Friday, May 18, 2018

मध्यप्रदेश के खण्डवा जिले में जल्द खुलेगा सैनिक स्कूल


नई दिल्ली, 18 मई, 2018. मध्यप्रदेश के खण्डवा जिले में जल्द ही सैनिक स्कूल खोला जायेगा। इस संबंध में मध्यप्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री कुंवर विजय शाह ने आज यहां केन्द्रीय गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह से उनके कार्यालय में मुलाकात कर खण्डवा जिले में सैनिक स्कूल खोलने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि खण्डवा जिला भौगोलिक, सड़क एवं रेल मार्ग की दृष्टि से सबसे उपयुक्त जिला है, साथ ही आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण वहां के छात्र एवं छात्राओं के लिए नई संभावनाएं उत्पन्न होगीं। उन्होंने आग्रह किया कि एक हजार क्षमता का पैरा-मिलिट्री स्कूल स्थापित किया जाय, जिससे समूचे क्षेत्र के अनुसूचित जनजाति वर्ग के विद्यार्थियों को इसका लाभ मिल सके। उन्होंने कहा कि सैनिक स्कूल खोलने पर आर्थिक भार का 90 प्रतिशत केन्द्र सरकार वहन करे और 10 प्रतिशत मध्यप्रदेश सरकार द्वारा वहन किया जाय। अपराधों रोकने के लिए शुरू होगा ’जनता संवाद’ कुंवर विजय शाह ने देश में बढ़ते हुए अपराधों को प्रभावी रूप से नियंत्रित किये जाने की दिशा में सुझाव देते हुए कहा कि ’जनता संवाद’ कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिए। इसके अंतर्गत पुलिस और जनता के बीच हर माह एक बार संवाद स्थापित किया जाना चाहिए, जिसमें पुलिस और महिला पुलिस बिना वर्दी के जनता से संवाद स्थापित करें ताकि महिलाओं और आम जनता के बीच पुलिस के प्रति भय का वातावरण समाप्त हो सके। विजय शाह की गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात श्री शाह ने स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस के अवसर पर विद्यालयों में ध्वजारोहण समारोह सैनिकों द्वारा कराये जाने का भी सुझाव दिया। साथ ही शासकीय विद्यालयों का नामकरण शहीद सैनिकों के नाम किये जाने पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि इससे छात्र-छात्राओं में देशप्रेम-देश की रक्षा के प्रति जज्बा जागृत होगा। केन्द्रीय गृहमंत्री श्री राज नाथ सिंह ने श्री विजय शाह द्वारा दिये गये सुझावों को ध्यानपूर्वक सुना और शीघ्र कार्यवाही करने का आश्वासन दिया।

Thursday, May 17, 2018

भोपाल में खुलेगा राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास संस्थान,कैबिनेट ने दी मंजूरी


नई दिल्ली, 17 मई, 2018. मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास संस्थान खोला जायेगा। इसकी मंजूरी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने दी। यह संस्थान निःशक्त जन सशक्तिकरण विभाग के अंतर्गत सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के तहत स्थापित किया जायेगा। एन.आई.एम.एच.आर. का मुख्य उद्देश्य मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के पुनर्वास की व्यवस्था करना, मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास के क्षेत्र में क्षमता विकास तथा मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास के लिए नीति बनाना और अनुसंधान को बढ़ावा देना है। पहले तीन वर्षों में इस परियोजना में लगभग 179.5 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने इस संस्थान के लिए संयुक्त सचिव के तीन पद जिनमें निदेशक का एक पद भी शामिल है, के अलावा प्रोफेसर के दो पद की भी मंजूरी दी है। एन.आई.एम.एच.आर. देश में मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपने किस्म का पहला संस्थान होगा। मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्षमता विकास और पुनर्वास के मामले में यह एक अत्याधिक दक्ष संस्थान के रूप में काम करेगा और केन्द्र सरकार को मानसिक रोगियों के पुनर्वास को प्रभावी व्यवस्था का माॅडल विकसित करने में मददगार साबित होगा। मध्यप्रदेश सरकार ने संस्थान के लिए भोपाल में पांच एकड़ जमीन आवंटित की है। यह संस्थान दो चरणों में तीन वर्ष के भीतर बनकर तैयार हो जायेगा। संस्थान मानसिक रोगियों के लिए सभी तरह की पुनर्वास सेवाएं उपलब्ध कराने के साथ-साथ स्नातकोत्तर और एम.फिल डिग्री तक की शिक्षा की भी व्यवस्था करेगा। संस्थान में नौ विभाग होंगे। इसमें मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास के क्षेत्र में 12 विषयों में डिप्लोमा, सर्टिफिकेट, स्नातक, स्नातकोत्तर एवं एम.फिल डिग्री सहित 12 तरह के पाठ्यक्रम होंगे। पांच वर्षों के भीतर इस संस्था में विभिन्न विषयों में दाखिला लेने वाले छात्रों की चार सौ से ज्यादा होने की संभावना है।

Sunday, May 13, 2018

मां पर अस्फुट विचार


प्रकाशित लेखों और कहीं बोलने-सम्मानित होने जैसी सार्वजनीन गतिविधियों को छोड़कर मैं निजी तथ्यों को सोशल मीडिया पर गोपनहीन करने से बचता हूं.. आज मातृ दिवस है..सोशल मीडिया पर देख रहा हूं..मां-बच्चे के बेहद निजी रिश्ते को भी किस तरह सार्वजनिक कर-करके हम लोग लहालोट हो रहे हैं.. मां से रिश्ता तो ऐसा है कि वह कुमाता भी हो तो वह सांसों में रचा-बसा होता है..इसीलिए हमारे शास्त्र तो मानते ही नहीं माता कुमाता हो सकती है..कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति । आधी जिंदगी गुजर चुकी है..मातृ दिवस पर याद करने बैठा हूं तो जाया माता के साथ ही कितनी माताएं याद आ रही हैं..जाया मां तो मेरे सांस के साथ ही जाएगी... उसके अस्तित्व का क्या नकार और क्या स्वीकार..आप अस्वीकार करके भी उससे दूर थोड़े ही जा सकते हैं..आपकी रक्त वाहिनियों में गुजरते रक्त के हर कण, अस्थियों का एक-एक अणु, मज्जा की हर एक बूंद तो उसकी ही है..उसे क्या याद करना और क्या भूल जाना.. आप भूलते रहिए..लेकिन आपका अस्तित्व ही उसे न भुला पाने का सर्वश्रेेष्ठ उदाहरण है... मुझे अपनी जाया मां की तरह अपनी चाचियों से भी भरपूर प्यार मिलता रहा है...बहू-बच्चों वाली हो गई हैं वे..लेकिन उनके पास साल-छह महीने में पहुंच जाता हूं..अब भी वैसे ही प्यार करती हैं, जैसे जब वे ब्याह कर आई थीं तो करती थीं ...तब अपनी उम्र पांच से लेकर बारह साल तक रही थी... एक चाची तो दूसरी मां की ही तरह है...एक चाची तो अब भी गांव जाता हूं तो मुझे अपने घर में रूकने ही नहीं देती.. बुलावा भेज देती है..बहुएं रहीं भी, तब भी खुद ही चाय-नाश्ता बनाकर खिलाती-पिलाती है..जिसके लिए आज भी अपनी मां की तरह बबुआ ही हूं... मुझे उस बूढ़ी मां का दुलार आज भी भिगो रहा है, जब अपने चौथेपन में देवरिया के किसी गांव से अपने परिवार को छोड़कर मेरे गांव आ गई थीं.. बाबू ही कहती थीं..मांग-चोंग कर ही गुजारा करती थी..लेकिन अपना पूरा प्यार मुझ पर उड़ेल देती थी.. जब तीसरी कक्षा में था तो एक रात वह इस दुनिया से कूच कर गई थी..उस दिन का सूनापन आज भी जब याद आता है..अजीब-सी हूक और खालीपन से भर देता है... मइया यानी दादी तो 14 साल की उम्र तक मेरी दूसरी मां ही रहीं...वह मेरे पिता की ही मां नहीं थीं..मेरी भी थीं..हमारी ही नहीं..मेरे चचेरे चाचाओं की भी..चाचा भी बुढ़़ापे की ओर चल पड़े हैं और आज भी उन्हें याद करते हैं..मां तो वह अपने देवर यानी मेरे छोटे बाबा की भी थीं..जब आखिरी विदाई देने के लिए उन्हें कंधे पर उठाया था..तब छोटका बाबा के मुंह से उनके लिए निकले शब्द जब भी याद आते हैं, गहरे तक भिगो जाते हैं.. काकी को कैसे भूल सकता हूं..बाबूजी की चाची..उनकी सुन हम भी उन्हें काकी ही कहते थे..जब भी मां नहीं रहती थीं..हमारी मदद को आगे आने में देर नहीं लगाती थीं.. अपनी सास को भी भूल पाना आसान नहीं हैं..सास जी से साल-छह महीने में मिलता हूं तो उनकी आंखों की चमक ही बताती है कि वे मेरे लिए क्या हैं..और उनके लिए मैं बच्चे के अलावा क्या हूं.. जाया मां का अहसान चुका पाना इस जन्म में क्या, किसी भी जन्म में संभव नहीं..लेकिन अपने जीवन पर अहसानों की फेहरिश्त की ओर देखता हूं तो ऐसी कई मांएं नजर आती हैं..किन-किन का अहसान चुका सकता हूं..

Wednesday, January 24, 2018

साहित्य मनुष्य को बेहतर बनाता है

मुम्बई, "उपन्यास और कविताएं वस्तुतः जीवन और समाज की धड़कन होती है। व्यक्तित्व  चेहरों से याद रखे जाते हैं या कृति के माध्यम से। लेखक अपनी कृति से सदैव जीवित रहता है ।"यह उद्गार हेमंत फाउंडेशन पुरस्कार समारोह के मुख्य अतिथि भोपाल से पधारे आईसेक्ट यूनिवर्सिटी के रिसर्च जनरल अनुसंधान के संपादक सुप्रसिद्ध कवि विजयकांत वर्मा ने 20 जनवरी 2018 को श्री राजस्थानी सेवा संघ के सभागार में व्यक्त किए।
 कार्यक्रम का आरंभ दीप प्रज्वलन से शुरू हुआ। अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्था की अध्यक्ष सुप्रसिद्ध साहित्यकार संतोष श्रीवास्तव ने अपने स्वागत भाषण में कहा
"यह पुरस्कार हमारे लिए एक इम्तिहान की तरह है जिसे हम जीवन की चुनौती मानकर हर साल आयोजित करते हैं और आयोजित करते रहेंगे।" सितारों के आगे जहां और भी है अभी इश्क के इम्तिहां और भी है"
आयोजन की प्रस्तावना तथा संस्था का परिचय कथाकार पत्रकार संस्था की सचिव प्रमिला वर्मा ने दिया। उन्होंने विजय वर्मा कथा सम्मान एवं हेमंत स्मृति कविता सम्मान का संक्षिप्त इतिहास भी बतलाया। विजय वर्मा  सम्मान के लिए चयनित पुस्तक "दीनानाथ की चक्की" के बारे में बोलते हुए सुप्रसिद्ध पत्रकार हरीश पाठक ने कहा "अशोक मिश्र की कहानियां विमर्शवादी या फैशनेबल कहानियां नहीं है।उन्होंने संग्रह की कहानी `पत्रकार बुद्धिराम @पत्रकारिता डॉट कॉम" का विशेष उल्लेख किया । उन्होंने कहा कि इस कहानी में पत्रकारिता का पूरा सच बहुत ही विश्वसनीय ढंग से लिखा गया है। पाठक ने अशोक मिश्र की कहानी दीनानाथ की चक्की और अन्य की विस्तार से चर्चा की ।
हेमंत स्मृति कविता सम्मान के लिए चयनित पुस्तक वसंत के पहले दिन से पहले पर नवभारत टाइम्स मुंबई के सहायक संपादक हरि मृदुल ने कहा "राकेशजी की कविता चालू मुहावरों और बड़बोलेपन से पूरी तरह मुक्त है इसीलिए गहरी हैपाठक से बतियाती और संवेदना को छूती इस तरह की कविताएं काफी कम लिखी जा रही हैं । इन्हीं अर्थों में "बसन्त के पहले दिन से पहले " एक मूल्यवान संग्रह है उनके पास प्रतिरोध की इकाई प्रभावशाली कविताएं हैं। विजय वर्मा कथा सम्मान सूर्यबालाजी के कर कमलों द्वारा अशोक मिश्र एवं विजयकांत वर्मा द्वारा हेमंत स्मृति कविता सम्मान राकेश पाठक को प्रदान किया गया ।
अपने वक्तव्य में कथाकार अशोक मिश्र ने कहा "मेरे लिए कहानी लिखना किसी आम आदमी की पीड़ा को वाणी देने जैसा है । मेरी कोशिश होती है कि अन्याय, असमानतापक्षपातअव्यवस्थाशोषण के दुष्चक्र में पिसते और मेहनत मजदूरी कर गुजारा करने वाले मजदूर या किसान की दशा का थोड़ा सा चित्रण कर सके तो शायद लिखना सार्थक कहलाएगा ।"
डॉ राकेश पाठक ने संस्था को धन्यवाद देते हुए कहा "कविता आम आदमी को बेहतर मनुष्य बनाने का काम करती है। इस हिंसक समय में प्रेम कविताएं मनुष्यता का संदेश देती हैं। उन्होंने अपनी एक प्रेम कविता का पाठ रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया।जेजेटी यूनिवर्सिटी के कुलपति एवं राजस्थानी सेवा संघ के प्रमुख विशिष्ट अतिथि विनोद टीबड़ेवाला ने राजनीतिक गतिविधियों पर गहरी चिंता व्यक्त की और साहित्यकारों की लेखनी से  परिवर्तन होने का आव्हान किया। समारोह की अध्यक्ष सुप्रसिद्ध साहित्यकार सूर्यबाला ने कहा।
"यह दोनों पुरस्कार एक बहन एक मां द्वारा अपने दिवंगत रचनाकार भाई और सगे बेटे को दी गई श्रद्धांजलि है । संतोषजी ने अपने दुख के अंकुरों को रोपकर उन्हें संवेदना और रचनात्मकता के घने छायादार वृक्ष में परिवर्तित कर दिया। इन पुरस्कारों का हमारे महानगर के साहित्यिक परिदृश्य को बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है और इस मंच से पुरस्कृत नामों की विश्वसनीयता पर कभी सवाल नहीं उठे।"
कवि गजलकार देवमणि पांडेय ने कार्यक्रम का संचालन किया।

कार्यक्रम में शहर के वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकारिता की दुनिया से जुड़े  संपादक और साहित्यकारों की गरिमामय उपस्थिति रही। विशेष रूप से  कानपुर से आए वाणी के संपादक श्री हरि वाणी, झांसी से आए वरिष्ठ कवि साकेत सुमन चतुर्वेदी ,कोलकाता से आए वरिष्ठ कवि कपिल आर्यसमाजसेवी विजय वर्माधीरेंद्र अस्थानासूरजप्रकाशबृजभूषण साहनीराजेश विक्रांतफिरोज खानअसीमा भट्ट ,ज्योति गजभिए ,रीता रामदासअमर त्रिपाठी ,मुरलीधर पांडे,नागेन्द्र नाथ गुप्ता,विद्याभूषण त्रिवेदी,आभा दवे ,वनमाली चतुर्वेदी,,सुनील सिंह  आदि रचनाकारों की उपस्थिति विशेष रूप से दर्ज़ की गई।

सुबह सवेरे में