चिंता से परे है हिंदी का मामला
राजकिशोर
हिंदी
का रुतबा घट रहा है क्योंकि जो दुनिया को समझने और अपने को व्यक्त करने के
लिए हिंदी बोलते या लिखते हैं, उनका रुतबा कम हो रहा है। पचास साल बाद
हिंदी सिर्फ आर्थिक दृष्टि से अविकसित लोगों की भाषा रह जाएगी। वे कौन
होंगे जो अविकसित रह जाएंगे? वही, जिनकी कीमत पर व्यवस्था एक छोटे-से वर्ग
का श्रृंगार करती आई है
कुछ
हैं, जो खुश हैं कि हिंदी आगे बढ़ रही है। हिंदी के अखबार बढ़ रहे हैं। कई
ऐसे शहर हैं, जहां से हिंदी के चार-पांच अखबार निकलते हैं और वे सभी
कमोबेश बिक जाते हैं।