उमेश
चतुर्वेदी
उदारीकरण के दौर में जब भी कोई नया फैसला
लिया जाता है, सरकार का एक ही दावा होता है इससे नए रोजगार पैदा होंगे और इससे
बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा। लेकिन उदारीकरण की योजनाओं को लागू करने के लिए
बढ़-चढ़कर किए जाने वाले दावों की पोल भी खुलने लगी है। इन दावों को खारिज करने और
उन पर सवाल कुछ सामाजिक संगठन और अर्थशास्त्री उठाते रहे हैं। लेकिन नई आर्थिकी के
सरकारी पैरोकार इन सवालों को अनसुना करते रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि नई
आर्थिकी के बड़े पैरोकार मोंटेक सिंह अहलूवालिया की अगुआई वाले योजना आयोग ने भी
मान लिया है कि यूपीए के शुरूआती छह साल के शासन काल में अकेले विनिर्माण क्षेत्र
में ही करीब पचास लाख नौकरियां खत्म हो गईं। योजना आयोग के आंकड़े के मुताबिक
यूपीए शासन के पहले विनिर्माण क्षेत्र में करीब पांच करोड़ 57 लाख नौकरियां थीं,
वे 2004 से 2010 के बीच घटकर महज पांच करोड़ सात लाख ही रह गईं। इससे भी दिलचस्प
बात यह है कि यूपीए दो की वापसी में जिस यूपीए एक की कामयाबियों का ढिंढोरा पीटा
गया, दरअसल ये नौकरियां उसी दौर में खत्म हुईं। ध्यान देने वाली एक बात और है कि
इसी दौर में आठ से लेकर साढ़े आठ फीसदी तक की विकास दर का दावा रहा है।