उमेश चतुर्वेदी
2010 में भारी बहुमत
के बाद पाटलिपुत्र की गद्दी पर नीतीश की वापसी के बाद यह तय हो गया था कि संख्या
बल के लिहाज से बेहतर स्थिति में आने के बावजूद गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं चलने
वाला है। हालांकि विचारों और पत्रकारिता की अपनी दुनिया में ऐसी चर्चाएं और आशंकाएं
करने की परिपाटी नहीं रही है। इसलिए ऐसी चर्चाओं और आशंकाओं को सिरे से नकार दिया
जाता है। नीतीश और बीजेपी के बिहार के गठबंधन को लेकर भी जब 2010 में ऐसी कोई
आशंका जताने की कोशिश शुरू हुई, उसे राजनीतिक पंडितों ने नकारने में देर नहीं लगाई
थी। लेकिन महज दो साल की यात्रा के बाद ही वे आशंकाएं उठने लगी हैं।