Tuesday, May 29, 2018

इंदौर में 23-24 फरवरी में आयोजित होगा जी.आई.एस. 2019


प्रेस विज्ञप्ति नई दिल्ली, 29 मई, 2018. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान ने आज यहां ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2019 के लिए आयोजित काॅर्टन रेजर कार्यक्रम में दो वेबपोर्टल - जी.आई.एस. 2019 और इन्वेस्ट एम.पी. पोर्टल जारी किये। श्री चैहान ने उपस्थित राजनयिकों और उद्योगपतियों से मध्यप्रदेश आने का न्यौता दिया और निवेश के लिए आमंत्रण दिया। इस अवसर पर प्रदेश के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री श्री राजेन्द्र शुक्ला, उद्योग विभाग के प्रमुख सचिव मोहम्मद सुलेमान, प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री श्री एस.के. मिश्रा सहित केन्द्र और राज्य के कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। जी.आई.एस. 2019 आगामी 23-24 फरवरी 2019 को इंदौर में होना निश्चित हुआ है। श्री चौहान ने मध्यप्रदेश में हो रहे चहुमुंखी विकास के बारे में विस्तार से बताया और उपस्थित उद्योगपतियों एवं राजनयिकों को प्रदेश में उद्योग लगाने का निमंत्रण दिया। उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश में अपार संभावनाएं हैं। खनिज संपदा के साथ-साथ प्रदेश की अधोसंरचना को पूर्णरूप से विकसित किया जा चुका है। ऊर्जा के क्षेत्र में मध्यप्रदेश सरप्लस राज्य है। सड़कों का पूरे प्रदेश में जाल बिछाया गया है। पानी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। सिंचित जमीन 40 लाख हेक्टेयर से भी अधिक है। कृषि के क्षेत्र में मध्यप्रदेश ने लगातार पांच साल कृषि कर्मण अवार्ड जीतकर नये कीर्तिमान स्थापित किये हैं। कृषि उत्पाद दर पिछले कई सालों से 20 से ऊपर पाई गई है। प्रदेश की ग्रोथ रेट पिछले सात सालों में डबल डिजिट में है। इसके साथ-साथ प्रदेश की नौकरशाही हमेशा मददगार एवं सहायक सिद्ध हुई है। प्रदेश में कुशल मैनपावर हमेशा उपलब्ध है। कुल मिलाकर प्रदेश की भौगोलिक स्थिति, अधोसंरचना और राजनीतिक स्थिरता निवेश के माहौल के लिए अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर है। इसके पहले वाणिज्य एवं उद्योगमंत्री श्री राजेन्द्र शुक्ला ने उद्योगपतियों को संबोधित किया और बताया कि इन्वेस्ट पोर्टल एम.पी. के जरिये निवेशक छह विभाग और 22 सेवाओं से सीधे जुड़ जाता है और उसे पोर्टल के माध्यम से सीधे सभी प्रकार की जानकारियां सुलभ घर बैठे ही प्राप्त हो जाती हैं और किसी भी प्रकार की असुविधा नहीं होती है। प्रमुख सचिव वाणिज्य एवं उद्योग मोहम्मद सुलेमान ने दृश्य एवं श्रव्य माध्यम से दोनों वेब पोर्टल के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

प्रेस विज्ञप्ति


कार्य कर रहे संघ के वैचारिक समूह- अरूण कुमार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से संघ के स्वयंसेवक 35 विभिन्न संघटनों के माध्यम से समाज जीवन के अनेक क्षेत्रों में सक्रिय है। समाज जीवन के एक ही क्षेत्र में सक्रिय ऐसे समान धर्मी संगठन अपने क्षेत्र में चल रहे कार्य, अनुभव एवं निरीक्षण साँझा करने हेतु एकत्र आते है। इसलिए उनके शिक्षा, आर्थिक, सेवा, सामाजिक तथा वैचारिक क्षेत्र ऐसे समूह बनाए गए है जिससे आपस में अधिक विस्तारपूर्वक चर्चा हो सके। ऐसी बैठकें 2007 से प्रतिवर्ष हो रही है। इस वर्ष इन में से कुछ समूहों की बैठकें 28 से 31 मई 2018 के बीच दिल्ली में होने जा रही है। ये समन्वय बैठक नहीं है और ना ही यह कोई निर्णय लेने वाली बैठक है। केवल प्रयोग, अनुभव एवं निरीक्षण साँझा करने के लिए ये बैठकें होती है।

कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रियों के लिए अविलंब स्नान कराने की व्यवस्था हो - पंकज गोयल


नई दिल्ली, 28 मई। तिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर, जो कि चीन के अधीन है, यात्रा पर गए हुए भारत और अन्य देशों से लगभग 5000 हिंदू तीर्थ यात्रियों के साथ चीनी सरकार के आदेश पर चीनी सैनिकों के द्वारा किए गए अमानवीय व्यवहार और उनको परिक्रमा के बाद स्नान ना करने देने पर भारत तिब्बत सहयोग मंच के महामंत्री श्रीमान पंकज गोयल जी ने इस कृत्य की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए भारत सरकार से मांग किया है कि भारत सरकार तत्काल प्रभाव से चीन सरकार से बात करें और यात्रियों को अभिलंब स्नान करने की व्यवस्था कराएं और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करें। चीनी सामान पर प्रतिबंध लगाएं। नहीं तो भारत तिब्बत सहयोग मंच देशभर में प्रदर्शन करेगा उन्होंने आगे कहा कि आज कैलाश मानसरोवर में चीन सरकार के आदेश के कारण कैलाश मानसरोवर की परिक्रमा के बाद स्नान करने की जो प्रथा है उसको सैनिकों ने मना कर दिया इससे संपूर्ण विश्व के हिंदुओं में बड़ा रोष है। यह हिंदुओं की आस्था पर बहुत बड़ा कुठाराघात है। एक तीर्थयात्री जीवन में एक बार लाखों रुपए खर्च करके बड़ी मुश्किल से कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर पाता है और अगर वहां जाकर उसकी आस्था के अनुसार अगर वह स्नान ना कर सके इससे दुख की बात और क्या हो सकती है। सरकार मामले को संज्ञान में लें।

Monday, May 28, 2018

अपनी बानी में दवाई की पढ़ाई


डॉ. वेदप्रताप वैदिक
आजकल मैं इंदौर में हूं। यहां के अखबारों में छपी एक खबर ऐसी है कि जिस पर पूरे देश का ध्यान जाना चाहिए। केंद्र सरकार का भी और प्रांतीय सरकारों का भी। चिकित्सा के क्षेत्र में यह क्रांतिकारी कदम है। पिछले 50 साल से देश के नेताओं और डाॅक्टरों से मैं आग्रह कर रहा हूं कि मेडिकल की पढ़ाई आप हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में शुरु करें। ताकि उसके कई फायदे देश को एक साथ हों। एक तो पढ़ाई के आसान होने से डाॅक्टरों की संख्या बढ़ेगी। गांव-गांव तक रोगियों का इलाज हो सकेगा। दूसरा, इलाज के नाम पर अंग्रेजी के जादू-टोने से जो ठगी होती है, वह रुकेगी। तीसरा, दवाइयों के दामों में जो लूट-पाट मचती है, वह रुकेगी। हिंदी में नुस्खे लिखे जाएंगे तो वे मरीज के भी पल्ले पड़ेंगे। चौथा, स्वभाषा में पढ़ाई होने पर छात्रों की मौलिकता में वृद्धि होती है। यदि वे अनुसंधान अपनी भाषा में करेंगे तो भारत में पैदा होनेवाले रोगों का मौलिक इलाज़ ढूंढ सकेंगे। विदेशों पर होनेवाली उनकी पूर्ण निर्भरता घटेगी। इन सब बुनियादी कामों की शुरुआत अब मध्यप्रदेश में हो रही है। यहां की मेडिकल युनिवर्सिटी के बोर्ड आॅफ स्टडीज ने फैसला कर लिया है कि सभी चिकित्सा परीक्षाएं अब हिंदी में भी होंगी। मेरी बधाई ! ऐसी अनुमति देनेवाली दिल्ली की मेडिकल कौंसिल को भी धन्यवाद ! और सबसे ज्यादा आभार, धन्यवाद और बधाई भारत के स्वास्थ्य मंत्री जगतप्रकाश नड्ढा को, जिनसे इस मामले में बराबर मेरी बात होती रही और जिन्होंने लगभग दो माह पहले ही मुझसे कहा था कि अब मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में ही नहीं, कई भारतीय भाषाओं में शुरु होने ही वाली है। यह मप्र में सबसे पहले शुरु हुई है, इसलिए मुख्यमंत्री शिवराज चौहान भी बधाई के पात्र हैं। मप्र के डाॅक्टर बंधुओं से मेरा निवेदन है कि वे मेडिकल की हिंदी पाठ्य-पुस्तकें जल्दी से जल्दी तैयार करें ताकि मप्र चिकित्सा-क्रांति का अग्रदूत बन सके।

Saturday, May 26, 2018

सेवा कार्य में प्रसिद्धि की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए : दत्तात्रेय होसबाले


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सेवा विभाग की वेबसाइट www.sewagatha.org का लोकार्पण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने दिल्ली के मावलंकर सभागार में 26 मई को किया । इस अवसर पर सेवा गाथा एप्प का भी लोकार्पण किया गया। दत्तात्रेय होसबाले ने इस मौके पर कहा कि दैवीय, प्रकृति आपदाओं के समय सबसे पहले आरएसएस के स्वयंसेवक पहुँचते ही है। अब यह समाज में सहज रूप से माना जाने लगा है। स्वयंसेवकों द्वारा समाज के संकट काल में संघ लोगों की संवेदनाएं जगाने का कार्य करता है। स्वामी विवेकानंद का सन्दर्भ देते हुए उन्होंने कहा कि भूखे व्यक्तियों को प्रवचन देने से पहले उनको रोटी दो, यही उनका उद्धार है। उत्तराखंड बाढ़ के समय सेवा भारती के राहत कार्य की प्रशंसा करते हुए श्री होसबाले ने कहा कि इसी तरह जैसे लातूर आदि अनेक स्थानों में त्वरित राहत कार्य और पुनर्वास कार्य संघ के स्वयंसेवकों करवाए। आज भी लातूर में भूकंप के 25 साल बाद भी छात्रावास और चिकित्सालय चल रहे हैं। संघ के स्वयंसेवकों को सेवा कार्य के लिए दिया गया 100 रुपये 101 रुपये बनकर जरूरतमंदों तक पहुँचता है। लगातार सेवा करने का कार्य सेवा भारती समाज के सम्पर्क और सहयोग से स्वयंसेवकों के माध्यम से कर रही है। समाज का स्वयंसेवकों पर विशवास बढ़ा है। सेवा भाव मनुष्य मात्र में स्वाभाविक रूप से है ही, बस उसे जागृत करने की आवश्यकता है जिसे संघ का सेवा बिभाग कर रहा है। संघ ने अपने व्यवहार, आचरण से समाज का विश्वास अर्जित किया है। उन्होंने बताया कि सेवा कार्य में प्रसिद्धि की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए, उससे सेवा का महत्व नष्ट हो जाता है, किन्तु लोगों में सेवा की प्रेरणा जगाने लिए संवाद करना चाहिए। इसलिए सेवा के अपने कार्य में गुणात्मक वृद्धि के लिए वेबसाइट शुरू की गयी है। कार्यकर्ता आपस में अनुभवों का आदान प्रदान करें। संघ की 52 हजार शाखाएँ हैं। श्री होसबाले ने कहा कि शाखा द्वारा छोटे-छोटे सेवा कार्य करें, उससे और लोग इन सेवा कार्यों से जुड़ें। इसके लिए संस्थाओं, चंदे-रसीद की आवश्यकता नहीं है। समाज के विभिन्न वर्गों की सेवा के लिए संस्थागत कार्य की आवश्यकता होती है, इस तरह के कार्य सेवा भारती कार्य कर रही है। मेरा समय, धन, ज्ञान, अनुभव ईश्वर की संपती है इसको वंचितों को समर्पित करना ईश्वर को ही अर्पण करना है, ईश्वर की ही सेवा है। जैसे तुलसी की माला ह्रदय को शांति देती है वैसे सेवा कार्यों की माला ह्रदय को शांति प्रदान करती है। इस मौके पर केंद्रीय जल संसाधन राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने केंद्र सरकार के 4 साल सफलतापूर्वक पूर्ण होने पर सभी को बधाई देते हुए कहा कि आरएसएस सेवा विभाग की बीकानेर इकाई ने थार रेगिस्तान में बेघर लोगों को इकठ्ठा करके उनके करीब 60 बच्चों के लिए होस्टल बनाया, सेवा भारती ने वहां समाज से सहयोग लेकर, आवासीय विद्यालय के रूप में उनको शिक्षित करने का बीड़ा उठाया है। लगातार संस्कार देकर होस्टल में पढ़ाना सेवा का एक बहुत अच्छा उदाहरण है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिल्ली प्रान्त संघचालक कुलभूषण आहूजा ने कार्यक्रम में आए गणमान्य अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर उत्तर क्षेत्र के सह क्षेत्र कार्यवाह विजय जी, सेवा भारती के ऋषिपाल डडवाल, दिल्ली प्रान्त प्रचारक हरीश जी, दिल्ली प्रान्त कार्यवाह भारत जी और प्रान्त सेवा प्रमुख उपस्थित थे।

नर्मदा को सिर्फ पूजें नहीं, उसे बचाएं: वेगड़


माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता वि.वि. ने वयोवृद्ध लेखक श्री अमृतलाल वेगड़ को डी. लिट. की उपाधि से सम्मानित किया जबलपुर, 26 मई। ख्यातिलब्ध लेखक और पर्यावरणविद् अमृतलाल वेगड़ ने कहा कि नदियों को सिर्फ पूजने के बजाए उनको बचाने की जरूरत है। हम नर्मदा को मां कहते हैं किंतु हमने उसका क्या हाल बना रखा है, यह किसी से छिपा नहीं है। हमारी कथनी और करनी में अंतर ही वह एकमेव कारण है, जिसके कारण हम एक हजार साल तक गुलाम रहे। यह प्रवृत्ति आज भी कम नहीं हुई है। श्री वेगड़ ने ये विचार माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से डी. लिट. (विद्या वाचस्पति) की मानद उपाधि से सम्मानित किये जाने के अवसर पर व्यक्त किये। विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में उपराष्ट्रपति एवं विश्वविद्यालय के कुलाध्यक्ष वेंकैया नायडू ने श्री वेगड़ को डी. लिट. की मानद उपाधि दिए जाने की घोषणा की थी। स्वास्थ्य कारणों से श्री वेगड़ विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में नहीं आ सके थे। विश्वविद्यालय प्रशासन ने निर्णय लिया था कि श्री वेगड़ के निवास पर जाकर कुलपति जगदीश उपासने उन्हें यह अलंकरण प्रदान करेंगे। जबलपुर में अपने आवास आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि हमने हर विषय पर ऊंची-ऊंची बातें तो कीं पर कर्म का खाता खाली है। इसलिए हमें नर्मदा सहित अपनी सभी नदियों की पूजा करने, दीप जलाने के साथ उनकी स्वच्छता और निर्मल प्रवाह को बनाए रखने के लिए खास प्रयास करने होंगे। इस मौके पर विश्वविद्यालय के कुलपति जगदीश उपासने ने कहा कि श्री वेगड़ हमारी ऋषि परंपरा के उत्तराधिकारी हैं। उन्होंने अपना समूचा जीवन लोकसंचार के लिए समर्पित कर दिया। वे सच्चे संचारकर्ता हैं, क्योंकि कोई भी संचार समाज के लिए होता है और वही संचार सार्थक है, जिसमें लोकमंगल की भावना निहित हो। उनका पूरा जीवन ही एक सार्थक संचार है। उन्हें सम्मानित कर विश्वविद्यालय पर्यावरण और नदी संरक्षण से जुड़ी उनकी चिंताओं को अकादमिक प्रतिष्ठा दिलाने का प्रयास भी करेगा। जबलपुर की महापौर स्वाति गोडबाले ने इस अवसर श्री वेगड़ को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि वे जबलपुर के गौरवपुरूष और हमारे प्रेरणाश्रोत हैं। उनकी प्रेरणा और प्रोत्साहन से मां नर्मदा के प्रति सामाजिक समझ बढ़ी है। उन्होंने कहा कि श्री वेगड़ ने नदियों के संरक्षण के विषय को राष्ट्रीय फलक पर स्थापित कर दिया है। नर्मदा रेखांकन का लोकार्पणः
समारोह में श्री वेगड़ की इच्छानुसार उनके नर्मदा के रेखांकन पर केंद्रित प्रकाशन नर्मदा रेखांकन का लोकार्पण कुलपति श्री जगदीश उपासने ने किया। पुस्तक में अद्भुत नदी नर्मदा की परिक्रमा पर आधारित रेखाचित्र हैं। इन रेखांचित्रों में नर्मदा के बहुआयामी सौंदर्य को रेखांकित किया गया है।

Friday, May 25, 2018

जीवन : शब्दों के बीच और शब्दों से परे


गिरीश्वर मिश्र आज सभी संचार माध्यमों द्वारा हमारा पूरा परिवेश शब्दमय हो रहा है। चारो ओर तरह-तरह के शब्द गूँज रहे हैं। चूँकि शब्द महज़ प्रतीक होते हैं इसलिए ध्वनि से अधिक इनकी व्यंजना या अर्थ का महत्व होता है । इन शब्दों को प्रयोग में लाने के लिए सिर्फ़ एक माध्यम की ज़रूरत होती है। माध्यम पर सवार ये शब्द अपने मुक़ाम की ओर आगे चल पड़ते हैं। उन्हें थोड़ा सा सहारा चाहिए फिर वे ग़ज़ब ढाते हैं। वे दूसरों तक संदेश पहुँचाने, निर्देश देने, सहारा पहुँचाने, इंगित करने का काम आसान कर देते हैं। इसके अलावे इनकी बड़ी भूमिका हमारे मनोभावों की व्यापक दुनिया रचने, बसाने और अनुभव करने में सहायक के रूप में हैं। प्रशंसा, उत्साह, विषाद, हर्ष, माधुर्य, आह्लाद, शोक, पीड़ा, साहस, निंदा, लज्जा, आक्रोश, स्तुति, दया, वात्सल्य, भक्ति, घात, प्रतिघात, आसत्ति (उलझन), स्फाल (घबराहट), करुणा, कृतज्ञता, प्रेम, प्रणय, ममत्व, औदार्य, मृदुता, आनंद, आह्लाद, स्पृहा, ईर्ष्या, जुगुप्सा, द्वेष, घृणा, क्रूरता, हिंसा, ग्लानि, अनुनय, हास-परिहास, कुतूहल, विराग, प्रतिपत्ति, विस्मय, कौतुक, परिताप, व्यंग, कुंठा, विनय, प्रार्थना, पूजा, आराधना, पश्चाताप, वियोग, आदि जाने कितने भावों और रसों को व्यक्त करने के लिए अनेकानेक शब्दों का प्रयोग किया जाता है। मनुष्य जीवन की इबारत हर क्षण इन्हीं सबके साथ से पढ़ी लिखी जाती है। यही सब तो होता रहता है प्रतिदिन। अहर्निश इन्हीं से हम परिचालित होते रहते हैं। जीवन-व्यापार में नफ़ा नुक़सान और कुछ नहीं इन्हीं की कारस्तानी होती है। भावों से ही जीवन में रंग भरे जाते हैं और इन भावों को सजीव करने वाले शब्द ही हैं । शब्द हमें अलौकिक ढंग से समृद्ध करते चलते है। कभी ये शब्द आमने-सामने बोल कर या फिर लिखित रूप में सजीव हुआ करते थे। लिपि के आविष्कार के साथ लोग वाणी को लिखित रूप मिला। वह भौतिक वस्तु के क़रीब आई। लोग अभिव्यक्ति के संचार के लिए पत्र लिखने लगे। वाणी का भी विस्तार हुआ। टेलीफ़ोन, मोबाइल, स्काइप, फ़ेस टाइम के ज़रिए वाणी और वक्ता की निकटता देश कल की सीमाओं को पार करती जा रही है। अब ई-माध्यम (इंटरनेट) इनको और द्रुत गति से लिखित सामग्री को तुरत-फुरत देश-विदेश सर्वत्र पहुँचाते रहने का कार्य करते हैं। शब्दों की सत्ता और व्याप्ति के नित्य नए आयाम खुलते जा रहे हैं। पर शब्द केवल अभिव्यक्ति या प्रस्तुति तक ही सीमित नहीं रहते। हमारे द्वारा प्रयुक्त शब्द लेंस की तरह भी काम करते हैं और उनके माध्यम से हम दुनिया का दूसरा रूप भी देख पाते हैं। तभी भर्तृहरि ने कहा शब्द से ही दुनिया हमें विदित हो पाती है ( सर्वं शब्देन भासते!) यों भी कहा जा सकता है कि जब हम अपने पार जाकर अपना अतिक्रमण करना चाहते हैं या फिर जो हैं उससे आगे जा कर कुछ और होना चाहते हैं, तो उसे भी संभव करने में ये शब्द बड़े मददगार होते हैं। शब्द हमारी कल्पना शक्ति को ऊर्जा देते हैं और रूपांतरण को संभव बनाते हैं। पूरा सर्जनात्मक साहित्य शब्दों की इस विलक्षण रचनाधर्मिता का प्रमाण है। काव्य, नाटक, कथा और उपन्यास जैसी विधाओं में रचे साहित्य से समाज का न केवल मानस बनता बिगड़ता है बल्कि कार्य करने की दिशा भी तय होती है। वस्तु न हो कर प्रतीक होने के कारण शब्दों के प्रयोग को लेकर बड़ी गुंजाइश रहती है। प्रतिभाशाली लेखक और कवि छंद, लय और अलंकारों की सहायता से अपनी प्रस्तुति में विचित्रता लाते हैं। उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अनुप्रास, यमक जैसे अलंकार ध्वनि और शब्दार्थ की अद्भुत जोड़ी बैठाते हैं। इनके प्रयोग से वाक्चातुर्य कुछ ऐसा समाँ बाँधता है कि सुनने वाले चकित हो उठते हैं। प्रकट रूप से कहते हुए भी कुछ न कहना और न कहते हुए भी बहुत कुछ कह डालना और कहते हुए भी छुपा ले जाने की क्षमता परम्परागत कवि-कुशलता या निपुणता में परिगणित होती है। इस तरह जोड़ने और जुड़ने का अवसर पैदा करते ये शब्द हमारे निजी और सामाजिक जीवन का मानचित्र तैयार करते हुए हमारे अस्तित्व के साथ अभिन्न रूप से सम्बद्ध होते हैं। जब शब्द कार्यों से जुड़ते हैं तो हमारी दुनिया की कायापलट करते हैं। ये शब्द हमारे मानस के स्तर पर पहले और भौतिक स्तर पर पर उसके बाद बदलाव लाते हैं क्योंकि उनका ग्रहण हम मानस से ही करते हैं। ऐसे में यदि शब्दों कि दुनिया अक्षर-विश्व कही जाय (अनादिनिधनं देवं शब्दतत्वं यदक्षरं ) जो कभी समाप्त न हो तो, यह स्वाभाविक ही है। वैसे तो शब्दों का खेल और जादूगरी जीवन में हमेशा ही चलती रहती है पर चुनाव जैसे राजनैतिक-सामाजिक महत्व के मौक़े पर उसके नए रंग-ढंग और तेवर दिखाई पड़ते हैं क्योंकि तब बदलाव लाने की पुरज़ोर कोशिश बड़ी शिद्दत से की जाती है। समय का दबाव शब्दों की दौड़ को गति दे कर तीव्र बना देता है। तब भाषा विरोधी को परास्त करने का उपकरण बन जाती है। उठापटक वाली इस दौड़ में वाक्युद्ध शुरू हो जाता है। हास्य-व्यंग, तर्क-कुतर्क, तथ्य और संभावना सबका दौर चलता है। ढूँढ-ढूँढ कर तथ्य जुटाए जाते हैं और उनका नए-पुराने संदर्भों में चूल गाँठ फ़िट की जाती है। कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा जोड़ घटा कर दिन-प्रतिदिन चुनावी माहौल की गर्माहट बनाए रखने की कोशिश रहती है। इन सबके बीच शब्द का व्यापार पनपता है जिसमें नेता, अभिनेता, विशेषज्ञ हर कोई शामिल रहता है और उनकी मदद से ‘जेनुइन’ और प्रामाणिक लगने वाला बड़ा चित्र उकेरा जाता है। जन समर्थन हासिल करने के लिए एक दूसरे पर लांछन लगा कर छवि धूमिल करना या संशयग्रस्त सिद्ध करना आम बात हो गई है। शब्दों से सपने बुनने और बेंचने के लिए लोक लुभावन मेनिफ़ेस्टो या घोषणापत्र तैयार किया जाता है। आम जनता इन सबको अपने ढंग से आत्मसात करती है । सच पूछें तो हमारे शब्दों की दुनिया बड़ी ही विचित्र होती है। वे एक ओर मूर्त और प्रत्यक्ष दुनिया से पहचान (नाम) के रूप में जुड़ते हैं तो दूसरी ओर एक समानांतर दुनिया भी रचते जाते हैं और आगे रचने की संभावना भी बनाए रखते हैं । मूलतः वे प्रतीक हैं और इसलिए उनसे हम तरह-तरह के काम लेना संभव हो पता है। संवाद और संचार का सारा दारोमदार इन्हीं पर होता है। चूँकि आत्माभिव्यक्ति जीने की शर्त है हम शब्दों से विलग नहीं हो सकते। यह हमारी अपनी रचना है और ऐसी रचना जो हमें रचती जाती है। शब्द एक नई दुनिया का द्वार खोलते हैं। अपरिचित शब्द जब परिचित होता है तो यकायक प्रच्छ्न प्रकट हो जाता है और निरर्थक सर गर्भित। शब्द हमारे अनुभव की सीमा गढ़ते हैं और उसका विस्तार भी करते हैं। कहते हैं संसार में लगभग सात हज़ार भाषाएँ बोली जाती हैं। हर भाषा का अपना सांस्कृतिक संदर्भ है जिसकी परिधि में हम संवेदनाओं को शब्द दे कर उससे जुड़ते हैं। प्रत्येक भाषा हमें अपने यथार्थ को ग्रहण करने, उकेरने और रचने का अवसर देती है।अतः भाषाओं का संस्कार बचाए रखना ज़रूरी है।

फड़नवीस का अनुकरणीय काम

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डॉ. वेदप्रताप वैदिक आजकल मैं मुंबई में हूं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने आज मुझे ऐसी भेंट दी है, जो आज तक किसी ने नहीं दी है। वे देश के ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने सरकार के सारे अंदरुनी काम-काज से अंग्रेजी के बहिष्कार का आदेश जारी कर दिया है। ऐसा करके उन्होंने महात्मा गांधी, गुरु गोलवलकर और डाॅ. राममनोहर लोहिया का सपना साकार किया है। महाराष्ट्र सरकार के सारे सरकारी अधिकारी अब अपना सारा काम-काज मराठी में करेंगे। यह नियम मंत्रियों पर भी लागू होगा। जाहिर है कि इस नियम का अर्थ यह नहीं है कि मराठी के अलावा किसी भी अन्य भारतीय भाषा में भी काम नहीं होगा। केंद्र से व्यवहार करने में हिंदी का प्रयोग तो संवैधानिक आवश्यकता है। इसी तरह मुंबई-जैसे बहुभाषी, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शहर में किसी एक भाषा से काम नहीं चल सकता। इस शहर में तो कुछ विदेशी भाषाएं भी चलें तो उन्हें हमें बर्दाश्त करना पड़ेगा लेकिन कितने दुख की बात है कि आजादी के 70 साल बाद भी हमारे दूर-दराज के जिलों में भी राज्य सरकारें अपना काम-काज अंग्रेजी में करती हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने भाषा के मामले में देश के सभी मुख्यमंत्रियों को सही और अनुकरणीय रास्ता दिखाया है। मैं देवेंद्रजी से कहूंगा कि आप हिम्मत करें और विधानसभा में भी सारे कानून मूल हिंदी और मराठी में बनवाएं और यही नियम महाराष्ट्र की अदालतों पर लागू करवाएं। महाराष्ट्र की सभी पाठशालाओं, विद्यालयों और महाविद्यालयों में चलनेवाली अंग्रेजी की अनिवार्य पढ़ाई पर प्रतिबंध लगाएं। जो भी स्वेच्छा से विदेशी भाषाएं पढ़ना चाहें, जरुर पढ़ें। यदि वे ऐसा करवा सकें तो वे भारत को दुनिया की महाशक्ति बनानेवाले महान पुरोधा माने जाएंगे, जो कि मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने से भी बड़ी बात है।

हिन्दी गजल और दुष्यंत कुमार


डॉ.सौरभ मालवीय
हिन्दी गजल हिन्दी साहित्य की एक नई विधा है. नई विधा इसलिए है, क्योंकि गजल मूलत फारसी की काव्य विधा है. फारसी से यह उर्दू में आई. गजल उर्दू भाषा की आत्मा है. गजल का अर्थ है प्रेमी-प्रेमिका का वार्तालाप. आरंभ में गजल प्रेम की अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम थी, किन्तु समय बीतने के साथ-साथ इसमें बदलाव आया और प्रेम के अतिरिक्त अन्य विषय भी इसमें सम्मिलित हो गए. आज हिन्दी गजल ने अपनी पहचान बना ली है. हिन्दी गजल को शिखर तक पहुंचाने में समकालीन कवि दुष्यंत कुमार की भूमिका सराहनीय रही है. वे दुष्यंत कुमार ही हैं, जिन्होंने हिन्दी गजल की रचना कर इसे विशेष पहचान दिलाई. दुष्यंत कुमार का जन्म 1 सितम्बर, 1933 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के गांव राजपुर नवादा में हुआ था. उनका पूरा नाम दुष्यंत कुमार त्यागी था. उन्होंने इलाहबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी. उन्होंने आकाशवाणी भोपाल में सहायक निर्माता के रूप में कार्य शुरू किया था. प्रारंभ में वे परदेशी के नाम से लिखा करते थे, किन्तु बाद में वे अपने ही नाम से लिखने लगे. वे साहित्य की कई विधाओं में लेखन करते थे. उन्होंने कई उपन्यास लिखे, जिनमें सूर्य का स्वागत, आवाजों के घेरे, जलते हुए वन का बसंत, छोटे-छोटे सवाल, आंगन में एक वृक्ष, दुहरी जिंदगी सम्मिलित हैं. उन्होंने एक मसीहा मर गया नामक नाटक भी लिखा. उन्होंने काव्य नाटक एक कंठ विषपायी की भी रचना की. उन्होंने लघुकथाएं भी लिखीं. उनके इस संग्रह का नाम मन के कोण है. उनका गजल संग्रह साये में धूप बहुत लोकप्रिय हुआ. दुष्यंत कुमार की गजलों में उनके समय की परिस्थितियों का वर्णन मिलता है. वे केवल प्रेम की बात नहीं करते, अपितु अपने आसपास के परिवेश को अपनी गजल का विषय बनाते है. वे कहते हैं- ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा यहां तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियां मुझे मालूम है पानी कहां ठहरा हुआ होगा यहां तो सिर्फ गूंगे और बहरे लोग बसते हैं ख़ुदा जाने वहां पर किस तरह जलसा हुआ होगा उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से भ्रष्टाचार का उल्लेख किया. वे कहते हैं- इस सड़क पर इस कद्र कीचड़ बिछी है हर किसी का पांव घुटने तक सना है शासन-प्रशासन की व्यवस्था पर भी वे कटाक्ष करते हैं. वे कहते हैं- भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ आजकल दिल्ली में है जेरे बहस ये मुद्दा वे सामाजिक परिस्थितियों पर भी अपनी लेखनी चलाते हैं. समाज में पनप रही संवेदनहीनता और मानवीय संवेदनाओं के ह्रास पर वे कहते हैं- इस शहर मे वो कोई बारात हो या वारदात अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं खिड़कियां वे पलायनवादी कवि नहीं हैं. उन्होंने परिस्थितियों के दबाव में पलायन को नहीं चुना. वे हर विपरीत परिस्थिति में धैर्य के साथ आगे बढ़ने की बात करते हैं. उनका मानना था कि अगर साहस के साथ मुकाबला किया जाए, तो कोई शक्ति आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती. वे कहते हैं- एक चिंगारी कहीं से ढूंढ लाओ दोस्तों इस दीये में तेल से भीगी हुई बाती तो है कैसे आकाश में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालों यारों वास्तव में दुष्यंत कुमार आम आदमी के कवि हैं. उन्होंने आम लोगों की पीड़ा को अपनी गजलों में स्थान दिया. उनके दुखों को गहराई से अनुभव किया. वे कहते हैं- हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए वे एक ऐसे समाज की कल्पना करते थे, जिसमें कोई अभाव में न रहे. किन्तु देश में गरीबी है. लोग अभाव में जीवन व्यतीत कर रहे हैं. उन्हें भरपेट खाने को भी नहीं मिलता. इन परिस्थतियों से दुष्यंत कुमार कराह उठते हैं. वे कहते हैं- कहां तो तय था चिरागां हर एक घर के लिए कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए यहां दरख्तों के साये में धूप लगती है चलो यहां से चलें और उम्र भर के लिए जियें तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए दुष्यंत कुमार ने बहुत कम समय में वह लोकप्रियता प्राप्त कर ली थी, जो हर किसी को नहीं मिलती. किन्तु नियति के क्रूर हाथों ने उन्हें छीन लिया. उनका निधन 30 दिसम्बर, 1975 में हुआ. केवल 42 वर्ष की अवस्था में हिन्दी गजल का एक नक्षत्र हमेशा के लिए अस्त हो गया. हिन्दी साहित्य जगत में उनकी कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता.

प्रेस विज्ञप्ति


पत्रकार को सर्वसमावेशक की भूमिका निभानी चाहिए: वैद्य नागपुर,25 मई। ख्यातिलब्ध विचारक और वयोवृद्ध पत्रकार मा. गो. वैद्य ने कहा कि पत्रकार और संपादक को सर्वसमावेशक की भूमिका निभानी चाहिए| समाचार पत्र भी समावेशी होना चाहिए| समाचार पत्र के वैचारिक पृष्ठ पर सभी प्रकार के विचारों को अवसर दिया जाना चाहिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी समावेशी है। जो लोग संघ को नहीं पहचानते हैं, वे इसे 'एक्सक्लूसिव' की नजर से देखते हैं। वैद्य ने यह विचार माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की और से डी. लिट. (विद्या वाचस्पति) की मानद उपाधि से सम्मानित किये जाने के अवसर पर व्यक्त किया। विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भारत के उपराष्ट्रपति एवं विश्वविद्यालय के कुलाध्यक्ष एम वैंकैया नायडू ने श्री वैद्य को डी. लिट. की मानद उपाधि दिए जाने की घोषणा की थी। स्वास्थ्य कारणों से श्री वैद्य विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में नहीं आ सके थे। नागपुर में आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए श्री वैद्य ने कहा कि वे संयोगवश पत्रकारिता के पेशे में आए, जबकि वे मूलतः शिक्षक हैं। जनसंघ के नागपुर क्षेत्र के संगठन मंत्री रहे। बीच-बीच में संघ की प्रतिनिधि सभा के प्रस्तावों का लेखन करते थे। इसे देखकर तत्कालीन सरकार्यवाह बालासाहब देवरस ने उन्हें 'तरुण भारत' का संपादक बना दिया। उन्होंने कहा कि संपादक रहते उन्होंने कभी-भी अपने नाम से लेख नहीं लिखा, बल्कि'नीरज' के नाम से लिखते रहे। श्री वैद्य ने कहा कि तरूण भारत को संघ के मुख्य पत्र के रूप में देखा जाता था, लेकिन साम्यवादी और कांग्रेस के विचारों को भी स्थान दिया जाता था। विश्वविद्यालय के कुलपति जगदीश उपासने, कुलाधिसचिव लाजपत आहूजा और कुलसचिव संजय द्विवेदी ने श्री वैद्य को डी. लिट. की उपाधि से सम्मानित किया। मंच पर उनकी पत्नी सुनंदा वैद्य भी उपस्थित थीं। इसके पूर्व कुलपति श्री उपासने ने उन्हें डी. लिट. की मानद उपाधि दिए जाने की विधिवत घोषणा की। कुलाधिसचिव श्री आहूजा ने प्रशस्ति पत्र का वाचन किया, जबकि कार्यक्रम का संचालन कुलसचिव श्री द्विवेदी ने किया। इस अवसर पर समाजसेवी विराग पाचपोर, पत्रकार कृष्ण नागपाल, नागपुर के मीडिया संस्थानों के प्रतिनिधि, वरिष्ठ नागरिक, विश्वविद्यालय के आदित्य जैन आदि उपस्थित थे। आभार सहायक कुलसचिव गिरीश जोशी ने माना।

Friday, May 18, 2018

मध्यप्रदेश के खण्डवा जिले में जल्द खुलेगा सैनिक स्कूल


नई दिल्ली, 18 मई, 2018. मध्यप्रदेश के खण्डवा जिले में जल्द ही सैनिक स्कूल खोला जायेगा। इस संबंध में मध्यप्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री कुंवर विजय शाह ने आज यहां केन्द्रीय गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह से उनके कार्यालय में मुलाकात कर खण्डवा जिले में सैनिक स्कूल खोलने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि खण्डवा जिला भौगोलिक, सड़क एवं रेल मार्ग की दृष्टि से सबसे उपयुक्त जिला है, साथ ही आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण वहां के छात्र एवं छात्राओं के लिए नई संभावनाएं उत्पन्न होगीं। उन्होंने आग्रह किया कि एक हजार क्षमता का पैरा-मिलिट्री स्कूल स्थापित किया जाय, जिससे समूचे क्षेत्र के अनुसूचित जनजाति वर्ग के विद्यार्थियों को इसका लाभ मिल सके। उन्होंने कहा कि सैनिक स्कूल खोलने पर आर्थिक भार का 90 प्रतिशत केन्द्र सरकार वहन करे और 10 प्रतिशत मध्यप्रदेश सरकार द्वारा वहन किया जाय। अपराधों रोकने के लिए शुरू होगा ’जनता संवाद’ कुंवर विजय शाह ने देश में बढ़ते हुए अपराधों को प्रभावी रूप से नियंत्रित किये जाने की दिशा में सुझाव देते हुए कहा कि ’जनता संवाद’ कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिए। इसके अंतर्गत पुलिस और जनता के बीच हर माह एक बार संवाद स्थापित किया जाना चाहिए, जिसमें पुलिस और महिला पुलिस बिना वर्दी के जनता से संवाद स्थापित करें ताकि महिलाओं और आम जनता के बीच पुलिस के प्रति भय का वातावरण समाप्त हो सके। विजय शाह की गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात श्री शाह ने स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस के अवसर पर विद्यालयों में ध्वजारोहण समारोह सैनिकों द्वारा कराये जाने का भी सुझाव दिया। साथ ही शासकीय विद्यालयों का नामकरण शहीद सैनिकों के नाम किये जाने पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि इससे छात्र-छात्राओं में देशप्रेम-देश की रक्षा के प्रति जज्बा जागृत होगा। केन्द्रीय गृहमंत्री श्री राज नाथ सिंह ने श्री विजय शाह द्वारा दिये गये सुझावों को ध्यानपूर्वक सुना और शीघ्र कार्यवाही करने का आश्वासन दिया।

Thursday, May 17, 2018

भोपाल में खुलेगा राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास संस्थान,कैबिनेट ने दी मंजूरी


नई दिल्ली, 17 मई, 2018. मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास संस्थान खोला जायेगा। इसकी मंजूरी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने दी। यह संस्थान निःशक्त जन सशक्तिकरण विभाग के अंतर्गत सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के तहत स्थापित किया जायेगा। एन.आई.एम.एच.आर. का मुख्य उद्देश्य मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के पुनर्वास की व्यवस्था करना, मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास के क्षेत्र में क्षमता विकास तथा मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास के लिए नीति बनाना और अनुसंधान को बढ़ावा देना है। पहले तीन वर्षों में इस परियोजना में लगभग 179.5 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने इस संस्थान के लिए संयुक्त सचिव के तीन पद जिनमें निदेशक का एक पद भी शामिल है, के अलावा प्रोफेसर के दो पद की भी मंजूरी दी है। एन.आई.एम.एच.आर. देश में मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपने किस्म का पहला संस्थान होगा। मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्षमता विकास और पुनर्वास के मामले में यह एक अत्याधिक दक्ष संस्थान के रूप में काम करेगा और केन्द्र सरकार को मानसिक रोगियों के पुनर्वास को प्रभावी व्यवस्था का माॅडल विकसित करने में मददगार साबित होगा। मध्यप्रदेश सरकार ने संस्थान के लिए भोपाल में पांच एकड़ जमीन आवंटित की है। यह संस्थान दो चरणों में तीन वर्ष के भीतर बनकर तैयार हो जायेगा। संस्थान मानसिक रोगियों के लिए सभी तरह की पुनर्वास सेवाएं उपलब्ध कराने के साथ-साथ स्नातकोत्तर और एम.फिल डिग्री तक की शिक्षा की भी व्यवस्था करेगा। संस्थान में नौ विभाग होंगे। इसमें मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास के क्षेत्र में 12 विषयों में डिप्लोमा, सर्टिफिकेट, स्नातक, स्नातकोत्तर एवं एम.फिल डिग्री सहित 12 तरह के पाठ्यक्रम होंगे। पांच वर्षों के भीतर इस संस्था में विभिन्न विषयों में दाखिला लेने वाले छात्रों की चार सौ से ज्यादा होने की संभावना है।

Sunday, May 13, 2018

मां पर अस्फुट विचार


प्रकाशित लेखों और कहीं बोलने-सम्मानित होने जैसी सार्वजनीन गतिविधियों को छोड़कर मैं निजी तथ्यों को सोशल मीडिया पर गोपनहीन करने से बचता हूं.. आज मातृ दिवस है..सोशल मीडिया पर देख रहा हूं..मां-बच्चे के बेहद निजी रिश्ते को भी किस तरह सार्वजनिक कर-करके हम लोग लहालोट हो रहे हैं.. मां से रिश्ता तो ऐसा है कि वह कुमाता भी हो तो वह सांसों में रचा-बसा होता है..इसीलिए हमारे शास्त्र तो मानते ही नहीं माता कुमाता हो सकती है..कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति । आधी जिंदगी गुजर चुकी है..मातृ दिवस पर याद करने बैठा हूं तो जाया माता के साथ ही कितनी माताएं याद आ रही हैं..जाया मां तो मेरे सांस के साथ ही जाएगी... उसके अस्तित्व का क्या नकार और क्या स्वीकार..आप अस्वीकार करके भी उससे दूर थोड़े ही जा सकते हैं..आपकी रक्त वाहिनियों में गुजरते रक्त के हर कण, अस्थियों का एक-एक अणु, मज्जा की हर एक बूंद तो उसकी ही है..उसे क्या याद करना और क्या भूल जाना.. आप भूलते रहिए..लेकिन आपका अस्तित्व ही उसे न भुला पाने का सर्वश्रेेष्ठ उदाहरण है... मुझे अपनी जाया मां की तरह अपनी चाचियों से भी भरपूर प्यार मिलता रहा है...बहू-बच्चों वाली हो गई हैं वे..लेकिन उनके पास साल-छह महीने में पहुंच जाता हूं..अब भी वैसे ही प्यार करती हैं, जैसे जब वे ब्याह कर आई थीं तो करती थीं ...तब अपनी उम्र पांच से लेकर बारह साल तक रही थी... एक चाची तो दूसरी मां की ही तरह है...एक चाची तो अब भी गांव जाता हूं तो मुझे अपने घर में रूकने ही नहीं देती.. बुलावा भेज देती है..बहुएं रहीं भी, तब भी खुद ही चाय-नाश्ता बनाकर खिलाती-पिलाती है..जिसके लिए आज भी अपनी मां की तरह बबुआ ही हूं... मुझे उस बूढ़ी मां का दुलार आज भी भिगो रहा है, जब अपने चौथेपन में देवरिया के किसी गांव से अपने परिवार को छोड़कर मेरे गांव आ गई थीं.. बाबू ही कहती थीं..मांग-चोंग कर ही गुजारा करती थी..लेकिन अपना पूरा प्यार मुझ पर उड़ेल देती थी.. जब तीसरी कक्षा में था तो एक रात वह इस दुनिया से कूच कर गई थी..उस दिन का सूनापन आज भी जब याद आता है..अजीब-सी हूक और खालीपन से भर देता है... मइया यानी दादी तो 14 साल की उम्र तक मेरी दूसरी मां ही रहीं...वह मेरे पिता की ही मां नहीं थीं..मेरी भी थीं..हमारी ही नहीं..मेरे चचेरे चाचाओं की भी..चाचा भी बुढ़़ापे की ओर चल पड़े हैं और आज भी उन्हें याद करते हैं..मां तो वह अपने देवर यानी मेरे छोटे बाबा की भी थीं..जब आखिरी विदाई देने के लिए उन्हें कंधे पर उठाया था..तब छोटका बाबा के मुंह से उनके लिए निकले शब्द जब भी याद आते हैं, गहरे तक भिगो जाते हैं.. काकी को कैसे भूल सकता हूं..बाबूजी की चाची..उनकी सुन हम भी उन्हें काकी ही कहते थे..जब भी मां नहीं रहती थीं..हमारी मदद को आगे आने में देर नहीं लगाती थीं.. अपनी सास को भी भूल पाना आसान नहीं हैं..सास जी से साल-छह महीने में मिलता हूं तो उनकी आंखों की चमक ही बताती है कि वे मेरे लिए क्या हैं..और उनके लिए मैं बच्चे के अलावा क्या हूं.. जाया मां का अहसान चुका पाना इस जन्म में क्या, किसी भी जन्म में संभव नहीं..लेकिन अपने जीवन पर अहसानों की फेहरिश्त की ओर देखता हूं तो ऐसी कई मांएं नजर आती हैं..किन-किन का अहसान चुका सकता हूं..

Wednesday, January 24, 2018

साहित्य मनुष्य को बेहतर बनाता है

मुम्बई, "उपन्यास और कविताएं वस्तुतः जीवन और समाज की धड़कन होती है। व्यक्तित्व  चेहरों से याद रखे जाते हैं या कृति के माध्यम से। लेखक अपनी कृति से सदैव जीवित रहता है ।"यह उद्गार हेमंत फाउंडेशन पुरस्कार समारोह के मुख्य अतिथि भोपाल से पधारे आईसेक्ट यूनिवर्सिटी के रिसर्च जनरल अनुसंधान के संपादक सुप्रसिद्ध कवि विजयकांत वर्मा ने 20 जनवरी 2018 को श्री राजस्थानी सेवा संघ के सभागार में व्यक्त किए।
 कार्यक्रम का आरंभ दीप प्रज्वलन से शुरू हुआ। अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्था की अध्यक्ष सुप्रसिद्ध साहित्यकार संतोष श्रीवास्तव ने अपने स्वागत भाषण में कहा
"यह पुरस्कार हमारे लिए एक इम्तिहान की तरह है जिसे हम जीवन की चुनौती मानकर हर साल आयोजित करते हैं और आयोजित करते रहेंगे।" सितारों के आगे जहां और भी है अभी इश्क के इम्तिहां और भी है"
आयोजन की प्रस्तावना तथा संस्था का परिचय कथाकार पत्रकार संस्था की सचिव प्रमिला वर्मा ने दिया। उन्होंने विजय वर्मा कथा सम्मान एवं हेमंत स्मृति कविता सम्मान का संक्षिप्त इतिहास भी बतलाया। विजय वर्मा  सम्मान के लिए चयनित पुस्तक "दीनानाथ की चक्की" के बारे में बोलते हुए सुप्रसिद्ध पत्रकार हरीश पाठक ने कहा "अशोक मिश्र की कहानियां विमर्शवादी या फैशनेबल कहानियां नहीं है।उन्होंने संग्रह की कहानी `पत्रकार बुद्धिराम @पत्रकारिता डॉट कॉम" का विशेष उल्लेख किया । उन्होंने कहा कि इस कहानी में पत्रकारिता का पूरा सच बहुत ही विश्वसनीय ढंग से लिखा गया है। पाठक ने अशोक मिश्र की कहानी दीनानाथ की चक्की और अन्य की विस्तार से चर्चा की ।
हेमंत स्मृति कविता सम्मान के लिए चयनित पुस्तक वसंत के पहले दिन से पहले पर नवभारत टाइम्स मुंबई के सहायक संपादक हरि मृदुल ने कहा "राकेशजी की कविता चालू मुहावरों और बड़बोलेपन से पूरी तरह मुक्त है इसीलिए गहरी हैपाठक से बतियाती और संवेदना को छूती इस तरह की कविताएं काफी कम लिखी जा रही हैं । इन्हीं अर्थों में "बसन्त के पहले दिन से पहले " एक मूल्यवान संग्रह है उनके पास प्रतिरोध की इकाई प्रभावशाली कविताएं हैं। विजय वर्मा कथा सम्मान सूर्यबालाजी के कर कमलों द्वारा अशोक मिश्र एवं विजयकांत वर्मा द्वारा हेमंत स्मृति कविता सम्मान राकेश पाठक को प्रदान किया गया ।
अपने वक्तव्य में कथाकार अशोक मिश्र ने कहा "मेरे लिए कहानी लिखना किसी आम आदमी की पीड़ा को वाणी देने जैसा है । मेरी कोशिश होती है कि अन्याय, असमानतापक्षपातअव्यवस्थाशोषण के दुष्चक्र में पिसते और मेहनत मजदूरी कर गुजारा करने वाले मजदूर या किसान की दशा का थोड़ा सा चित्रण कर सके तो शायद लिखना सार्थक कहलाएगा ।"
डॉ राकेश पाठक ने संस्था को धन्यवाद देते हुए कहा "कविता आम आदमी को बेहतर मनुष्य बनाने का काम करती है। इस हिंसक समय में प्रेम कविताएं मनुष्यता का संदेश देती हैं। उन्होंने अपनी एक प्रेम कविता का पाठ रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया।जेजेटी यूनिवर्सिटी के कुलपति एवं राजस्थानी सेवा संघ के प्रमुख विशिष्ट अतिथि विनोद टीबड़ेवाला ने राजनीतिक गतिविधियों पर गहरी चिंता व्यक्त की और साहित्यकारों की लेखनी से  परिवर्तन होने का आव्हान किया। समारोह की अध्यक्ष सुप्रसिद्ध साहित्यकार सूर्यबाला ने कहा।
"यह दोनों पुरस्कार एक बहन एक मां द्वारा अपने दिवंगत रचनाकार भाई और सगे बेटे को दी गई श्रद्धांजलि है । संतोषजी ने अपने दुख के अंकुरों को रोपकर उन्हें संवेदना और रचनात्मकता के घने छायादार वृक्ष में परिवर्तित कर दिया। इन पुरस्कारों का हमारे महानगर के साहित्यिक परिदृश्य को बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है और इस मंच से पुरस्कृत नामों की विश्वसनीयता पर कभी सवाल नहीं उठे।"
कवि गजलकार देवमणि पांडेय ने कार्यक्रम का संचालन किया।

कार्यक्रम में शहर के वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकारिता की दुनिया से जुड़े  संपादक और साहित्यकारों की गरिमामय उपस्थिति रही। विशेष रूप से  कानपुर से आए वाणी के संपादक श्री हरि वाणी, झांसी से आए वरिष्ठ कवि साकेत सुमन चतुर्वेदी ,कोलकाता से आए वरिष्ठ कवि कपिल आर्यसमाजसेवी विजय वर्माधीरेंद्र अस्थानासूरजप्रकाशबृजभूषण साहनीराजेश विक्रांतफिरोज खानअसीमा भट्ट ,ज्योति गजभिए ,रीता रामदासअमर त्रिपाठी ,मुरलीधर पांडे,नागेन्द्र नाथ गुप्ता,विद्याभूषण त्रिवेदी,आभा दवे ,वनमाली चतुर्वेदी,,सुनील सिंह  आदि रचनाकारों की उपस्थिति विशेष रूप से दर्ज़ की गई।

Friday, April 7, 2017

वैचारिक वर्चस्व की जंग और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद



उमेश चतुर्वेदी
भारतीय विश्वविद्यालयों को इन दिनों वैचारिकता की धार पर जलाने और उन्हें तप्त बनाए रखने की कोशिश जोरदार ढंग से चल रही है। ज्ञान की वैश्विक अवधारणा के विस्तार के प्रतिबिंब मानी जाती रही आधुनिक विश्वविद्यलाय व्यवस्था में अगर संघर्ष बढ़े हैं तो इसकी बड़ी वजह यह है कि पारंपरिक तौर पर विश्वविद्यालयों में जिस खास वैचारिक धारा का प्रभुत्व रहा है, उसे चुनौती मिल रही है। आजाद भारत से पहले भले ही भारतीय विश्वविद्यालयों की संख्या कम थी, लेकिन उनका वैचारिक आधार भारतीयता, राष्ट्रवाद और अपनी संस्कृति के नाभिनाल से गहरे तक जुड़ा हुआ था।  आजादी के बाद देश में विश्वविद्यालय भले ही बढ़ते गए, लेकिन उनका वैचारिक और सांस्कृतिक सरोकार भारतीयता की देसी अवधारणा और परंपरा से पूरी तरह कटता गया। इसके पीछे कौन लोग थे, इस पर अब सवाल उठने लगा है।
भारतीय विश्वविद्यालयों का वैचारिक चिंतन किस तरह आजादी के बाद यूरोपीय अवधारणा का गुलाम होता गया, उसकी सही व्याख्या किसी राष्ट्रवादी विचारक ने नहीं, बल्कि समाजवादी चिंतक किशन पटनायक ने की है। अपने आलेख अयोध्या और उससे आगे में किशन पटनायक ने लिखा है- “यूरोप के बुद्धिजीवी, खासकर विश्वविद्यालयों से संबंधित बुद्धिजीवी, का हमेशा यह रूख रहा है कि गैर यूरोपीय जनसमूहों के लोग अपना कोई स्वतंत्र ज्ञान विकसित न करें । विभिन्न क्षेत्रों में चल रही अपनी पारंपरिक प्रणालियों को संजीवित न करें, संवर्धित न करें। आश्चर्य की बात है कि कम्युनिस्ट बुद्धिजीवियों का भी यही रूख रहा, बल्कि अधिक रहा। किशन पटनायक की जो व्याख्या है, दरअसल उसे ही राष्ट्रवादी विचारधारा भी मानती है। विश्वविद्यालयों की परिधि में काम कर रही राष्ट्रवादी विचारधारा की प्रबल प्रतिनिधि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की भी सोच ऐसी ही है। इसीलिए जब दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कालेज में राष्ट्र विरोधी ताकतों को सगर्व बोलने को बुलावा मिलता है, या फिर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में राष्ट्र के टुकड़े-टुकड़े होने के नारे खुलेआम लगते हैं तो उसके प्रतिकार में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को आना पड़ता है। दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कालेज में देशद्रोही नारे लगाने के आरोपी जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र उमर खालिद और शेहला राशिद के बोलने का अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा विरोध दरअसल विश्वविद्यालयों को लेकर कम्युनिस्ट विचारकों और बुद्धिजीवियों की संकुचित सोच का विरोध है। लेकिन दुर्भाग्यवश  विश्वविद्यालयों में अब तक जमी रही वामपंथी विचारधारा इसे अभिव्यक्ति पर हमले के तौर पर प्रचारित करने लगी और उसने इसे संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति के हमले के तौर पर प्रचारित करके अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की।  

Tuesday, July 26, 2016

सूचना सेवा में सुधार पर बासवान समिति ने खड़े किये हाथ

संघ लोकसेवा आयोग परीक्षा से संबंधित सुधारों पर कार्य करने के लिए बी एस बासवान समिति ने भारतीय सूचना सेवा में सुधार के सवाल पर हाथ खड़े कर दिये हैं, इससे इस सेवा में सुधार के लिए किये जा रहे प्रयासों को झटका लगा है।
                 हालांकि समिति ने अभी अंतिम रिपोर्ट सरकार को सौंपी नहीं है लेकिन भारतीय सूचना सेवा में सुधार के लिए छात्रों की ओर से किये जा रहे प्रयासों के जवाब में समिति के अध्यक्ष बी एस बासवान की ओर से जयपुर के छात्र श्याम शर्मा को ईमेल कर कहा गया है भारतीय सूचना सेवा को सिविल सेवाओं में रखना या न रखनासूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का काम हैसमिति का नहीं। मुझे लगता है कि वे यथास्थिति बनाये रखना चाहते हैं।
       हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालयजयपुर के छात्र श्याम शर्मा ने प्रधानमंत्री कार्यालय व बासवान समिति को पत्र लिखकर मांग की थी कि भारतीय सूचना सेवा की पेशागत आवश्यकताओं को देखते हुए इसे ग्रुप ’ पेशेवर सेवा के तौर पर चिन्ह्ति किया जाए तथा इसमें प्रवेश के लिए मीडिया व जनसंचार विषयों की विशेषज्ञता अनिवार्य की जाए।
उल्लेखनीय है कि भारतीय सूचना सेवा में शीर्षस्थ पदों पर नियुक्तियों के लिए अब तक विशेषज्ञता अनिवार्य नहीं है और सिविल सेवाओं में निचले रैंकों पर रहने वाले प्रतिभागी अनिच्छा के साथ इस सेवा में पहुंचते हैं जिससे सरकार की कार्यदक्षता तो प्रभावित होती ही हैसाथ हीसंचार कौशल संयुक्त पेशेवर प्रतिभा के साथ भी अन्याय होता है। इस संबंध में मीडिया स्कैनदिल्ली पत्रकार संघ,आईआईएमसी छात्र संघ तथा अन्य तमाम मीडिया संगठनों व छात्र संगठनों ने बासवान समिति को पत्र लिखा है।  
इन संगठनों का मानना है कि यह स्थिति पत्रकारिता के छात्रों के साथ अन्याय जैसी है। देशभर में बड़ी संख्या में पत्रकारिता संस्थानों से सैकड़ों की संख्या में स्नातक होकर पत्रकारिता और जनसंचार के छात्र निकलते हैं और उनके कौशलों की आवश्यकता वाली एक लोकसेवा भी अस्तित्व में है फिर भी उनको अवसर देने के स्थान पर इस सेवा में ऐसे लोगों को मौका दिया जा रहा है जिनके पास पत्रकारिता और जनसंचार की बेसिक जानकारी तक नहीं है। इसलिए सूचना और प्रसारण मंत्रालयकेंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभागसंघ लोकसेवा आयोग और प्रधानमंत्री कार्यालय से मांग की गयी है कि देशभर में पत्रकारिता के छात्रों के हित में भारतीय सूचना सेवा को पूरी तरह विशेषज्ञ सेवा के रूप में ग्रुप ए पेशेवर सेवा के रूप में चिन्हित किया जाए। 

Wednesday, May 25, 2016

आपकी मदद चाहिए..

मेरी कार चोरी हुए दस दिन हो गए..दिल्ली पुलिस ने इसे कैजुअली लिया..हम चाहते हैं कि आगे से ऐसे मामलों को दिल्ली पुलिस कैजुअली ना ले..इसलिए एक याचिका डाली है..जो नीचे दिए गए लिंक पर है..कृपया इस पर क्लिक करें और अपना हस्ताक्षर करके सहयोग करें..ताकि आगे किसी की कार चोरी हो तो पुलिस उसे कैजुअली ना ले..
https://www.change.org/p/home-ministry-of-india-my-car-is-stolen/c/456065495यहां करें क्लिक

Monday, May 9, 2016

उत्तराखंड में किस करवट बैठेगा राजनीतिक ऊंट



उमेश चतुर्वेदी
दुनियाभर के लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था वाले समाजों में आखिरी उम्मीद की किरण न्यायपालिका कितनी बन पाई है, यह शोध का विषय है। लेकिन कुछ अपवादों को छोड़ दें तो भारतीय लोकतंत्र में न्यायपालिका ही आखिरी उम्मीद की किरण बनकर उभरी है। हाल के दिनों आए जजों की नियुक्ति वाली कोलेजियम को बहाल करने वाले फैसले को छोड़ दें तो अभी-भी सर्वोच्च न्यायपालिका इंसाफ की आखिरी उम्मीद बनी हुई है। उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार के बहुमत परीक्षण कराने का आदेश भी कम से कम कांग्रेस पार्टी के लिए आखिरी उम्मीद की ही तरह आया है। इसलिए वह इसे लोकतंत्र की जीत बताते नहीं अघा रही है। अपने समाज में चूंकि न्यायिक फैसलों की आलोचना की परंपरा नहीं है, लिहाजा अगर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला नहीं भी आता तो यही कांग्रेस दुखी होने के बावजूद भी उस फैसले को लोकतंत्र की हार नहीं बताती। लेकिन यह तय है कि लोकतंत्र की असल जीत या हार इस फैसले से नहीं, बल्कि 10 मई को देहरादून में विधानसभा के पटल पर होगी। अगर हरीश रावत जीत गए तो निश्चित तौर पर कांग्रेस के लिए झूमने का मौका होगा। सत्ता तंत्र में लगातार छीजती जा रही कांग्रेस की उत्तर भारत में एक और सरकार लौट आएगी। लेकिन अगर हार हो गई तो इसमें कोई दो राय नहीं कि देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए वे क्षण बेहद दुखद होंगे।

Sunday, April 10, 2016

अमित शाह की आक्रामक राजनीति और बीजेपी

उमेश चतुर्वेदी
हताशा और निराशा के दौर से जिस पार्टी को दशकों गुजरना पड़ा हो, अगर लंबे संघर्ष के बाद वह जनता की आंखों का दुलारा बन जाए तो उसका उत्साहित होना स्वाभाविक है। भारतीय जनता पार्टी के 37 वें स्थापना दिवस पर अमित शाह की हुंकार को भी इसी नजरिए से देखा जाना चाहिए। पार्टी अध्यक्ष के नाते अमित शाह ने बीजेपी के कार्यकर्ताओं से कहा कि पार्टी को पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक 25 साल तक राज करना है। अमित शाह का यह बयान उनके विरोधियों को बड़बोलापन लग सकता है। विपक्षी दल इस पर सवाल भी उठा सकते हैं। उनका सवाल उठाना जायज भी है। लेकिन अमित शाह कोई अजूबी बात नहीं कर रहे हैं। जिस पार्टी के कार्यकर्ताओं को छोड़ दें, बड़े नेताओं तक को संघर्ष और राजनीतिक उत्पीड़न के लंबे दौर से जूझना पड़ा हो, उस पार्टी के अध्यक्ष की हुंकार ऐसी ही होनी चाहिए। कम से कम भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता तो ऐसा ही मानते हैं। कारपोरेट और उदारीकरण के वर्चस्व के दौर में आज टीम अगुआ से अपने लोगों को प्रेरित करने के लिए ऐसे ही बयानों की उम्मीद की जाती है। मोर्चे को फतह करने की तैयारियों में जुटी सेनाओं के जनरल भी अपने सैनिकों का उत्साह बढ़ाने और जीत के लिए प्रेरित करने के लिए ऐसे ही बयान देते रहे हैं। 

Saturday, February 20, 2016

कितना जहरीला है माहौल...

माहौल में कितना जहर भर गया है.. जरा देखिए फेसबुक पर यह पोस्ट..मेरे छात्र रहे हैं नाम है मन्शेष कुमार.. आईआईएमसी जैसी जगह में पढ़ते हैं..तो जाहिर है कि ऊंची छलांग लगाने की भी सोच रहे होंगे..लेकिन उनकी भाषा कैसी है..जरा पढ़िए..मेरे पोस्ट को शेयर करते वक्त,.दुख है कि इन्हें अपनी क्लास में मैं पढ़ा नहीं पाया..वैसे 23 साल पहले मैं उसी क्लास में छात्र था..आखिर भविष्य में ये क्या करेंगे...अंदाज लगाइए...इनका परिचय और इनकी पोस्ट दोनों लगा रहा हूं..देखिए और विचार कीजिए...

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Saturday, January 23, 2016

झारखंड में रघुबर सरकार की नायाब कोशिश

बजट की तैयारियों में जनता से मांगे सुझाव
उमेश चतुर्वेदी
उफान मारती जनाकांक्षाओं के रथ पर सवार होकर सत्ता में आने वाली सरकारों की चुनौतियां कम नहीं होतीं। उन्हें अपने उस आधारवोट बैंक की उम्मीदों पर खरा उतरना होता है, जिनके समर्थन की बदौलत उन्हें सत्ता की ताकत हासिल हुई रहती है। जिस पश्चिमी मॉडल के लोकतंत्र को आज पूरी दुनिया में आदर्श माना जा रहा है, जिसे 66 साल पहले हमने भी स्वीकार किया, उसकी सबसे बड़ी खामी है कि सत्ता में आते ही राजनीतिक दल उसी जनता को भूल जाते हैं, जिनके समर्थन का आधार ही उन्हें सत्ता की सर्वोच्च सीढ़ी तक पहुंचाता रहा है। सत्ता में आने के बाद वायदों को भूल जाना ज्यादातर राजनेताओं और राजनीति की रवायत रही है। ऐसे में अगर झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास सूबे के दूसरे बजट की तैयारी के लिए जनता के बीच घूम रहे हैं और लोगों से राय-सलाह ले रहे हैं और उनके वायदे के मुताबिक राज्य का अगला बजट बनाने की तैयारी कर रहे हैं तो उसका स्वागत ही किया जाना चाहिए। हालांकि अभी तक सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के अलावा दूसरे किसी राजनीतिक खेमे से उनके इस कदम की सराहना की खबर सामने नहीं आई है। लेकिन उनके कामकाज पर अभी तक कोई सवाल नहीं उठा है। झारखंड की विपक्षी राजनीति के सबसे अहम किरदार और झारखंड में गुरूजी के नाम से विख्यात झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख शिबू सोरेन ने जमशेदपुर में रघुबर दास सरकार का पहला साल पूरा होने के संदर्भ में पूछे एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि एक साल में कोई भी सरकार बहुत कुछ नहीं कर सकती। किसी राज्य या देश के विकास के लिए एक साल का वक्त कुछ खास नहीं होता। लेकिन रघुबर दास सरकार ने इस दौरान झारखंड के विकास के लिए जो कदम उठाए हैं, वे ठीक हैं और उन्हें मौका दिया जाना चाहिए।
सवाल यह उठता है कि आखिर राज्य के दूसरे बजट के लिए ही रघुबर दास सरकार ने रायशुमारी के लिए जनता के बीच जाने का कदम क्यों उठाया। पहले बजट के लिए उन्होंने ऐसी कवायद क्यों नहीं की। इसका जवाब राज्य सरकार के पास है। झारखंड के मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार शिल्पकुमार का कहना है कि चूंकि जब झारखंड में भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने का मौका मिला, तब बजट सत्र की तैयारियां शुरू हो चुकी थीं। कुछ ही महीनों बाद बजट पेश किया जाना था। तब सरकार के पास पहली जिम्मेदारी यह थी कि सबसे पहले सूबे की संवैधानिक व्यवस्था को बनाए रखते हुए बजट पेश किया जाय। उस वक्त राज्य सरकार के पास जनता की राय जानने और फिर बजट तैयार करने का वक्त नहीं था।
जिस ट्रिकल डाउन सिद्धांत के मुताबिक उदारीकरण की अर्थव्यवस्था को हमने स्वीकार किया है, उसमें वोट मांगते वक्त जनाकांक्षा की बात तो खूब की जाती है। लेकिन जब सचमुच जनता के लिए कुछ करने का वक्त आता है, तब जनता के लिए चर्चाओं की बजाय उद्योगपतियों और आर्थिक संगठनों के प्रतिनिधियों से बात करके नीतियां तैयार कर ली जाती हैं और उसके मुताबिक बजट बनाकर योजनाएं शुरू कर दी जाती हैं। और इस तरह जनाकांक्षाएं कहीं पीछे रह जाती हैं। इन संदर्भों में देखें तो संभवत: ये पहला मौका है, जब किसी मुख्यमंत्री ने राज्य के लोगों से राज्य का बजट तैयार करने के लिए ना सिर्फ राय मांगी है, बल्कि राज्य में घूम-घूमकर लोगों की आकांक्षाओं का जानने का प्रयास कर रहा है। मुख्यमंत्री रघुबर दास ने बजट निर्माण के विकेन्द्रीकरण की दिशा में राज्य के सभी पांचों प्रमंडलों (कमिश्नरियों) में खुद जा कर छात्रों, महिलाओं, किसानों, शिक्षाविदों, स्वयंसेवी संस्थाओं, व्यापारियों के प्रतिनिधियों से मिलकर बजट पर चर्चा की शुरूआत की है। रघुबरदास का मानना है कि इससे बजट को जनोन्मुखी बनाने में मदद मिलेगी।
बजट को लेकर एक शिकायत यह रही है कि अफसरों को राज्य और आम लोगों की परेशानियों की जानकारी नहीं होती। वे यह भी नहीं जानते कि जमीनी हकीकत क्या है। लिहाजा बंद कमरों और दफ्तरों के भीतर वे जो बजट तैयार कर देते हैं, उनका जमीनी जरूरतों से कई बार दूर-दूर का वास्ता नहीं होता। रघुबर दास ने शायद इसी वजह से जनोन्मुखी विकास के लिए जनता द्वारा जनता के लिए जनता का बजट का अपने अधिकारियों को संदेश दिया है। वैसे इस बजट निर्माण प्रक्रिया की शुरूआत सितम्बर से ही कर दी गई है। इस सिलसिले में मुख्यमंत्री ने 11 दिसंबर तक राज्य के 5 प्रमंडलों से 2 प्रमंडलों का ना सिर्फ दौरा पूरा कर लिया था, बल्कि इस दौरान समाज के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों से मिलकर बजट की जरूरतों पर चर्चा भी पूरी कर ली थी। इस दौरान सरकार की कोशिश यह रही है कि लोग क्या चाहते हैं और उनकी विकास की अवधारणा में स्थानीय जरूरतें क्या हैं, यह जाना और समझा जाय । रघुबर दास ने बजट चर्चा की शुरूआत उत्तरी छोटा नागपुर के धनबाद में 6 दिसम्बर को की और उन्होंने लोगों के साथ दूसरी रायशुमारी दक्षिणी छोटा नागुपर के गुमला में 11 दिसम्बर को की । इसी तरह मुख्यमंत्री ने संताल परगना के दुमका में 19 दिसम्बर को,  पलामू के डालटनगंज में 23 दिसम्बर और कोलहान प्रमंडल के चाईबासा में 24 दिसम्बर को लोगों से मुलाकात की और उनकी राय जानने की कोशिश की। इस दौरान कोशिश रही कि महिला-प्रतिनिधियों, किसानों, प्रख्यात शिक्षविदों, छात्रों के प्रतिनिधि और एनजीओ के प्रतिनिधि को बुलाया जाय। यह भी कोशिश रही कि जो लोग बुलाए जाएं, दरअसल उनकी अपने समुदाय पर गहरी पकड़ तो हो ही, अपने समुदाय की जरूरतों और कमजोरियों के साथ उसकी भावी चुनौतियों को भी समझते हों। सबसे बड़ी बात यह है कि इस दौरान राज्य के प्रमुख विभागों के सचिवों की मौजूदगी अनिवार्य रही। ताकि वे लोगों की समस्याओं को सीधे-सीधे जान सकें। इस बैठक के दौरान इलाके के सांसदों और विधायकों समेत दूसरे जन-प्रतिनिधियों को नहीं बुलाया गया। हालांकि उनसे अलग से राय जरूर मांगी गई है और वह भी लिखित रूप से। ताकि उनकी मांगों और सुझावों को भी बजट में समाहित किया जा सके। इसके साथ ही सांसदों और विधायकों से सरकार ने अपील की है कि वे अपने-अपने इलाकों के महत्वपूर्ण कार्यों की सूची मुहैया करा दें, ताकि बजट में उसे शामिल किया जा सके।

सुबह सवेरे में