उमेश चतुर्वेदी
क्या भ्रष्टाचार विरोधी
आंदोलन की कामयाबी या फिर एक खास स्तर तक चर्चा के लिए व्यवस्था तंत्र का में काम
कर चुका बड़ा और नामी नुमाइंदा होना जरूरी है...अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी
आंदोलन के लिए पहले जो भूमिका व्यवस्था तंत्र से बाहर निकले अरविंद केजरीवाल निभा
रहे थे, लगता है अन्ना के साथ उसी जिम्मेदारी को संभालने पूर्व सेनाध्यक्ष वीके
सिंह आ गए हैं। अन्ना के साथ आते ही उन्होंने मौजूदा लोकसभा को भंग करने की जोरदार
मांग करके अपनी दमदार मौजूदगी जताने की कोशिश भी कर दी है।
लेकिन सवाल यह है कि
क्या अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में वे अरविंद केजरीवाल जितना
जुझारू तेवर दे सकते हैं। सरकार के साथ अपनी उम्र विवाद और पुराने पड़ चुके
गोला-बारूद का मसला उठाकर चर्चा में आ चुके वीके सिंह की साख अरविंद केजरीवाल जैसी
नहीं है। लेकिन राजनीतिक तंत्र से भ्रष्टाचार के मसले पर मोर्चा खोलकर देशव्यापी
सुर्खियां उन्होंने जरूर बटोरी थीं। उनका चेहरा भी जाना-पहचाना है। इसलिए उनसे
अन्ना उम्मीद तो कर सकते हैं। लेकिन जिस वजह से अन्ना हजारे ने अरविंद केजरीवाल से
खुद को अलग किया है, वीके सिंह पर दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में ऐसे आरोप लगते
रहे हैं। सेना से अलग होने के बाद उन्होंने जिस तरह से राजनीतिक मंचों का इस्तेमाल
किया, उससे इस बात की तस्दीक भी होती है। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के
रिश्तेदार वीके सिंह के बारे में ना सिर्फ हरियाणा, बल्कि उत्तर प्रदेश की एक खास
बिरादरी के लोग अपने भावी राजनीतिक हीरो के तौर पर देख रहे हैं। बलिया में
चंद्रशेखर की मूर्ति स्थापना के दौरान वीके सिंह ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा
के संकेत भी दे दिए थे। लगता है अन्ना हजारे को इन तथ्यों का भान नहीं है या फिर
वे जानबूझकर इसे नजरंदाज कर रहे हैं। शायद उन्हें लगता है कि व्यवस्था तंत्र में
वीके सिंह की पैठ और पहुंच अरविंद केजरीवाल की तुलना में कहीं ज्यादा रही है।
लिहाजा अन्ना को लगता होगा कि वीके उनकी लड़ाई को कहीं ज्यादा दूर तक असरदार तरीके
से पहुंचा सकते हैं। वीके सिंह अन्ना की उम्मीदों पर कितना खरा उतरेंगे, बिना किसी
राजनीतिक महत्वाकांक्षा के भ्रष्टाचार विरोधी लड़ाई को वे कितनी दूर तक पहुंचा
पाएंगे, यह तो देखने की बात होगी। लेकिन इतना तय है कि अन्ना को एक मजबूत सहयोगी
तो मिल ही गया है।
देखते हैं क्या होता है
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