उमेश
चतुर्वेदी
सभ्य समाज में खासकर उच्च शिक्षा के
संस्थानों में ऐसे मूल्यों की उम्मीद की जाती है, जो अपने समाज को नई रोशनी दिखाते
हुए बंद समाज के लिए प्रगति की राह खोल सके। ऐसा तभी हो सकता है, जब शैक्षिक
संस्थान समाज सापेक्ष विचार रखे। लेकिन क्या दिल्ली के सर्वाधिक सुविधा और
स्वायत्तता संपन्न जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय इन कसौटियों पर कसा जा सकता है। निश्चित तौर पर इसका जवाब ना में
ही दिया जा सकता है। प्रगतिशीलता की एक निशानी समाज सापेक्ष विचारों को बढ़ावा
देने के साथ ही असहिष्णुता की भावना को भी बढ़ावा देने वाली होनी चाहिए। लेकिन
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय का छात्र समुदाय इसके ठीक उलट व्यवहार करता नजर आता
है।(दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित...)