उमेश चतुर्वेदी
सूचना तकनीक के मौजूदा हथियारों मसलन मोबाइल फोन, कंप्यूटर, इंटरनेट और सोशल
मीडिया के आने के पहले तक चौराहे और चौपाल पर सुबह-शाम लगने वाली गप्प गोष्ठियां
रोजाना घरेलू कलह की वजह बनती रही हैं। लेकिन बतरस की लत ही ऐसी थी कि बड़े-बड़े
सूरमा तक इसमें डूबने में ही आनंद पाते रहे हैं। कुछ ऐसी ही हालत बदले दौर में
बतरस का अड्डा बने सोशल मीडिया का भी है। अब लोग इसमें इतना डूब जाते हैं कि
उन्हें दुनिया-जहान की परवाह ही नहीं रहती। इसमें सबसे ज्यादा बाजी मार ली है
फेसबुक ने।