बजट की तैयारियों में
जनता से मांगे सुझाव
उमेश चतुर्वेदी
उफान मारती जनाकांक्षाओं के रथ पर सवार होकर सत्ता में
आने वाली सरकारों की चुनौतियां कम नहीं होतीं। उन्हें अपने उस आधारवोट बैंक की उम्मीदों
पर खरा उतरना होता है, जिनके समर्थन की बदौलत उन्हें सत्ता की ताकत हासिल हुई रहती
है। जिस पश्चिमी मॉडल के लोकतंत्र को आज पूरी दुनिया में आदर्श माना जा रहा है, जिसे
66 साल पहले हमने भी स्वीकार किया, उसकी सबसे बड़ी खामी है कि सत्ता में आते ही राजनीतिक
दल उसी जनता को भूल जाते हैं, जिनके समर्थन का आधार ही उन्हें सत्ता की सर्वोच्च सीढ़ी
तक पहुंचाता रहा है। सत्ता में आने के बाद वायदों को भूल जाना ज्यादातर राजनेताओं और
राजनीति की रवायत रही है। ऐसे में अगर झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास सूबे के दूसरे
बजट की तैयारी के लिए जनता के बीच घूम रहे हैं और लोगों से राय-सलाह ले रहे हैं और
उनके वायदे के मुताबिक राज्य का अगला बजट बनाने की तैयारी कर रहे हैं तो उसका स्वागत
ही किया जाना चाहिए। हालांकि अभी तक सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के अलावा दूसरे किसी
राजनीतिक खेमे से उनके इस कदम की सराहना की खबर सामने नहीं आई है। लेकिन उनके कामकाज
पर अभी तक कोई सवाल नहीं उठा है। झारखंड की विपक्षी राजनीति के सबसे अहम किरदार और
झारखंड में गुरूजी के नाम से विख्यात झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख शिबू सोरेन ने
जमशेदपुर में रघुबर दास सरकार का पहला साल पूरा होने के संदर्भ में पूछे एक सवाल का
जवाब देते हुए कहा कि एक साल में कोई भी सरकार बहुत कुछ नहीं कर सकती। किसी राज्य या
देश के विकास के लिए एक साल का वक्त कुछ खास नहीं होता। लेकिन रघुबर दास सरकार ने इस
दौरान झारखंड के विकास के लिए जो कदम उठाए हैं, वे ठीक हैं और उन्हें मौका दिया जाना
चाहिए।
सवाल यह उठता है कि आखिर राज्य के दूसरे बजट के लिए ही
रघुबर दास सरकार ने रायशुमारी के लिए जनता के बीच जाने का कदम क्यों उठाया। पहले बजट
के लिए उन्होंने ऐसी कवायद क्यों नहीं की। इसका जवाब राज्य सरकार के पास है। झारखंड
के मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार शिल्पकुमार का कहना है कि चूंकि जब झारखंड में भारतीय
जनता पार्टी को सरकार बनाने का मौका मिला, तब बजट सत्र की तैयारियां शुरू हो चुकी थीं।
कुछ ही महीनों बाद बजट पेश किया जाना था। तब सरकार के पास पहली जिम्मेदारी यह थी कि
सबसे पहले सूबे की संवैधानिक व्यवस्था को बनाए रखते हुए बजट पेश किया जाय। उस वक्त
राज्य सरकार के पास जनता की राय जानने और फिर बजट तैयार करने का वक्त नहीं था।
जिस ट्रिकल डाउन सिद्धांत के मुताबिक उदारीकरण की अर्थव्यवस्था
को हमने स्वीकार किया है, उसमें वोट मांगते वक्त जनाकांक्षा की बात तो खूब की जाती
है। लेकिन जब सचमुच जनता के लिए कुछ करने का वक्त आता है, तब जनता के लिए चर्चाओं की
बजाय उद्योगपतियों और आर्थिक संगठनों के प्रतिनिधियों से बात करके नीतियां तैयार कर
ली जाती हैं और उसके मुताबिक बजट बनाकर योजनाएं शुरू कर दी जाती हैं। और इस तरह जनाकांक्षाएं
कहीं पीछे रह जाती हैं। इन संदर्भों में देखें तो संभवत: ये पहला मौका है, जब किसी मुख्यमंत्री ने राज्य के लोगों
से राज्य का बजट तैयार करने के लिए ना सिर्फ राय मांगी है, बल्कि राज्य में घूम-घूमकर
लोगों की आकांक्षाओं का जानने का प्रयास कर रहा है। मुख्यमंत्री रघुबर दास ने बजट निर्माण
के विकेन्द्रीकरण की दिशा में राज्य के सभी पांचों प्रमंडलों (कमिश्नरियों) में खुद
जा कर छात्रों, महिलाओं, किसानों, शिक्षाविदों,
स्वयंसेवी संस्थाओं, व्यापारियों के प्रतिनिधियों से मिलकर बजट पर चर्चा की शुरूआत की है। रघुबरदास
का मानना है कि इससे बजट को जनोन्मुखी बनाने में मदद मिलेगी।
बजट को लेकर एक शिकायत यह रही है कि अफसरों को राज्य और
आम लोगों की परेशानियों की जानकारी नहीं होती। वे यह भी नहीं जानते कि जमीनी हकीकत
क्या है। लिहाजा बंद कमरों और दफ्तरों के भीतर वे जो बजट तैयार कर देते हैं, उनका जमीनी
जरूरतों से कई बार दूर-दूर का वास्ता नहीं होता। रघुबर दास ने शायद इसी वजह से जनोन्मुखी
विकास के लिए जनता द्वारा जनता के लिए जनता का बजट का अपने अधिकारियों को संदेश दिया
है। वैसे इस बजट निर्माण प्रक्रिया की शुरूआत सितम्बर से ही कर दी गई है। इस सिलसिले
में मुख्यमंत्री ने 11 दिसंबर तक राज्य के 5 प्रमंडलों से 2 प्रमंडलों का ना सिर्फ दौरा पूरा कर लिया था, बल्कि इस
दौरान समाज के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों से मिलकर बजट की जरूरतों पर चर्चा भी पूरी
कर ली थी। इस दौरान सरकार की कोशिश यह रही है कि लोग क्या चाहते हैं और उनकी विकास
की अवधारणा में स्थानीय जरूरतें क्या हैं, यह जाना और समझा जाय । रघुबर दास ने बजट
चर्चा की शुरूआत उत्तरी छोटा नागपुर के धनबाद में 6 दिसम्बर को की और उन्होंने लोगों के साथ दूसरी रायशुमारी
दक्षिणी छोटा नागुपर के गुमला में 11 दिसम्बर को की । इसी तरह मुख्यमंत्री ने संताल परगना के
दुमका में 19 दिसम्बर को, पलामू के डालटनगंज में 23 दिसम्बर और कोलहान प्रमंडल के चाईबासा में 24 दिसम्बर को लोगों से मुलाकात की और उनकी राय जानने की कोशिश की। इस दौरान कोशिश
रही कि महिला-प्रतिनिधियों, किसानों, प्रख्यात शिक्षविदों,
छात्रों के प्रतिनिधि और एनजीओ के
प्रतिनिधि को बुलाया जाय। यह भी कोशिश रही कि जो लोग बुलाए जाएं, दरअसल उनकी अपने समुदाय
पर गहरी पकड़ तो हो ही, अपने समुदाय की जरूरतों और कमजोरियों के साथ उसकी भावी चुनौतियों
को भी समझते हों। सबसे बड़ी बात यह है कि इस दौरान राज्य के प्रमुख विभागों के सचिवों
की मौजूदगी अनिवार्य रही। ताकि वे लोगों की समस्याओं को सीधे-सीधे जान सकें। इस बैठक
के दौरान इलाके के सांसदों और विधायकों समेत दूसरे जन-प्रतिनिधियों को नहीं बुलाया
गया। हालांकि उनसे अलग से राय जरूर मांगी गई है और वह भी लिखित रूप से। ताकि उनकी मांगों
और सुझावों को भी बजट में समाहित किया जा सके। इसके साथ ही सांसदों और विधायकों से
सरकार ने अपील की है कि वे अपने-अपने इलाकों के महत्वपूर्ण कार्यों की सूची मुहैया
करा दें, ताकि बजट में उसे शामिल किया जा सके।
ऐसा नहीं कि रघुबर दास औद्योगिक संगठनों और उद्योगपतियों
से नहीं मिले। उनसे भी मेल-मुलाकात का सिलसिला जारी है। लेकिन बजट के सिलसिले में जाने-माने
अर्थशास्त्रियों के साथ 13 दिसम्बर को मुख्यमंत्री बैठक कर चुके हैं । इस दौरान बजट
को लेकर उनकी भी राय जानी गई। आम लोग बजट से कैसी उम्मीद रखते हैं, इसकी जानकारी के
लिए रघुबर दास ने अचानक ही बिना किसी पूर्व सूचना के 13 दिसम्बर को राजधानी रांची से 40 कि.मी. दूर महिलौंग पंचायत के बड़कुम्भा गांव पहुंच गए। गांव में मूंज की खाट
पर बैठकर रघुबर दास ने लोगों से ना सिर्फ सीधे बात की, बल्कि यह जानना भी चाहा कि उन्हें
कैसा बजट चाहिए और वे सरकार से क्या उम्मीद लगा रखे हैं।
झारखंड की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि प्राकृतिक रूप से
समृद्ध होने के बावजूद इस राज्य के लोग गरीबी में जीने के लिए अभिशप्त हैं। पंद्रह
साल पहले बने राज्य की गति विकास की पटरी पर जैसी होनी चाहिए, वैसी अब तक नहीं हो पाई
है। इसलिए जरूरी यही है कि सूबे की सरकार अपने लोगों की जरूरत के मुताबिक बजट तैयार
करे और उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने की कोशिश करे।माननीय मुख्यमंत्री जी 13 दिसम्बर के बिना पूर्व सूचना के रांची से 40 कि.मी. दूर महिलौंग पंचायत के बड़कुम्भा गांव पहुंचे। उन्होंने
ग्रामीणों से सीधे बात की कि वे कैसा बजट चाहते हैं।
पंद्रह साल पहले विकास की गाड़ी को तेज गति से दौड़ाने
के लिए जिस झारखंड राज्य को बिहार से काट कर बनाया गया, उसकी त्रासदी है कि प्राकृतिक
रूप से समृद्ध होने के बावजूद यहां के मूल निवासी गरीबी में जीने को अभिशप्त हैं। जाहिर
है कि सही जनोन्मुखी सोच के बिना यहां के लोगों को आकांक्षाओं को पूरा नहीं किया जा
सकता और यहां के लोगों को गरीबी के दलदल से मुक्त नहीं किया जा सकता। ऐसे में रघुबर
दास का यह ऐलान कि अगला बजट गांव, गरीब और किसान का होगा और बजट का 60 प्रतिशत हिस्सा कृषि, सिंचाई एवं पेयजल पर खर्च किया जाएगा; लोगों की उम्मीदों को ही परवान चढ़ा रहा है। रघुबर दास
सरकार का दावा तो यही है कि उसकी कोशिश लोगों की इसी उम्मीद पर खरा उतरने की है। रघुबर
दास की यह जमीनी कोशिश कितनी जमीनी होगी, यह तो विधानसभा के बजट सत्र में बजट के पेश
होने के बाद ही पता चलेगा।
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