उमेश चतुर्वेदी
(इस लेख को पत्रसूचना कार्यालय यानी पीआईबी ने जारी किया है.. पीआईबी की वेबसाइट से साभार)
प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी
के
महत्वाकांक्षी
और महात्मा
गांधी को
सच्ची
श्रद्धांजलि
देने वाले
स्वच्छ भारत
अभियान ने एक
साल पूरा कर
लिया है। इस अभियान
की पहली
सालगिरह ने
देश को आंकलन
का एक मौका
दिया है कि
स्वतंत्रता
से जरूरी
स्वच्छता के
मोर्चे पर वह 365
दिनों में
कहां पहुंच
पाया है। यहां
यह बता देना
जरूरी है कि
बीसवीं सदी की
शुरूआत में जब
गांधी के
व्यक्तित्व
का कायाकल्प
हो रहा था,
उन्हीं दिनों
उन्होंने यह
मशहूर विचार
दिया था- स्वतंत्रता
से भी कहीं
ज्यादा जरूरी
है स्वच्छता।
गांधी के इस
विचार की अपनी
पृष्ठभूमि
है। इस पर
चर्चा से पहले
प्रधानमंत्री
के इस अहम
अभियान की
दिशा में बढ़े
कदमों की मीमांसा
कहीं ज्यादा
जरूरी है।
स्वच्छ
भारत अभियान
की शुरूआत के
बाद देश के तमाम
बड़े-छोटे
लोगों ने
झाड़ू उठा
लिया। लेकिन
सफाई की दिशा
में हकीकत में
कितनी गहराई
से कदम उठे, इसका
नतीजा यह है
कि शहरों ही
नहीं, गांवों
में अब भी
बजबजाती
गंदगी में कमी
नजर आ रही है।
शुरू में यह
अभियान जिस
तेजी के साथ
उठा और जिस
तरह से झाड़ू
को लेकर
सरकारी विभागों,
जनप्रतिनिधियों
ने कदम उठाए,
उसे कारपोरेट
घरानों और
स्वयंसेवी
संगठनों का
भरपूर सहयोग मिला।
इस पूरे
अभियान की
कामयाबी अगर
कहीं सबसे
ज्यादा दिखती
है तो वह है नई
पीढ़ी की सोच
में। नई पीढ़ी
के सामने अगर
सड़क पर गंदगी
फैलाई जाती है
तो उसे गंदगी
फैलाने वाले
को टोकने में
देर नहीं
लगती।
प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी
का स्वच्छ
अभियान की
शुरूआत का
मकसद सिर्फ
भारत को साफ
करना ही नहीं
है, बल्कि लोगों
की मानसिकता
में बदलाव
लाना है।
क्योंकि बदली
हुई मानसिकता
की स्वच्छता
की परंपरा को
सतत बनाए रख
सकती है।