Friday, May 25, 2018

फड़नवीस का अनुकरणीय काम

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डॉ. वेदप्रताप वैदिक आजकल मैं मुंबई में हूं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने आज मुझे ऐसी भेंट दी है, जो आज तक किसी ने नहीं दी है। वे देश के ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने सरकार के सारे अंदरुनी काम-काज से अंग्रेजी के बहिष्कार का आदेश जारी कर दिया है। ऐसा करके उन्होंने महात्मा गांधी, गुरु गोलवलकर और डाॅ. राममनोहर लोहिया का सपना साकार किया है। महाराष्ट्र सरकार के सारे सरकारी अधिकारी अब अपना सारा काम-काज मराठी में करेंगे। यह नियम मंत्रियों पर भी लागू होगा। जाहिर है कि इस नियम का अर्थ यह नहीं है कि मराठी के अलावा किसी भी अन्य भारतीय भाषा में भी काम नहीं होगा। केंद्र से व्यवहार करने में हिंदी का प्रयोग तो संवैधानिक आवश्यकता है। इसी तरह मुंबई-जैसे बहुभाषी, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शहर में किसी एक भाषा से काम नहीं चल सकता। इस शहर में तो कुछ विदेशी भाषाएं भी चलें तो उन्हें हमें बर्दाश्त करना पड़ेगा लेकिन कितने दुख की बात है कि आजादी के 70 साल बाद भी हमारे दूर-दराज के जिलों में भी राज्य सरकारें अपना काम-काज अंग्रेजी में करती हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने भाषा के मामले में देश के सभी मुख्यमंत्रियों को सही और अनुकरणीय रास्ता दिखाया है। मैं देवेंद्रजी से कहूंगा कि आप हिम्मत करें और विधानसभा में भी सारे कानून मूल हिंदी और मराठी में बनवाएं और यही नियम महाराष्ट्र की अदालतों पर लागू करवाएं। महाराष्ट्र की सभी पाठशालाओं, विद्यालयों और महाविद्यालयों में चलनेवाली अंग्रेजी की अनिवार्य पढ़ाई पर प्रतिबंध लगाएं। जो भी स्वेच्छा से विदेशी भाषाएं पढ़ना चाहें, जरुर पढ़ें। यदि वे ऐसा करवा सकें तो वे भारत को दुनिया की महाशक्ति बनानेवाले महान पुरोधा माने जाएंगे, जो कि मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने से भी बड़ी बात है।

हिन्दी गजल और दुष्यंत कुमार


डॉ.सौरभ मालवीय
हिन्दी गजल हिन्दी साहित्य की एक नई विधा है. नई विधा इसलिए है, क्योंकि गजल मूलत फारसी की काव्य विधा है. फारसी से यह उर्दू में आई. गजल उर्दू भाषा की आत्मा है. गजल का अर्थ है प्रेमी-प्रेमिका का वार्तालाप. आरंभ में गजल प्रेम की अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम थी, किन्तु समय बीतने के साथ-साथ इसमें बदलाव आया और प्रेम के अतिरिक्त अन्य विषय भी इसमें सम्मिलित हो गए. आज हिन्दी गजल ने अपनी पहचान बना ली है. हिन्दी गजल को शिखर तक पहुंचाने में समकालीन कवि दुष्यंत कुमार की भूमिका सराहनीय रही है. वे दुष्यंत कुमार ही हैं, जिन्होंने हिन्दी गजल की रचना कर इसे विशेष पहचान दिलाई. दुष्यंत कुमार का जन्म 1 सितम्बर, 1933 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के गांव राजपुर नवादा में हुआ था. उनका पूरा नाम दुष्यंत कुमार त्यागी था. उन्होंने इलाहबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी. उन्होंने आकाशवाणी भोपाल में सहायक निर्माता के रूप में कार्य शुरू किया था. प्रारंभ में वे परदेशी के नाम से लिखा करते थे, किन्तु बाद में वे अपने ही नाम से लिखने लगे. वे साहित्य की कई विधाओं में लेखन करते थे. उन्होंने कई उपन्यास लिखे, जिनमें सूर्य का स्वागत, आवाजों के घेरे, जलते हुए वन का बसंत, छोटे-छोटे सवाल, आंगन में एक वृक्ष, दुहरी जिंदगी सम्मिलित हैं. उन्होंने एक मसीहा मर गया नामक नाटक भी लिखा. उन्होंने काव्य नाटक एक कंठ विषपायी की भी रचना की. उन्होंने लघुकथाएं भी लिखीं. उनके इस संग्रह का नाम मन के कोण है. उनका गजल संग्रह साये में धूप बहुत लोकप्रिय हुआ. दुष्यंत कुमार की गजलों में उनके समय की परिस्थितियों का वर्णन मिलता है. वे केवल प्रेम की बात नहीं करते, अपितु अपने आसपास के परिवेश को अपनी गजल का विषय बनाते है. वे कहते हैं- ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा यहां तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियां मुझे मालूम है पानी कहां ठहरा हुआ होगा यहां तो सिर्फ गूंगे और बहरे लोग बसते हैं ख़ुदा जाने वहां पर किस तरह जलसा हुआ होगा उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से भ्रष्टाचार का उल्लेख किया. वे कहते हैं- इस सड़क पर इस कद्र कीचड़ बिछी है हर किसी का पांव घुटने तक सना है शासन-प्रशासन की व्यवस्था पर भी वे कटाक्ष करते हैं. वे कहते हैं- भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ आजकल दिल्ली में है जेरे बहस ये मुद्दा वे सामाजिक परिस्थितियों पर भी अपनी लेखनी चलाते हैं. समाज में पनप रही संवेदनहीनता और मानवीय संवेदनाओं के ह्रास पर वे कहते हैं- इस शहर मे वो कोई बारात हो या वारदात अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं खिड़कियां वे पलायनवादी कवि नहीं हैं. उन्होंने परिस्थितियों के दबाव में पलायन को नहीं चुना. वे हर विपरीत परिस्थिति में धैर्य के साथ आगे बढ़ने की बात करते हैं. उनका मानना था कि अगर साहस के साथ मुकाबला किया जाए, तो कोई शक्ति आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती. वे कहते हैं- एक चिंगारी कहीं से ढूंढ लाओ दोस्तों इस दीये में तेल से भीगी हुई बाती तो है कैसे आकाश में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालों यारों वास्तव में दुष्यंत कुमार आम आदमी के कवि हैं. उन्होंने आम लोगों की पीड़ा को अपनी गजलों में स्थान दिया. उनके दुखों को गहराई से अनुभव किया. वे कहते हैं- हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए वे एक ऐसे समाज की कल्पना करते थे, जिसमें कोई अभाव में न रहे. किन्तु देश में गरीबी है. लोग अभाव में जीवन व्यतीत कर रहे हैं. उन्हें भरपेट खाने को भी नहीं मिलता. इन परिस्थतियों से दुष्यंत कुमार कराह उठते हैं. वे कहते हैं- कहां तो तय था चिरागां हर एक घर के लिए कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए यहां दरख्तों के साये में धूप लगती है चलो यहां से चलें और उम्र भर के लिए जियें तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए दुष्यंत कुमार ने बहुत कम समय में वह लोकप्रियता प्राप्त कर ली थी, जो हर किसी को नहीं मिलती. किन्तु नियति के क्रूर हाथों ने उन्हें छीन लिया. उनका निधन 30 दिसम्बर, 1975 में हुआ. केवल 42 वर्ष की अवस्था में हिन्दी गजल का एक नक्षत्र हमेशा के लिए अस्त हो गया. हिन्दी साहित्य जगत में उनकी कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता.

प्रेस विज्ञप्ति


पत्रकार को सर्वसमावेशक की भूमिका निभानी चाहिए: वैद्य नागपुर,25 मई। ख्यातिलब्ध विचारक और वयोवृद्ध पत्रकार मा. गो. वैद्य ने कहा कि पत्रकार और संपादक को सर्वसमावेशक की भूमिका निभानी चाहिए| समाचार पत्र भी समावेशी होना चाहिए| समाचार पत्र के वैचारिक पृष्ठ पर सभी प्रकार के विचारों को अवसर दिया जाना चाहिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी समावेशी है। जो लोग संघ को नहीं पहचानते हैं, वे इसे 'एक्सक्लूसिव' की नजर से देखते हैं। वैद्य ने यह विचार माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की और से डी. लिट. (विद्या वाचस्पति) की मानद उपाधि से सम्मानित किये जाने के अवसर पर व्यक्त किया। विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भारत के उपराष्ट्रपति एवं विश्वविद्यालय के कुलाध्यक्ष एम वैंकैया नायडू ने श्री वैद्य को डी. लिट. की मानद उपाधि दिए जाने की घोषणा की थी। स्वास्थ्य कारणों से श्री वैद्य विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में नहीं आ सके थे। नागपुर में आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए श्री वैद्य ने कहा कि वे संयोगवश पत्रकारिता के पेशे में आए, जबकि वे मूलतः शिक्षक हैं। जनसंघ के नागपुर क्षेत्र के संगठन मंत्री रहे। बीच-बीच में संघ की प्रतिनिधि सभा के प्रस्तावों का लेखन करते थे। इसे देखकर तत्कालीन सरकार्यवाह बालासाहब देवरस ने उन्हें 'तरुण भारत' का संपादक बना दिया। उन्होंने कहा कि संपादक रहते उन्होंने कभी-भी अपने नाम से लेख नहीं लिखा, बल्कि'नीरज' के नाम से लिखते रहे। श्री वैद्य ने कहा कि तरूण भारत को संघ के मुख्य पत्र के रूप में देखा जाता था, लेकिन साम्यवादी और कांग्रेस के विचारों को भी स्थान दिया जाता था। विश्वविद्यालय के कुलपति जगदीश उपासने, कुलाधिसचिव लाजपत आहूजा और कुलसचिव संजय द्विवेदी ने श्री वैद्य को डी. लिट. की उपाधि से सम्मानित किया। मंच पर उनकी पत्नी सुनंदा वैद्य भी उपस्थित थीं। इसके पूर्व कुलपति श्री उपासने ने उन्हें डी. लिट. की मानद उपाधि दिए जाने की विधिवत घोषणा की। कुलाधिसचिव श्री आहूजा ने प्रशस्ति पत्र का वाचन किया, जबकि कार्यक्रम का संचालन कुलसचिव श्री द्विवेदी ने किया। इस अवसर पर समाजसेवी विराग पाचपोर, पत्रकार कृष्ण नागपाल, नागपुर के मीडिया संस्थानों के प्रतिनिधि, वरिष्ठ नागरिक, विश्वविद्यालय के आदित्य जैन आदि उपस्थित थे। आभार सहायक कुलसचिव गिरीश जोशी ने माना।

Friday, May 18, 2018

मध्यप्रदेश के खण्डवा जिले में जल्द खुलेगा सैनिक स्कूल


नई दिल्ली, 18 मई, 2018. मध्यप्रदेश के खण्डवा जिले में जल्द ही सैनिक स्कूल खोला जायेगा। इस संबंध में मध्यप्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री कुंवर विजय शाह ने आज यहां केन्द्रीय गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह से उनके कार्यालय में मुलाकात कर खण्डवा जिले में सैनिक स्कूल खोलने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि खण्डवा जिला भौगोलिक, सड़क एवं रेल मार्ग की दृष्टि से सबसे उपयुक्त जिला है, साथ ही आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण वहां के छात्र एवं छात्राओं के लिए नई संभावनाएं उत्पन्न होगीं। उन्होंने आग्रह किया कि एक हजार क्षमता का पैरा-मिलिट्री स्कूल स्थापित किया जाय, जिससे समूचे क्षेत्र के अनुसूचित जनजाति वर्ग के विद्यार्थियों को इसका लाभ मिल सके। उन्होंने कहा कि सैनिक स्कूल खोलने पर आर्थिक भार का 90 प्रतिशत केन्द्र सरकार वहन करे और 10 प्रतिशत मध्यप्रदेश सरकार द्वारा वहन किया जाय। अपराधों रोकने के लिए शुरू होगा ’जनता संवाद’ कुंवर विजय शाह ने देश में बढ़ते हुए अपराधों को प्रभावी रूप से नियंत्रित किये जाने की दिशा में सुझाव देते हुए कहा कि ’जनता संवाद’ कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिए। इसके अंतर्गत पुलिस और जनता के बीच हर माह एक बार संवाद स्थापित किया जाना चाहिए, जिसमें पुलिस और महिला पुलिस बिना वर्दी के जनता से संवाद स्थापित करें ताकि महिलाओं और आम जनता के बीच पुलिस के प्रति भय का वातावरण समाप्त हो सके। विजय शाह की गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात श्री शाह ने स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस के अवसर पर विद्यालयों में ध्वजारोहण समारोह सैनिकों द्वारा कराये जाने का भी सुझाव दिया। साथ ही शासकीय विद्यालयों का नामकरण शहीद सैनिकों के नाम किये जाने पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि इससे छात्र-छात्राओं में देशप्रेम-देश की रक्षा के प्रति जज्बा जागृत होगा। केन्द्रीय गृहमंत्री श्री राज नाथ सिंह ने श्री विजय शाह द्वारा दिये गये सुझावों को ध्यानपूर्वक सुना और शीघ्र कार्यवाही करने का आश्वासन दिया।

Thursday, May 17, 2018

भोपाल में खुलेगा राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास संस्थान,कैबिनेट ने दी मंजूरी


नई दिल्ली, 17 मई, 2018. मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास संस्थान खोला जायेगा। इसकी मंजूरी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने दी। यह संस्थान निःशक्त जन सशक्तिकरण विभाग के अंतर्गत सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के तहत स्थापित किया जायेगा। एन.आई.एम.एच.आर. का मुख्य उद्देश्य मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के पुनर्वास की व्यवस्था करना, मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास के क्षेत्र में क्षमता विकास तथा मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास के लिए नीति बनाना और अनुसंधान को बढ़ावा देना है। पहले तीन वर्षों में इस परियोजना में लगभग 179.5 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने इस संस्थान के लिए संयुक्त सचिव के तीन पद जिनमें निदेशक का एक पद भी शामिल है, के अलावा प्रोफेसर के दो पद की भी मंजूरी दी है। एन.आई.एम.एच.आर. देश में मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपने किस्म का पहला संस्थान होगा। मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्षमता विकास और पुनर्वास के मामले में यह एक अत्याधिक दक्ष संस्थान के रूप में काम करेगा और केन्द्र सरकार को मानसिक रोगियों के पुनर्वास को प्रभावी व्यवस्था का माॅडल विकसित करने में मददगार साबित होगा। मध्यप्रदेश सरकार ने संस्थान के लिए भोपाल में पांच एकड़ जमीन आवंटित की है। यह संस्थान दो चरणों में तीन वर्ष के भीतर बनकर तैयार हो जायेगा। संस्थान मानसिक रोगियों के लिए सभी तरह की पुनर्वास सेवाएं उपलब्ध कराने के साथ-साथ स्नातकोत्तर और एम.फिल डिग्री तक की शिक्षा की भी व्यवस्था करेगा। संस्थान में नौ विभाग होंगे। इसमें मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास के क्षेत्र में 12 विषयों में डिप्लोमा, सर्टिफिकेट, स्नातक, स्नातकोत्तर एवं एम.फिल डिग्री सहित 12 तरह के पाठ्यक्रम होंगे। पांच वर्षों के भीतर इस संस्था में विभिन्न विषयों में दाखिला लेने वाले छात्रों की चार सौ से ज्यादा होने की संभावना है।

सुबह सवेरे में