भारत की कूटनीतिक कामयाबी या विफलता !
उमेश चतुर्वेदी
(यह लेख दैनिक ट्रिब्यून में छप चुका है)
पाकिस्तान की
कोटलखपत जेल की काली कोठरी में तीस साल काटने के बाद रिहा होने के बाद सुरजीत ने
जो बयान दिया है, उसने भारत को रक्षात्मक रूख अख्तियार करने के लिए मजबूर कर सकता
है। सुरजीत को लेकर अब तक यही कहा जाता रहा है कि 1982 में उन्होंने गलती से सीमा
पार कर ली और भारत-पाकिस्तान के बीच जारी कूटनीतिक और सैनिक विश्वासहीनता और
खींचतान के शिकार बन गए। भारत की तरफ से सुरजीत को लेकर किए गए इन दावों में उनके
निर्दोष होने की ही दुहाई दी जाती रही है। लेकिन बाघा सीमा को पार करते ही
उन्होंने जो बयान दिया है, उससे भारतीय कूटनीति पर सवाल उठने लगे हैं। सुरजीत के
बयान ने भारत के सारे दावों पर पानी फेर दिया है। सुरजीत ने कहा है कि वे भारतीय
खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी रॉ के लिए जासूसी कर रहे थे और जब
पकड़ लिए गए तो उन्हें सबने छोड़ दिया।