ये टिप्पणी कहीं के लिखी गई थी..अब ब्लॉग पर साया की जा रही है
मोर्चा संभालें महिलाएं
उमेश चतुर्वेदी
जिंदगी
के तमाम मोर्चों पर बदलते पैमानों के बावजूद अब भी महिलाओं को लेकर भारतीय समाज
पारंपरिक ढंग से ही सोचता रहा है। उसकी नजर में महिलाएं सुंदरता और कोमलता का ही
प्रतीक हैं। हालांकि पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों में तैनात महिलाएं अपने जज्बे
और बहादुरी के साथ ही कर्त्तव्यपरायणता की सफल परीक्षा देती रही हैं। इस वजह से
महिलाओं की सेना में तैनाती तो की जाने लगी, लेकिन शायद पारंपरिक आग्रहों का ही
असर रहा है कि दुश्मन के खिलाफ मोर्चे पर तैनाती को लेकर भारतीय सेना अब तक तैयार
नहीं हो पाई है।
हालांकि जिस पश्चिमी अवधारणा की बनिस्बत हमने नारी स्वतंत्रता और
बराबरी के विचार को मंजूर किया है, उन पश्चिमी देशों में महिलाएं वैसे ही जांबाजी
के साथ मोर्चा संभालती हैं, जैसे उनके पुरूष सहकर्मी अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं।
अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ कार्रवाई रही हो या फिर खाड़ी युद्ध, अमेरिका की
अगुआई वाली पश्चिमी सेनाओं में महिला सैनिकों और अधिकारियों ने भी अपनी जिम्मेदारी
बखूबी निभाई। लेकिन अब भारत में ज्यादा दिनों तक महिला जांबाजों को मोर्चे से दूर
नहीं रखा जा सकेगा। अब तक सेना में महिलाओं की तैनाती मेडिकल और दूसरी सेवाओं तक
ही सीमित रही है। लेकिन अब रक्षा मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थायी समिति ने
महिलाओं की सैनिक कार्यों में भागीदारी को बढ़ावा देने की वकालत की है। समिति ने
सैनिक स्कूलों में लड़कियों को दाखिला देने की सिफारिश की है। दरअसल सैनिक स्कूलों
की स्थापना राष्ट्रीय रक्षा अकादमी और दूसरी सैनिक अकादमियों के लिए योग्य कैडेट
तैयार करने के लिए की गई थी। ताकि देश को होनहार सैनिक अफसर मिल सकें। अब तक इनमें
लड़कियों को दाखिला नहीं दिया जाता। संसदीय समिति को इसी पर एतराज है। वैसे
महिलाओं को मोर्चे पर भेजने की दिशा में मध्य प्रदेश सरकार पहल कर चुकी है। उसने
केंद्र सरकार को राज्य में लड़कियों के लिए सैनिक स्कूल खोलने का प्रस्ताव भेजा
था। हालांकि उसे केंद्र सरकार ने नामंजूर कर दिया था। समिति की इस सिफारिश के बाद
मध्य प्रदेश सरकार अपनी पीठ थपथपा सकती है। वैसे रक्षा मंत्रालय अपनी तरफ से
लड़कियों को इन स्कूलों से दूर रखने की कोशिश में जुटा है। रक्षा मंत्रालय को यह
नहीं भूलना चाहिए कि महिलाओं को सुकोमल मानने की भारतीय अवधारणा के बीच ही कैकेयी
से लेकर रानी लक्ष्मीबाई तक वीरांगनाओं ने युद्धभूमि में ना सिर्फ अपने जौहर
दिखाए, बल्कि इतिहास में अपना नाम भी दर्ज कराया। बहरहाल संसदीय समिति का तर्क है
कि जब अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में महिलाएं मोर्चा संभाल सकती हैं तो अपने
देश की जांबाज लड़कियों को ऐसे मौके क्यों नहीं दिए जा सकते। जाहिर है कि रक्षा
मंत्रालय के पास इस सवाल का माकूल जवाब नहीं हो सकता। ऐसे में देर-सवेर उसे झुकना
ही पड़ेगा और सैनिक स्कूलों और एनडीए में लड़कियों को दाखिला देना ही पड़ेगा।
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