मरांडी का महाधरना : छात्रों के जरिए झारखंड में विस्तार की
कोशिश
उमेश चतुर्वेदी
(यह रिपोर्ट प्रथम प्रवक्ता में प्रकाशित हो चुकी है)
झारखंड
की राजनीति में अहम भूमिका निभाने की तैयारियों में झारखंड विकास मोर्चा के
अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी कूद पड़े हैं। बेशक अभी राज्य
विधानसभा के चुनावों में दो साल की देर है। राज्य में स्पष्ट बहुमत नहीं होने के
चलते जिस तरह राज्य सरकार चल रही है, उसका खामियाजा ना सिर्फ यहां साफ-सुथरी
राजनीति के हिमायतियों को भुगतना पड़ रहा है, बल्कि राज्य का विकास का ढांचा भी
चरमरा गया है। इतना ही नहीं, झारखंड की पहचान अब देश में एक ऐसे राज्य के तौर पर
पुख्ता होती जा रही है, जहां के विधायकों को आसानी से खरीदा जा सकता है और पैसे के
दम पर यहां से संसद के उपरी सदन में दाखिला हासिल किया जा सकता है। कभी झारखंड के
लिए कुर्बानी देने वाले शिबू सोरेन हों, या फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और वनवासी
कल्याण आश्रमों के जरिए यहां की राजनीति में दखल देने वाली भारतीय जनता पार्टी रही
हो, दोनों उन आदिवासियों का विकास करने में कामयाब नहीं रहे, जिनकी भलाई के नाम पर
2000 में यह राज्य बना।