प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और मीडिया स्टडीज ग्रुप (एमएसजी) ने मंगलवार
को संयुक्त तौर पर “चर्चाः विकल्प की राजनीति का भविष्य” विषय पर एक
कार्यक्रम का आय़ोजन किया। चर्चा का संचालन करते हुए मीडिया स्टडीज ग्रुप के
अध्यक्ष अनिल चमड़िया ने कहा कि आम आदमी हमेशा अपनी राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक
समस्याओं के समाधान के लिए एक नए और मजबूत, सुदृढ़ विकल्प की तलाश करता रहा है।
इसी लिहाज से आम आदमी बनाम आम आदमी पार्टी की राजनीति को देखा जाना चाहिए। लेकिन ‘आप’ में प्रशांत भूषण
औऱ योगेंद्र यादव को लेकर जो कुछ हो रहा है वह निराशाजनक है।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अरुण कुमार ने कहा कि वैकल्पिक
राजनीति में आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक तीनों तरह के विकल्पों को शामिल किया जाना
चाहिए। 1990 के बाद से भारत की नीतियों पर मल्टीनेशल का कब्जा हो गया है और आम
आदमी हाशिये पर आ गया है। आम आदमी पार्टी बनी तो उसके साथ एक दस्तावेज बना जिसमें
हाशिये के लोगों की बात शामिल थी लेकिन वो दस्तावेज कभी भी चर्चा के लिए सावर्जनिक
नहीं किया गया। कुमार ने कहा, पार्टी को डर था कि चुनाव से पहले इसे जारी कर दिया
गया तो मध्यवर्ग या कोई और तबका नाराज हो जाएगा।
‘आप’ ने 2013 में टिकट
देने से पहले मोहल्ला कमेटियां बनाकर उम्मीदवारों का चुनाव किया। इस विकेंद्रीकरण
की जरूरत थी, लेकिन 2015 के चुनाव में मोहल्ला कमेटियां गायब हो गईं। उन्होंने यह
भी कहा कि वैकल्पिक राजनीति केवल बिजली, पानी के मुद्दे पर लंबे समय तक नहीं चल
सकती। आम आदमी पार्टी को विकल्प बनने के
लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तीनों विषयों को साथ लेकर चलना होगा नहीं तो
पार्टी बिखराव की तरफ चली जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील एन.डी. पंचौली ने कहा कि सामाजिक बदलावों
के लिए राजनीतिक दल जरूरी हो सकते हैं लेकिन उसके लिए सत्ता का रास्ता अख्तियार
किया जाए यह जरूरी नहीं है। बदलाव छोटे छोटे स्तरों पर ही किया जा सकता है।
वैकल्पिक तौर पर परिवर्तन के लिए जन संवाद की कड़ी को मजबूत करना होगा। इसके लिए
जरूरी है कि सबकी भावनाओं का कद्र किया जाए। आम आदमी पार्टी की शुरुआत जिस तौर
तरीके से हुई है औऱ उसमें अभी वहां जो दिक्कत हो रही है वह स्वाभाविक है। अन्ना
आंदोलन के दौरान मंच पर बजने वाले वंदे मातरम या अन्य राष्ट्रवादी गानों के धुन व
नारों से ही यह स्पष्ट हो चुका था कि ये लोग दूसरे दलों से भिन्न नहीं हैं।
वहीं जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मणेंद्रनाथ ठाकुर ने कहा
कि यह मंथन का वक्त है। फिलहाल आम आदमी पार्टी में अभी जो कुछ हो रहा है उससे समाज
में भ्रम की स्थिति बनी हुई है। इस नई पार्टी में जो हो रहा है वह संदेह का माहौल
खड़ा कर रहा है। उन्होंने कहा कि अभी समाज की पुरानी कड़ियां टूटी रही हैं। समाज
के भीतर संवाद खत्म हो रहा है। ऐसे में आम आदमी पार्टी उभरी तो लोगों ने उसमें एक
उम्मीद देखी औऱ उसकी तरफ मुखातिब हुए। लेकिन जिस तरीके से पार्टी ने चुनाव में रसूखदारों
को टिकट बांटे या जिस तरीके से पार्टी नेता प्रशांत भूषण औऱ योगेंद्र यादव के साथ
किया जा रहा है वह कहीं से भी उसे देश की दूसरी पार्टियों से अलग नहीं करती है।
दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर एसोसिएशन (डूटा) की अध्यक्ष नंदिता नारायण ने
कहा, मैं इतनी जल्दी उम्मीद खोने वाली नहीं हूं। लोकतांत्रिक पार्टियों में ही इस
तरह की असहमति को जाहिर करने का मौका मिल सकता है जो आम आदमी पार्टी के भीतर चल रहा है उसे उसी
रूप में देखा जाना चाहिए। क्योंकि लोकतांत्रिकरण एक प्रक्रिया है। मगर ‘आप’ में अगर ऐसे ही सब
कुछ लंबे समय तक जारी रहा तो लोगों का भरोसा टूट जाएगा।
जामिया मिलिया इस्लामिया के रिजवान कैसर ने कहा कि वैकल्पिक राजनीति सत्ता
से बाहर ही हो सकती है। संसदीय राजनीति की एक सीमा है जिसमें वैकल्पिक राजनीति
उम्मीद नहीं की जा सकती है। वरिष्ठ पत्रकार जसपाल सिंह सिद्दू ने कहा कि
राष्ट्र-राज्य के फ्रेमवर्क में रहकर वैकल्पिक राजनीति संभव ही नहीं है। पंजाब के
संदर्भ में आम आदमी पार्टी को देखा जा सकता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रेस क्लब
ऑफ इंडिया के महासचिव नदीम काजमी ने की।
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