उमेश चतुर्वेदी
(यह आलेख भारतीय जनता पार्टी के मुखपत्र कमल संदेश के युवा विशेषांक में प्रकाशित हुआ है..जिसका विमोचन 9 अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह और लालकृष्ण आडवाणी ने किया..यह लेख जनवरी 2014 में लिखा गया था)
क्या
भारतीयता की सोच की अवधारणा पूरी तरह चुक गई है..देश ही क्यों..किसी भी इलाके की
सोच वहां की परिस्थिति, जलवायु और जरूरतों के मुताबिक
विकसित होती है। दो सौ सालों के अंग्रेजी शासन काल ने सबसे बड़ा काम यह किया है कि
उसने सोच के हमारे अपने आधार पर ही कब्जा कर लिया है। यही वजह है कि हमारी पूरी की
पूरी सोच पश्चिम से आयातित मानकों और जरूरतों के मुताबिक होने में देर नहीं लगाती।
युवाओं के संदर्भ में हमारी जो सोच विकसित हुई है या
हो रही है..विचार करने का वक्त आ गया है कि क्या वह सोच भी भारतीयता की अवधारणा के
आधार से दूर है..यह सवाल इसलिए उठता है..उदारीकरण के आते ही हमारे देश की
युवाशक्ति की बलैया ली जाने लगी थी।