उमेश चतुर्वेदी
दिल्ली विधानसभा की चुनावी आहट के बीच आखिरकार भोजपुरी मैथिली अकादमी का शुभारंभ हो ही गया। दिल्ली के श्रीराम सेंटर में पांच अगस्त की शाम जिस तरह पूरबिया लोग जुटे, उससे साफ है कि राजधानी की सांस्कृतिक दुनिया में अब भदेसपन के पर्याय रहे लोग अपनी छाप छोड़ने के लिए तैयार हो चुके हैं। राजधानी में चालीस लाख के करीब भोजपुरी और पूरबिया मतदाता हैं। जाहिर है दिल्ली सरकार की इस पर निगाह है। एक साथ मतदाताओं के इतने बड़े वर्ग को नजरअंदाज कर पाना आसान नहीं होगा। लिहाजा उन्हें भी एक अकादमी दे दी गई है। इस अकादमी के उद्घाटन समारोह की सबसे उल्लेखनीय चीज रही संजय उपाध्याय के निर्देशन में पेश विदेसिया की प्रस्तुति। भोजपुरी के भारतेंदु भिखारी ठाकुर की इस अमर रचना को संजय की टीम ने जबर्दस्त तरीके से पेश किया। खासतौर पर प्राण प्यारी की भूमिका में शारदा सिंह और बटोही की भूमिका में अभिषेक शर्मा का अभिनय शानदार रहा।
लेकिन इस उद्घाटन में खटकने वाली बात ये रही कि पूरी तरह सांस्कृतिक इस मंच को सियासी रंग देने की पुरजोर कोशिश की गई। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अपने निर्धारित वक्त से करीब तीन घंटे देर से पहुंचीं। और आखिर में मंच पर वे ही वे रहीं। अगर किसी ने उनका साथ दिया तो अकादमी के सदस्यों और उपाध्यक्ष ने। सांस्कृतिक मंच को सियासी को सियासी रंग देने मे आगे रहे अकादमी के सदस्य अजित दुबे - उन्होंने एक तरह से मौजूद दर्शकों से अपील ही कर डाली कि जो लोग आपके मान सम्मान का खयाल करते हैं - उनका खयाल आप भी रखिए। यानी शीला दीक्षित को नवंबर के विधानसभा चुनावों में वोट दीजिए।
उद्घाटन समारोह में एक बात और बार-बार खटकी। इस समारोह को भोजपुरी या मैथिली से ना जोड़कर बिहार से जोड़ दिया गया। भोजपुरी भाषा संस्कृति सिर्फ बिहार में नहीं है - बल्कि बस्ती से लेकर गोरखपुर, बलिया होते हुए बनारस तक उत्तर प्रदेश का एक बड़ा इलाका भोजपुरी भाषी है और राजधानी में वहां के बाशिंदे भी बहुत हैं। भोजपुरी का पर्याय बिहार नहीं है। अकादमी को ये सोचना होगा - अन्यथा आने वाले दिनों कई तरह की समस्याएं उठ खड़ी होंगी।
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