(प्रथम प्रवक्ता में प्रकाशित)
उमेश
चतुर्वेदी
राजनीतिक नेतृत्व से इतर ब्यूरोक्रेसी से
हमेशा उम्मीद की जाती है कि वह ठोस और मुद्दों पर केंद्रित सवालों को ही छुएगी।
जनपक्षधरता से कटे होने जैसे कई आरोपों के बावजूद अगर ब्यूरोक्रेसी पर राजनीति की
बनिस्बत ज्यादा भरोसा किया जाता है तो इसकी बड़ी वजह यही कारण भी है। लेकिन टू जी
स्पेक्ट्रम आवंटन के दौरान घोटाले का बढ़ा-चढ़ाकर आकलन करने और उसके पीछे लोकलेखा
समिति के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी के हाथ का आरोप लगाने के मामले में पूर्व
ब्यूरोक्रेट आर पी सिंह ने जिस तरह से यू टर्न लिया है, उससे ब्यूरोक्रेसी पर अब
तक बरकरार रहे भरोसे में दरार जरूर पड़ गई है। यह बात और है कि आर पी सिंह अगले ही
दिन एक बार फिर अपने पुराने रूख पर लौट आए। उनके इस रवैये से जाहिर है कि उनकी
बयानबाजी और टूजी को लेकर उठे विवाद के बीच दाल में काला कहीं ना कहीं जरूर है।
नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के पूर्व
महानिदेशक आर पी सिंह ने उस अखबार पर ही आरोप लगा दिया है कि जिसने उनके हवाले से
यह खबर छापी थी। आर पी सिंह ने कहा है कि अखबार ने उन्हें गलत ढंग से उद्धृत किया
है। मुरली मनोहर जोशी को क्लीन चिट देने वाला आर पी सिंह का बयान उनके पहले बयान
वाली खबर के तीन दिन बाद ही आया है। इन तीन दिनों में भारतीय राजनीति में 2जी
स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले को बीजेपी की साजिश बताने की जोरदार कोशिशें हुईं। बेशक
इसे उछालने में बीजेपी का भी एक खेमा खासा सक्रिय नजर आया। जिसे जोशी पर हमला
राजनीतिक फायदा पहुंचा सकता है। लेकिन इससे बड़ी बात यह रही कि इस एक बयान से
समूची भारतीय जनता पार्टी और उसकी राजनीति सवालों के घेरे में आ गई। सोनिया गांधी
तो 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन में घोटाले की खबरों के पीछे बीजेपी की साजिश का आरोप
लगाने से भी नहीं हिचकीं। अब इन आरोपों का
मसला तार्किक परिणति तक पहुंचता कि आर पी सिंह का बदला बयान आ गया है। ऐसे
में यह सवाल जरूर उठेगा कि आखिर आर पी सिंह किसके इशारे पर अब तक बयान दे रहे हैं
और भारतीय जनता पार्टी पर जब कांग्रेस और उसके नेता सवाल उठा रहे थे, तब वे क्यों
इसका खंडन नहीं कर रहे थे। बेशक उन्होंने इस बात का खंडन नहीं किया है कि 2 जी
स्पेक्ट्रम आवंटन में हुए नुकसान के आकलन का फार्मूला सही नहीं था। लेकिन इस पूरे
मामले पर नए सिरे से राजनीति गरम हुई तो इसकी बड़ी वजह इसके पीछे लोकलेखा समिति और
उसकी अगुआई कर रही भारतीय जनता पार्टी की भूमिका पर सवाल उठे।
संसदीय लोकतंत्र में देश की सार्वजनिक
संपत्ति पर समूचा अधिकार देश की संप्रभुता की गारंटी देने वाली संसद का होता है।
चूंकि संसद में बहुमत दल को ही सरकार चलाता है, लेकिन वह देश की संपत्ति का अपने
बहुमत के दम पर बर्बाद और मनमाना खर्च ना करे, इसीलिए लोकलेखा समिति की व्यवस्था
की गई और उसकी अगुआई पूरी दुनिया के लोकतांत्रिक देशों में विपक्ष के ही हाथ रहा
है। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में विपक्ष की भूमिका सिर्फ निगाहबान की होती है ताकि
सार्वजनिक संपत्ति का दुरूपयोग ना हो सके। लेकिन अगर वह इस निगहबानी की भूमिका के
बहाने सरकार और उसकी व्यवस्था को बदनाम करने की कोशिश करे तो यह लोकतंत्र के
स्वास्थ्य के लिए निश्चित तौर पर बेहतर नहीं होगा। आर पी सिंह के बयान से 2जी
स्पेक्ट्रम घोटाले के पीछे विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी और उसके कद्दावर
नेता मुरली मनोहर जोशी की भूमिका संदिग्ध नजर आने लगी थी। इससे पूरे मामले में अब
तक दोषी नजर आती रही कांग्रेस और उसकी सरकार के अलंबरदार अचानक से मासूम नजर आने
लगे और शक की सूई बीजेपी की तरफ घूम गई। ऐसे मौके पर कुशल नेता की तरह सोनिया ने
अपने हमले से पूरा का पूरा मामला भारतीय जनता पार्टी की तरफ ही धकेल दिया। वैसे
कांग्रेस इस मामले को तभी से विपक्षी पाले में डालने और खुद को पाक-साफ बताने की
कोशिश में जुटी हुई है, जब से सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दोबारा हुई 2 जी की नीलामी
खत्म हुई है। जिसमें महज नौ हजार चार सौ सात करोड़ 64 लाख रूपए की ही कमाई हुई है।
जबकि सरकार ने अनुमान लगा रखा था कि इससे 18 हजार करोड़ की कमाई होगी। सरकार तब से
यह जताने की कोशिश कर रही है कि 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन का आकलन करते वक्त कैग ने
जानबूझकर गलतियां की थी। कांग्रेस का आरोप तो यह भी रहा है कि ऐसा करके मौजूदा कैग
विनोद राय, पूर्व कैग त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी की तरह विपक्षी खेमे से राजनीति में
पांव फैलाना चाहते हैं। कांग्रेस का आरोप है कि बोफोर्स सौदे में घोटाले के आरोप
के बाद ही त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी को भारतीय जनता पार्टी ने कन्नौज से लोकसभा का
टिकट दिया था। बहरहाल जिस तरह आर पी सिंह ने बयान बदला है और मुरली मनोहर जोशी पर
आरोप लगाने से पल्ला झाड़ लिया है, उससे उनकी बयानबाजी पर भी संदेह होने लगा है।
इस संदेह की वजह है कि आखिर अपनी रिटारमेंट के 14 महीनों बाद तक वे क्यों चुप रहे
और अगर जुबान खोली भी तो सिर्फ तीन दिनों में ही क्यों बदल गई। अब तक राजनीति अपने
एजेंडे को प्रभावी बनाने के लिए मीडिया को बयान देकर अपने मुद्दे पर मामला गर्म
कराती रही है और जैसे ही मामला तूल पकड़ता रहा है, सारा ठीकरा मीडिया पर ही फोड़कर
खुद पाक साफ बनने का ऐलान करती रही है। लगता है आर पी सिंह भी इसी फॉर्मूले के तहत
काम कर रहे हैं।
आरपी सिंह के बदले बयान से अब पूरा मामला
एक बार फिर संदेह के घेरे में आ जाएगा। निश्चित तौर पर अब भारतीय जनता पार्टी
सोनिया गांधी और कांग्रेस को घेरे में लेगी। लेकिन इस पूरी कवायद का हश्र यह होगा
कि 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन में हुए नुकसान को देश भूलकर दोनों पार्टियों की अपनी
खींचतान को याद करने लगेगा। मौजूदा मीडिया को भी इसी में अपना फायदा नजर आने लगेगा
और उसकी भी पूरी चर्चाएं इसी पर केंद्रित हो जाएंगी। 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन के
घोटाले को लेकर राजनीति पर इतना कीचड़ उछल गया है कि अब शायद राजनीति भी इससे निजात
पाना चाहती है। आर पी सिंह के बदलते बयानों ने इसका मौका जरूर मुहैया करा दिया है।
No comments:
Post a Comment