Tuesday, August 6, 2013
Tuesday, June 4, 2013
एनएसी से अरूणा रॉय के निकलने के निहितार्थ
उमेश चतुर्वेदी
यूपीए एक की जिन
योजनाओं की कामयाबी ने यूपीए दो की राह बनाई थी, उनमें महात्मा गांधी राष्ट्रीय
रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा खासी महत्वपूर्ण मानी जाती रही है। इस योजना के
तहत पूरे देश में न्यूनतम मजदूरी देने की अनुशंसा जिस दिन प्रधानमंत्री मनमोहन
सिंह ने खारिज कर दी थी, तकरीबन उसी दिन से माना जाने लगा था कि मशहूर सामाजिक
कार्यकर्ता और इस योजना की सबसे बड़ी पैरोकार अरूणा रॉय सोनिया गांधी की अगुआई
वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद से अलग हो सकती हैं। वैसे तो उनका कार्यकाल खत्म हो
चुका है। लेकिन कार्यकाल बढ़ता, इसके पहले ही उन्होंने खुद सोनिया गांधी को चिट्ठी
लिखकर अपना कार्यकाल नहीं बढ़ाए जाने की मांग कर दी थी। अरूणा रॉय का राष्ट्रीय
सलाहकार परिषद से जाना जितनी बड़ी खबर है, उससे कहीं ज्यादा बड़ी खबर मनरेगा में
जारी भ्रष्टाचार और उस पर तकरीबन पूरे उत्तर भारतीय राज्यों में उठते सवाल भी हैं।
Tuesday, April 23, 2013
इस लट्ठम-लट्ठा के मायने
उमेश चतुर्वेदी
सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा..कहावत बड़ी पुरानी है..आमतौर पर इसका
प्रयोग व्यंग्य में ही किया जाता है। इसके बावजूद अगर प्रधानमंत्री पद पर मोदी की भावी
ताजपोशी को लेकर भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यू के बीच अगर खींचतान इस कदर बढ़ गई
है कि दोनों का 17 साला पुराना गठबंधन टूट के कगार पर आ चुका है तो इसके दो मतलब हैं-एक
या तो भारतीय जनता पार्टी को पूरा यकीन है कि अगली बार अगर नरेंद्र मोदी की अगुआई में
उसने चुनावी खेती की तो इतनी कपास जरूर पैदा हो जाएगी कि दस साल से जारी उसकी सत्ता
रूपी सूत की कमी दूर हो जाएगी। इसके ठीक विपरीत जनता दल यू को लगता है कि मोदी की अगुआई
में एनडीए ने चुनावी खेती की कोशिश की, तो शायद ही इतनी कपास हो कि सत्ता साधने भर
के लिए सूत तैयार किया जा सके। लेकिन सवाल यह है कि क्या मौजूदा लट्ठम-लट्ठा की सिर्फ
और सिर्फ इतनी ही वजह है। सवाल यह भी है कि क्या सचमुच मोदी की अगुआई में नीतीश कुमार
की अगुआई वाला जनता दल यू अपनी अलग राजनीतिक राह चुनने के लिए मजबूर हो जाएगा।
Wednesday, April 10, 2013
अपने-अपने प्रधानमंत्री
उमेश चतुर्वेदी
भोजपुरी इलाकों में एक कहावत कही जाती है...पेड़ पर कटहल और होठ पर
तेल..यानी अभी कटहल पास आया नहीं...कि होठों पर तेल लगाकर उसका स्वाद उठाने और
उसके समस्यामूलक गोंद से बचने की तैयारी कर ली। प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों को
लेकर भारतीय जनता पार्टी में जारी कुछ ज्यादा और कांग्रेस की कमतर चर्चाओं को
देखकर यह मुहावरा बार-बार याद आता है। बेशक इन चर्चाओं को विमर्श का जरिया बनाया
जा रहा है। लेकिन हकीकत यह है कि ये चर्चाएं अभी तक गंभीर विमर्श की बजाय
प्रहसनकारी चर्चाओं के तौर पर ही आगे बढ़ती नजर आ रही हैं। निश्चित तौर पर ऐसी
चर्चाएं उस ब्रिटेन में भी चलती हैं, जहां को संसदीय लोकतंत्र और कार्यपालिका की
वेस्ट मिंस्टर पद्धति हमने भी उधार लेकर उसे अपना बनाने की कोशिश की है। लेकिन
हमें ध्यान रखना चाहिए कि वहां विपक्षी दलों का बाकायदा छाया मंत्रिमंडल काम करता
रहता है।
Friday, March 29, 2013
मुलायम की सियासी पैंतरेबाजी
उमेश चतुर्वेदी
कभी संघ परिवार की तरफ से मौलाना की उपाधि हासिल कर चुके मुलायम सिंह यादव क्या बदल गए हैं ? उत्तर भारत में कहा जाता है कि जीवन के चौथे पड़ाव में व्यक्ति की वैचारिकता में उदारता आने लगती है तो क्या मुलायम सिंह यादव के वैचारिक प्रभामंडल में भी वही बदलाव नजर आने लगा है...ये सवाल इसलिए इन दिनों पूछे जा रहे हैं...क्योंकि मुलायम सिंह यादव भारतीय जनता पार्टी के उस नेता की शान में सार्वजनिक कशीदे पढ़ने लगे हैं, जिसको 1990 में गिरफ्तार करने के उतावलेपन के हद तक वे जा पहुंचे थे। गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या के लिए चली राम रथ यात्रा के सारथी लालकृष्ण आडवाणी के रथ को रोकने के लिए उन दिनों जनता दल के दो नेताओं में होड़ लग गई थी।
Saturday, March 16, 2013
दया याचिका, राजनीति और राष्ट्रपति
उमेश चतुर्वेदी
(प्रथम प्रवक्ता में प्रकाशित)
मुंबई हमले के
दोषी अजमल कसाब और फिर संसद हमले के दोषी अफजल गुरू की फांसी के बाद दया याचिकाओं
के निबटारे को लेकर राजनीति तेज हो गई है। वैसे तो कुछ एक मानवाधिकारवादियों को
छोड़ दें तो अजमल कसाब को माफी ना देने को लेकर पूरा देश एक था। शायद इसकी एक बड़ी
वजह कसाब का पाकिस्तानी आतंकवादी होना था। लेकिन अफजल गुरू की फांसी को लेकर देश
का एक बड़ा तबका और राजनीति विरोध में खड़ी
थी।
Thursday, February 14, 2013
राहुल की चुनौतियां
उमेश चतुर्वेदी
(प्रथम प्रवक्ता में प्रकाशित )
जयपुर चिंतन बैठक
में पार्टी के औपचारिक तौर पर नंबर दो बनने के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी
ने जिस तरह बैठकों का दौर शुरू कर दिया है, उससे साफ है कि पार्टी में भले ही
औपचारिक तौर पर वे नंबर दो हैं, लेकिन असलियत में वे नंबर एक बनने की प्रक्रिया का
एक सोपान पार कर चुके हैं। यह प्रक्रिया कांग्रेस मुख्यालय में 24 जनवरी को नजर
आयी, जब उपाध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी पहली बार वहां पहुंचे। नीली जींस और
सफेद कुर्ते में पहुंचे राहुल के इस पहनावे में भी कांग्रेस की भावी संस्कृति और
कदमों के संकेत देखे गए। माना गया कि राहुल की कांग्रेस आग और अनुभव का मेल होगी।
अपनी नई टीम बनाने के लिए उन्होंने जिस तरह बैठकों का दौर जारी रखा है, उससे अभी
तक कोई साफ संकेत तो नहीं निकले हैं। ना ही राहुल गांधी ने अपनी जुबान खोली है।
लेकिन यह तय है कि उनकी टीम अनुभव की उतनी ही आंच होगी, जितना नई आग को सुलगाने
में उसकी भूमिका होगी।
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