अल्पसंख्यक आरक्षण
के किंतु-परंतु
उमेश चतुर्वेदी
( यह लेख दैनिक भास्कर में प्रकाशित हो चुका है।)
राजनीति में जरूरी
नहीं कि जो कुछ सामने दिख रहा हो, हकीकत ही हो। कामयाब राजनीति वही होती है,
जिसमें संकेतों के
जरिए सबकुछ साधने की कोशिश की जाती है। लेकिन ये संकेत भी इतने सहज और प्रभावी
होते हैं कि उनकी मकसद लक्ष्य समूह तक आसानी से पहुंच जाता है। 22
दिसंबर 2011
को जब केंद्र सरकार
ने कोटा में कोटा की व्यवस्था बनाते हुए ओबीसी आरक्षण में अल्पसंख्यकों के लिए
साढ़े चार फीसदी आरक्षण तय किया था तो उसका मकसद साफ था। दिलचस्प यह भी है कि इस
मकसद को उसी वक्त राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी तरह से लपक लिया। भारतीय जनता पार्टी
को अपने वोट बैंक के खिसकने का खतरा था तो उसने इस पर सवाल उठाने में देर नहीं
लगाई।