Wednesday, September 24, 2008

दर्डा जी ये आपको क्या हुआ ......



यह लेख देखिए और विचार कीजिए
नरसिंह राव की सरकार ने जब सांसद विकास निधि की शुरूआत की थी, तभी जानकारों ने इसकी सफलता पर सवाल उठाए थे। समाजशास्त्रियों और राजनीति के जानकारों के साथ ही पत्रकारों के एक तबके का मानना था कि इससे लूट-खसोट की राजनीति बढ़ेगी। राजनीतिक जीवन में अपनी सांसद निधि का सही तरीके से इस्तेमाल करने का मामला बहुत कम ही मिला है। इन पंक्तियों के लेखक को एक पूर्व सांसद के बारे में जानकारी है कि उन्होंने अपनी सांसद विकास निधि का सही तरीके से इस्तेमाल किया। ये पूर्व सांसद हैं नागेंद्र ओझा। ओझा जी सीपीआई के कार्यकर्ता हैं और बिहार से सांसद थे। विकास निधि को लेकर उनकी बेहतर व्यवस्था ही है कि नजमा हेपतुल्ला और जीएमसी बालयोगी तक को उनकी प्रशंसा करनी पड़ी थी।
ये सब जानते हैं कि सांसद विकास निधि सांसद के हाथ में एक मजबूत हथियार है। इस निधि के जरिए सांसद जहां अपने लोगों को उपकृत करते हैं – वहीं अपने मनमाफिक ठेकेदारों से ही काम कराने के लिए जिला प्रशासन पर दबाव डालते हैं। जिला प्रशासन भी बदले में अपना कमीशन लेकर खुश रहता है। इस पर कभी उंगली नहीं उठती और बात आई-गई हो जाती है। लेकिन अब ऐसे सांसदों के लिए खतरे की घंटी बज उठी है।
महाराष्ट्र से मराठी का एक बड़ा अखबार निकलता है। लोकमत नाम का ये अखबार मराठी का नंबर वन अखबार है। इसके तकरीबन 12 संस्करण हैं। इसके साथ ही उनका लोकमत समाचार नाम से हिंदी में तीन संस्करणों वाला अखबार भी निकलता है। अंग्रेजी में लोकमत टाइम्स अलग से है। लोकमत ग्रुप का मुख्यालय नागपुर में है और इसके मुखिया विजय दर्डा हैं। विजय दर्डा के पिता जवाहर लाल दर्डा कांग्रेस के नेता थे। जाहिर है विजय दर्डा और उनके भाई राजेंद्र दर्डा को राजनीति विरासत में मिली है। राजेंद्र दर्डा जहां महाराष्ट्र सरकार में मंत्री हैं – वहीं विजय दर्डा पिछले कई साल से राज्यसभा में कांग्रेस की नुमाइंदगी कर रहे हैं। अरबों रूपए के टर्नओवर वाली कंपनी के मालिक विजय दर्डा ने वह काम कर दिखाया है - जिसके लिए जग हंसाई हो रही है। दर्डा परिवार कर्ज से पार ना पा सके किसानों की आत्महत्याओं वाले जिले यवतमाल का निवासी है। यवतमाल में उनके कई कॉलेज, स्कूल और तमाम दूसरी तरह की संस्थाएं हैं। दर्डा परिवार यवतमाल- वर्धा रोड पर अंग्रेजी माध्यम का एक स्कूल वीना देवी दर्डा इंग्लिश मीडियम स्कूल चलाता है। सांसद निधि से भले ही आम जनता को सहयोग देने का प्रावधान हो- लेकिन अरबपति विजय दर्डा ने अपने ही इस स्कूल को 34 लाख 53 हजार रूपए अवैधानिक तरीके से दे डाले। इतना ही नहीं स्कूल के लिए 76172 स्क्वायर यार्ड जमीन ली गई, वह भी अवैध है। मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर बेंच के आदेश के बाद यवतमाल के एसपी ने जो रिपोर्ट दी है – उसमें साफ लिखा है कि एसडीओ यवतमाल ने इस जमीन को अवैधानिक तरीके से गैर कृषि कार्यों में इस्तेमाल की अनुमति दी थी। नागपुर हाईकोर्ट ने इस पैसे की वसूली का आदेश दिया है। जिस पर अमल की कार्यवाही केंद्रीय कार्यक्रम कार्यान्वयन एवं सांख्यिकी मंत्रालय ने शुरू कर दी है।
ये मामला सामने नहीं आ पाता, अगर यवतमाल के सामाजिक कार्यकर्ता दिगंबर हरिभान पजगड़े ने नागपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इस याचिका पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने इस पर यवतमाल के एसपी और डीएम से रिपोर्ट मांगी। एसपी ने हाईकोर्ट को सौंपी अपनी इस रिपोर्ट में साफ किया कि ना सिर्फ जमीन लेने, बल्कि सांसद विकास निधि के दुरूपयोग की भी बात स्वीकार की। जिस तरह भ्रष्टाचार संस्थागत हो चुका है, उसमें आम सांसद के इस भ्रष्टाचार पर ज्यादा बावेला नहीं मचता। लेकिन विजय दर्डा अरबपति सांसद हैं। उनके पास पैसे की कमी नहीं है। फिर भी वे लूटखसोट और बंदरबांट से नहीं बच पाए और उन्होंने अपने ही घर के स्कूल को अपनी सांसद निधि से पैसे दे दिए। लेकिन अब यह उन्हें महंगा पड़ा है। सांसद विकास निधि के इतिहास में ये पहला मौका है – जब विजय दर्डा से इस रकम की वसूली की जा रही है। कार्यक्रम क्रियान्वयन और सांख्यिकी मंत्रालय के निदेशक अनिल कुमार चौधरी ने महाराष्ट्र के मुख्य सचिव जॉनी जोसेफ को 25 अगस्त 2008 को चिट्ठी लिखकर इस रकम की वसूली के लिए कहा है।
इस पूरे प्रकरण में मीडिया की भूमिका बेहद संदिग्ध रही। एक बड़े मीडिया घराने के मालिक होने के चलते विजय दर्डा से जुड़ी ये खबर कहीं साया नहीं हुई। एक – दो छोटे मराठी अखबारों ने ही इसे प्रकाशित किया। मुंबई से प्रकाशित होने वाले एक बड़े घराने के अखबार की वेबसाइट पर ये खबर करीब आधे घंटे में ही उतर गई। ऑपरेशन दुर्योधन और तहलका को उजागर करने वाले मीडिया का अपने ही वर्ग के खिलाफ कैसा रवैया है, इसका जीता – जागता उदाहरण है विजय दर्डा का ये मामला।

1 comment:

  1. उमेश जी,
    सांसदों की इस धोखेधड़ी में उनके साथ ज़िले के कलेक्टर भी शामिल होते हैं....वही लोग जिन्हें हम अपनी modern india की किताबों में भारत का स्टील फ्रेम पढ़ते आए हैं। इनकी भी दलाली बंधी होती है...जो पंचायत लेवल तक जाती है। बेचारे डीएम साहब भी क्या करें...सेलेक्ट हुए थे तो क्या क्या आदर्श थे....लेकिन जब से बाबूजी ने राज्य के सेक्रेटरी की बिटिया से शादी कर दी...ऊपर का पैसा कमाना ज़रूरी हो गया है...सेक्रेटरी की बेटी को सब पता है ...कहां से क्या आता है....इसलिए वो भी दो साल बाद यही सोचता है कि-हम भ्रष्टन के, भ्रष्ट हमारे...फिर रिटायर होते होते वही स्टील फ्रेम -ए पी सिंह हो जाता है.....इसलिए विजय दर्दा भी दलालों की उसी श्रेणी में आते हैं.....कोई बड़ी बात नहीं।

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