उमेश चतुर्वेदी
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने करीब सवा सौ साल पहले अंग्रेजी सरकार के जमाने में देश की दुर्दशा देखकर लिखा था – भारत दुर्दशा देखि न जाई। तब वे काशी में रहते थे। काशी यानी वाराणसी में बैठे भारतेंदु को देश की दुर्दशा देखी नहीं गई। तब उन्होंने कलम उठा ली थी। आज उन्हीं की काशी समेत पूरा पूर्वी उत्तर प्रदेश भारी बारिश की परेशानियों से जूझ रहा है। करीब दो महीने से लगातार जारी बारिश ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में भारी तबाही मचा रखी है। बीस अगस्त को हुई भारी बारिश ने तो वाराणसी शहर में घुटने-घुटने तक पानी में डूब गया। लोगों का कहना है कि ऐसी बारिश पिछले पचास साल में नहीं हुई।
जब दुनियाभर में हिंदुओं के पवित्र तीर्थ के रूप में विख्यात वाराणसी की ये हालत है तो दूसरे दूसरे जिलों की क्या हालत होगी-इसका अंदाजा लगाना आसान है। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि काशी में जिसकी मौत होती है – उसे स्वर्ग मिलता है। लेकिन भारी बरसात ने शहर को नरक में तब्दील कर दिया है। लेकिन शहर पर किसी का ध्यान नहीं है। न तो सूबे की सरकार का – ना ही केंद्र सरकार। जब जगमोहन केंद्रीय संस्कृति मंत्री थे तो उन्होंने वाराणसी की गलियों को चमकाने और कुछ वैसा ही साफ-सुथरा तीर्थस्थान बनाने की तैयारी की थी – जैसा उन्होंने जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल रहते वैष्णो देवी को बनाया था। दुर्भाग्यवश मायावती के विरोध के चलते उन्हें मंत्रिमंडल से हटा दिया गया और काशी को तीन लोकन ते न्यारी बनाने की उनकी तैयारियां धरी की धरी रह गईं।
सवाल सिर्फ वाराणसी की ही बदहाली का नहीं है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में 22 जिले आते हैं। मिर्जापुर, इलाहाबाद,वाराणसी, आजमगढ़ और गोरखपुर कमिश्नरी में बंटे इन जिलों में इस साल इतनी बारिश हुई है कि गांव के गांव तालाब के तौर पर नजर आ रहे हैं। मक्का, ज्वार और उड़द जैसी खरीफ की फसलें पूरी तरह नष्ट हो चुकी हैं। धान से लहलहाने वाले इस पूरे इलाके में कहीं – कहीं ही धान की फसल नजर आ रही है। यही हालत लाखों हेक्टेयर में हो रही गन्ने की खेती का भी है। सब्जियों की तो बात ही मत पूछिए। दिल्ली और मुंबई में सब्जियों की कीमत जब चढ़ने लगती है तो राष्ट्रीय मीडिया की बड़ी-बड़ी सुर्खियां बन जाती है। लेकिन सब्जी के उत्पादन के लिए इस मशहूर इलाके में सब्जियों की फसल पूरी तरह नष्ट हो चुकी है। लिहाजा पूरे इलाके में इनकी कीमत में भारी वृद्धि हुई है। गरीबों की थाली से सब्जियां गायब हो गई हैं। लेकिन इसकी कहीं कोई चर्चा नहीं है।
बारिश को लेकर राज्य प्रशासन कितना सचेत है – इसका उदाहरण है कि कई जिलों में कितनी बारिश हुई – इसका ठीक-ठीक आंकड़ा प्रशासन के पास मौजूद नहीं है। सन 2001 से पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक बड़ा इलाका सूखे की मार झेलता रहा है। अकेले बलिया की ही बात करें तो 2001 में बलिया में करीब 950 मिली बारिश रिकॉर्ड की गई। अगले साल महज 711 मिली ही बारिश हुई। सबसे खराब हालत रही 2005 में – जब सिर्फ 629 मिली ही बारिश हुई। लेकिन इस साल हालात ये हैं कि 18 अगस्त तक ही 1081 मिली बारिश हो चुकी है। शुरू में बारिश की फुहारों ने पूर्वांचल के लोगों को मोहित किया। लेकिन जब 45 दिनों तक हर दिन हो रही बारिश ने लोगों को परेशान कर दिया। शायद ही कोई गांव होगा- जहां दो-एक मकान न गिरे हों। बलिया के सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता पी सी यादव के मुताबिक बारिश ने पचास साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। इसके चलते यहां की नदियां उफान पर हैं। घाघरा और गंगा के किनारे वाले हजारों गांवों का संपर्क कट चुका है। पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश में शायद ही कोई नदी होगी- जिसने समंदर का रूप नहीं धारण कर लिया है। बलिया, गाजीपुर और आजमगढ़ जैसे गरीबी और बदहाल जिलों में कई मकान भरभराकर गिर गए और उसमें रहने वाले लोगों की दबकर मौत हो गई। लेकिन उनका कोई पुरसा हाल जानने वाला नहीं हैं।
गरीबी और बदहाली पूर्वांचल की स्थाई पहचान है। दिलचस्प बात ये है कि इसी इलाके से सत्ताधारी बहुजन समाज पार्टी को ज्यादा समर्थन मिला है। बलिया की सभी आठ विधानसभा सीटें बसपा की झोली में गई हैं। आजमगढ़ की भी यही हालत है। लेकिन राज्य सरकार के कान पर अभी तक जूं नहीं रेंगी है। अधिकारियों का कहना है कि सूखा के लिए आपदा का प्रावधान सरकारी आदेश में तो है – लेकिन अतिवृष्टि के लिए कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे में राहत के लिए कोई उपाय नहीं किए गए हैं। नही इस ओर प्रशासन का कोई ध्यान है।
सबसे ज्यादा परेशानी की बात ये है कि खरीफ की फसल पूरी तरह चौपट हो जाने के कारण इस बार गरीब और मजदूर तबके के लोगों को खाद्यान्न के संकट का सामना करना पड़ेगा। जिन परिवारों को बाहरी आमदनी का सौभाग्य मयस्सर नहीं है, उनके लिए अगले कुछ महीनों में भोजन का संकट उठ खड़ा होने वाला है। फसलें तबाह होने के चलते खेतिहर मजदूरों के लिए काम भी नहीं रह गया है। रोजाना होने वाली बारिश ने नरेगा के तहत होने वाले कामों पर भी ब्रेक लगा दिया है। ऐसे में मजदूरी करके गुजारा करने वालों के सामने ना सिर्फ रोजी- बल्कि कुछ दिनों में रोटी का भी संकट आने वाला है। लेकिन प्रशासन इस सिलसिले में चौकस नहीं दिख रहा।
जहां तक राज्य सरकार का सवाल है तो उसका ध्यान प्रशासन और लोकहित से ज्यादा अगले साल होने वाले आम चुनावों को लेकर जोड़-घटाव करने में है। ताकि उसकी मुखिया को देश का प्रधानमंत्री बनना आसान हो। सारे जतन और उपाय इसे ही ध्यान में रखकर किए जा रहे हैं। पूर्वांचल में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी का चुनाव क्षेत्र रायबरेली है। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भी जिस अमेठी सीट से चुनकर आए हैं-वह भी इसी पूर्वांचल में है। बात-बात में पूर्वांचल की बदहाली का सवाल उठाने वाली कांग्रेस का अतिवृष्टि की ओर ध्यान नहीं है। ऐसे में पूरे इलाके की करीब चार करोड़ जनसंख्या ठगा सा महसूस कर रही है। हताश - निराश इलाके के लोगों को उम्मीद इन राजनेताओं से कहीं ज्यादा आसमानी देवता पर टिक गई है – बारिश रूके तो जिंदगी की रफ्तार आगे बढ़े।
यह लेख अमर उजाला में प्रकाशित हुआ है।
मामला विस्तार से समझाने के लिये आभार. इस बार लगभग सब जगह पानी विनाश का ताडव दिखा रही है.
ReplyDelete-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)