच” में साफ बताया है कि एटी एंड टी, एमसीआई,टाइम वारनर, कॉमकास्ट, इको स्टार कम्युनिकेशन, जनरल मोटर का डायरेक्ट टीवी, हिल्टन, मारीओत्त, शेरेटॉन, रेडीसन, वीसा, मास्टर कार्ड, अमेरिकन एक्सप्रेस जैसी कई कंपनियां पोर्न उद्योग से भारी कमाई कर रही हैं। पोर्न की बिक्री में आई इस बढ़त और बड़े खिलाड़ियों की मौजूदगी से अंदाज लगाना आसान है कि पोर्न साइटों ने अमेरिकी समाज और अर्थव्यवस्था को किस कदर जकड़ लिया है। इसमें समाज का एक बड़ा हिस्सा जुड़ा हुआ है। जाहिर है कि उनकी रोजी-रोटी भी जुड़ी हुई है।
अमेरिका और यूरोप के लिए पोर्न भले ही कुछ वैसा ही व्यापार है, जैसा कि बाकी कारोबार हैं, लेकिन दुनियाभर के मनोवैज्ञानिक कम से कम इस बात से सहमत है कि पोर्न एक बुरी लत है। जिसका इस्तेमाल करने वालों की सामान्य मानवीय संवेदनाएं मर जाती हैं। जाहिर है कि इस लत की से अक्सर भारतीय शुद्धतावादी चेताते रहे हैं। उनका कहना रहा है कि इससे समाज का काफी नुकसान होगा। लेकिन अमेरिकी तर्ज पर अपने यहां के कथित विकासवादी धारा शुद्धतावाद की इस चेतावनी को नजरंदाज करती रही है। उन्हें विकास की राह में शुद्धतावाद की ये धारा रूकावट नजर आती रही है। यह मानने वाले आर्थिक विकास को ही सबकुछ मानते रहे हैं। उनका दर्शन खाओ-पियो पर केंद्रित रहा है। लेकिन जब इस के जरिए दुनिया में सर्वशक्तिमान और प्रेरणादायी मानी जाने वाली अमेरिकी अर्थव्यवस्था धाराशायी हो गई तो अब खाओ-पियो वाला दर्शन भी पोर्न को समाज के लिए हानिकारक मानने लगा है। यही वजह है कि अब अमेरिका तक को अपने यहां पोर्न साइटों पर लगाम लगाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। यानी अमेरिका ने भी मान लिया है कि दफ्तर सिर्फ काम यानी कर्तव्य वाली जगह है, काम यानी सेक्स वाली नहीं। इससे शुद्धतावादी भारतीय विचारधारा को ही बल मिला है।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि 56 बिलियन डॉलर वाला दुनिया का पोर्न कारोबार अमेरिकी फैसले को बिना कुछ किए आंख मूंदकर स्वीकार कर लेगा। अगर ऐसा हो गया तो अमेरिका के 14 अरब डॉलर वाले पोर्न उद्योग का क्या होगा, जिसके साथ हजारों लोगों की रोजी जुड़ी हुई है। जाहिर है अमेरिकी प्रशासन को इस उद्योग से जुड़े लोगों की चिंताओं का भी खयाल रखना होगा। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए देखना ये है कि वह लत में डूब चुके अपने नागरिकों पर लगाम लगा पाती है या नहीं।
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ब्लॉग का नाम हिन्दी में लिखे तो ज्यागा अच्छा hogaa
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा जानकारी और विवेचना से भरी पोस्ट / वास्तव में सेक्स और भ्रष्टाचार का मेल ही सभी समस्याओं का जड़ है /भारत में भी ज्यादातर मंत्री सेक्स के भ्रष्टाचार में लिप्त हैं ,इसकी जाँच हो सकती है ,अगर मंत्रियों के कार्यालय समय और मंत्रालय में मंत्री द्वारा किये गए कार्यों का ईमानदारी से जाँच किया जाय तो /
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