मोदी को मात देने की कोशिश में कांग्रेस
उमेश चतुर्वेदी
संजय
जोशी को भारतीय जनता पार्टी से बाहर कराकर भले ही नरेंद्र मोदी खुद को विजयी समझ
रहे हों, लेकिन इसी साल के आखिर में विधानसभा के मैदान पर कांग्रेस इसी विवाद के
बीच उन्हें शिकस्त देने की रणनीति बना रही है। इसमें सहयोगी बनती नजर आ रही है
संजय जोशी के बीजेपी से बाहर होने के बाद गुजरात और गुजरात के बाहर हो रही नरेंद्र
मोदी की लानत-मलामत। कांग्रेस की उम्मीदों को परवान चढ़ाने में मदद दे रही मोदी के
खिलाफ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जनता दल यू के बिहार इकाई का हल्लाबोल।
बीजेपी में नंबर वन नेता बनने की होड़ में नरेंद्र मोदी के आगे बढ़ने की कोशिशों
के बीच नरेंद्र मोदी के खिलाफ भी पार्टी के अंदरूनी हलकों से हमले बढ़ते गए।
बीजेपी से मोदी ने जैसे ही तकरीबन यह मंजूर करा लिया कि वे ही पार्टी के नंबर वन
नेता हैं, गुजरात में फतह की आस लगाए पंद्रह साल से इंतजार कर रही कांग्रेस की
चुनौती और बढ़ गई। गौर करने की बात ये है कि गुजरात कांग्रेस के पास नरेंद्र मोदी
जैसी हैसियत वाले नेता नहीं हैं। ऐसे में मोदी का नंबर वन बन जाना निश्चित तौर पर
कांग्रेस के लिए कठिन चुनौती बन गया था। लेकिन संजय जोशी प्रकरण को लेकर उनके
खिलाफ बीजेपी और एनडीए में बढ़ रहे विरोध से कांग्रेस की मुश्किलें थोड़ी कम होती
नजर आ रही हैं।
गुजरात
में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं। गुजरात की राजनीति में रसूख रखने
वाला पाटीदार समुदाय केशुभाई पटेल और गोरधन झड़फिया की अगुआई में मोदी के खिलाफ
मुखर होता जा रहा है। वैसे यह मुखरता 2007 में भी नजर आई थी। तब केशुभाई ने खुलकर
मोदी का विरोध भी किया था। उस विरोध के जरिए ही पिछली बार भी कांग्रेस को बीजेपी
का गुजरात किला ढहता नजर आने लगा था। यह बात और है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों
से निकले नतीजों ने कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। गुजरात की जनता ने
अपने विकास पुरूष नरेंद्र मोदी पर ही भरोसा किया था। संजय जोशी प्रकरण से पहले
कांग्रेस एक बार फिर अंदरूनी तौर पर मानने लगी थी कि गुजरात में मोदी के खिलाफ उसे
कामयाबी शायद ही मिल पाए। लेकिन केशुभाई पटेल की मुखरता तो काफी पहले से ही जाहिर
है। कांग्रेस को इस बार पाटीदार समुदाय के इस विरोध से भी आस नहीं थी। लेकिन संजय
जोशी प्रकरण के बाद मोदी के बढ़ते विरोध ने गुजरात में कांग्रेस की उम्मीदें बढ़ा
दी हैं।
नरेंद्र
मोदी की सत्ता के खिलाफ कम से कम गुजरात में अब तक कोई चुनौती नजर नहीं आती रही
है। बीजेपी में केशुभाई के विरोध को भी ना तो स्थानीय स्तर पर, ना ही राष्ट्रीय
स्तर पर तवज्जो मिलती रही है। संजय जोशी प्रकरण के पहले तक तो नरेंद्र मोदी बीजेपी
कार्यकर्ताओं के चहेते नेता थे। अयोध्या आंदोलन के बाद जिस तरह कल्याण सिंह को
हिंदू हृदय सम्राट की तरह भारतीय जनता पार्टी ने प्रचारित किया और उनकी लोकप्रियता
को भुनाने की कोशिश की थी, एक हद तक भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता भी मोदी में
भी वैसी ही छवि देखने लगा था। इस छवि को बढ़ाने में गुजरात में जारी तेज विकास दर
ने और इजाफा ही किया। रही-सही कसर रतन टाटा और मुकेश अंबानी जैसे देश के चोटी के
उद्योगपतियों ने पूरी कर दी, जब उन्होंने मोदी को प्रधानमंत्री बनने योग्य बेहतर
उम्मीदवार बता दिया। वैसे भी सत्ता के खेल में जिस तरह नई आर्थिकी शामिल होने लगी
है, उसमें उद्योग जगत के ऐसे समर्थन राजनेता को नई ऊंचाई ही देते हैं। लेकिन
स्वतंत्रता आंदोलन की कोख से उपजी भारतीय राजनीति में मूल्यों की जो अवधारणा है,
कम से कम शीर्ष नेतृत्व से उसकी उम्मीद की जाती रही है। शायद यही वजह है कि संजय
जोशी प्रकरण में मोदी के रवैये ने बीजेपी के कार्यकर्ताओं के एक वर्ग को गुस्से से
भर दिया है। लोग यह सवाल पूछने लगे हैं कि जो व्यक्ति एक संजय जोशी को साथ लेकर
नहीं चल सकता, वह देश को साथ लेकर कैसे चलेगा। इस पूरी लड़ाई में संजय जोशी का
संयत रहना उन्हें सहानुभूति का पात्र ही नहीं बना रहा, बल्कि मोदी विरोध की नींव
को मजबूत कर रहा है। इसी नींव पर राजकोट में कार्यकारिणी की बैठक के बाहर संजय
जोशी का मुखौटा लगाकर नरेंद्र मोदी का खुलेआम विरोध किया गया। कहना न होगा कि
कांग्रेस को इस विरोध में भी अपने लिए एक किरण नजर आने लगी है।
कांग्रेस
पहले से ही तय कर चुकी थी कि अगर अब तक की परिपाटी के मुताबिक वह सीधे नरेंद्र
मोदी, उनकी सोच और उनकी शैली को चुनौती देगी तो पहले की ही तरह उसके खेत रहने का
खतरा बना रहेगा। लिहाजा इस बार कांग्रेस ने स्थानीय स्तर पर स्थानीय मुद्दों को
उजागर करके भारतीय जनता पार्टी को चुनौती देने की योजना बनाई है। यानी कांग्रेस ने
पूरे किले की बजाय एक-एक टुकड़े पर प्रभावी हमला और उस पर कब्जा जमाने की रणनीति
बनाई है। इसी रणनीति के तहत आदिवासी समाज यात्रा पूरे राज्य में घूम चुकी है।
इसमें पार्टी यह बताती रही है कि नरेंद्र मोदी के रहते आदिवासी समुदाय को क्या
नुकसान हुआ। पाटीदार समाज वैसे ही नाराज है। अब गुजरात के ब्राह्मणों को यह संदेश
देने की तैयारी है कि नरेंद्र मोदी ने अपने ही एक साथी ब्राह्णण संजय जोशी के साथ
कैसा सलूक किया। इसी तरह राज्य के अनुसूचित जातियों को भी लुभाने के लिए उनके लिए
चलाई जा रही योजनाओं में जारी लूट के खेल को उजागर किया जा रहा है। कांग्रेस राज्य
में कैग की रिपोर्ट के मुताबिक हुए घोटालों को मुद्दा बनाने की कोशिश करती रही है।
हालांकि उसे पहले ज्यादा अहमियत नहीं मिली। लेकिन अब संभव है कि बीजेपी की आपसी
सिरफुटौव्वल के बाद उसकी ये आवाज भी सुनी जा सके।
लेकिन
कांग्रेस के सामने अब भी बड़ी चुनौती गुजरात का विकास का मुद्दा ही है। राजकोट
कार्यकारिणी की बैठक में मोदी ने प्रधानमंत्री पर सीधा हमला बोल करके जता दिया है
कि उनकी मंशा क्या है। याद कीजिए 2002 को, तब उन्होंने सोनिया मैनो, मियां मुशर्रफ
और जेम्स माइकल लिंगदोह जैसे छह शब्दों के जरिए गुजरात का मैदान मार लिया था। 2007
में उन्होंने विकास को मुद्दा बनाया और इस बार वे कांग्रेस और सरकार के आला नेताओं
पर भ्रष्टाचार और महंगाई को चुनावी मुद्दा बनाने जा रहे हैं। संजय जोशी प्रकरण और
नीतीश के बयान के बाद मोदी की जिस तरह लानत-मलामत हो रही है, उसे कांग्रेस ने अगर
भुना लिया तो मोदी का अभेद्य किला ढह भी सकता है। अगर ऐसा हुआ तो तय मानिए, मोदी
के नेतृत्व पर विराम भी लग सकता है। फिलहाल कांग्रेस यही चाहती है। लेकिन ऐसा नहीं
हुआ तो यह भी तय है कि 2014 में दिल्ली की गद्दी पर मोदी की दावेदारी और भी मजबूत
हो जाएगी।
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