(प्रथम प्रवक्ता में प्रकाशित)
उमेश
चतुर्वेदी
राजनीतिक नेतृत्व से इतर ब्यूरोक्रेसी से
हमेशा उम्मीद की जाती है कि वह ठोस और मुद्दों पर केंद्रित सवालों को ही छुएगी।
जनपक्षधरता से कटे होने जैसे कई आरोपों के बावजूद अगर ब्यूरोक्रेसी पर राजनीति की
बनिस्बत ज्यादा भरोसा किया जाता है तो इसकी बड़ी वजह यही कारण भी है। लेकिन टू जी
स्पेक्ट्रम आवंटन के दौरान घोटाले का बढ़ा-चढ़ाकर आकलन करने और उसके पीछे लोकलेखा
समिति के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी के हाथ का आरोप लगाने के मामले में पूर्व
ब्यूरोक्रेट आर पी सिंह ने जिस तरह से यू टर्न लिया है, उससे ब्यूरोक्रेसी पर अब
तक बरकरार रहे भरोसे में दरार जरूर पड़ गई है। यह बात और है कि आर पी सिंह अगले ही
दिन एक बार फिर अपने पुराने रूख पर लौट आए। उनके इस रवैये से जाहिर है कि उनकी
बयानबाजी और टूजी को लेकर उठे विवाद के बीच दाल में काला कहीं ना कहीं जरूर है।