उमेश चतुर्वेदी
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में छात्र संघ बहाली के मसले पर हुए छात्र संघर्ष ने हाल के दिनों में रैंकिंग में टॉप तीन में स्थान बनाने वाले इस विश्वविद्यालय के माहौल पर तो सवाल खड़ा किया ही है, उससे बड़ा सवाल इस संघर्ष से निबटने के तरीकों को लेकर उत्तर प्रदेश के प्रशासनिक और पुलिस अमले पर भी उठा है. बड़ा सवाल यह है कि छात्रों के संघर्ष को रोकने और आपसी तनाव को भापने में वाराणसी प्रशासन क्यों चूक गया? उससे भी बड़ा सवाल यह है कि हजारों कीं संख्या वाले विश्वविद्यालय के दो बड़े छात्रावासों बरला और ब्रोचा को सिर्फ दो घंटे में खाली कराने का तुगलकी फरमान पुलिस को क्यों दिया गया? अपनी लाठियों के जरिए मासूम जनता पर क्रूरता के लिए मशहूर उत्तरप्रदेश की पीएसी के जवानों ने जिस तरह लाठी मार-मार कर छात्रावासों को खाली कराया, उससे सवाल यह उठता है कि क्या उत्तर प्रदेश पुलिस अब भी उन्नसवीं सदीं में ही जी रही है? इक्कीसवीं सदीं में चल रही हैदराबाद की पुलिस अकादमी में दी जाने वाली ट्रेनिंग पर भी सवाल उठाने का वक्त आ गया है, क्योंकि हॉस्टल खाली कराए जाने के प्रशासनिक फैसले के चलते 200 से ज्यादा छात्र घायल हुए हैं. पुलिस लाठियों और बर्बर कार्रवाही से चोर का निशान लेकर ये छात्र पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के अपने गांवों में लौट गए हैं. लेकिन उनमें से ज्यादातर के घरवालों का सवाल है कि आखिर उनके बच्चों का क्या दोष था कि उन्हें हल्दी-दूध पिलाकर और मरहम पट्टी करके पीठ-पैर पर पड़े जख्मों को भरने का इंतजार करना पड़ रहा है.